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गोस्वामी तुलसीदास की विनयपत्रिका में रामचन्द्र के प्रति लम्बे विनय से पहले तुलसीदास ने भगवान शिव से भी विनती की है और उनसे विनती करते हुए उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए स्तुति लिखी है. यह स्तुति चार चार पद्यों में लिखी गई है हलांकि किसी किसी में पद्य अधिक भी हो गये हैं. तुलसीदास के लेखन का यह समय उनमें कविता के जन्म का समय है. छंदों कि तलाश करते करते वो यहाँ पहुंचे हैं. इसके बाद उन्होंने रामचरितमानस लिखा. शिव स्तुति बहुत सुंदर है, रामायण सम्प्रदाय वाले इसका पाठ भी करते हैं. यह शिव स्तुति थोड़ा संस्कृतमय है.

शिव स्तुति –

सदा –
शंकरं, शंप्रदं, सज्जनानंददं, शैल-कन्या-वरं, परमरम्यं।
काम-मद-मोचनं, तामरस-लोचनं, वामदेवं भजे भावगम्यं।।

कंबु-कुंदेंदु-कर्पूर-गौरं शिवं, सुंदरं, सच्चिदानंदकंदं।
सिंद्ध-सनकादि-योगीन्द्र-वृंदारका, विष्णु-विधि-वन्द्य चरणारविंदं।।

ब्रह्म-कुल-वल्लभं, सुलभ मति दुर्लभं, विकट-वेषं, विभुं, वेदपारं।
नौमि करूणाकरं, गरल-गंगाधरं, निर्मलं, निर्गुणं, निर्विकारं।।

लोकनाथं, शोक-शूल-निर्मूलिनं, शूलिनं मोह-तम-भूरि-भानुं।
कालकालं, कलातीतमजरं, हरं, कठिन-कलिकाल-कानन-कृशानुं।।

 तज्ञमज्ञान-पाथोधि-घटसंभवं, सर्वगं, सर्वसौभाग्यमूलं।
प्रचुर-भव-भंजनं, प्रणत-जन-रंजनं, दास तुलसी शरण सानुकूलं।।