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नरेंद्र मोदी का यह झूठ कि कांग्रेस पार्टी लोगों का सोना, महिलाओं के मंगलसूत्र हड़पने और उसे धार्मिक अल्पसंख्यकों में बांट देगी, पूरी तरह से घृणित और खतरनाक है. यह मोदी के नैतिक पतन और दिवालियापन को ही उजागर करता है. RBI के आंकड़ों से पता चला है कि मोदी के कार्यकाल में ही भारतीय परिवारों को सबसे ज्यादा अपना सोना गिरवी रखना पड़ा है. स्पष्ट रूप से कहें तो, यह मोदी ही हैं जिन्होंने वास्तव में महिलाओं के मंगलसूत्र और परिवारों का सोना छीना है.

इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि घबराए हुए मोदी अपने सार्वजनिक भाषणों में अत्यधिक बेतुकी बातें कर रहे हैं. ‘अगर मैं 50 दिनों में काला धन वापस नहीं ला सका तो मुझे सजा दो’ भाषण के कुछ दिनों बाद उन्हें एहसास हुआ कि उनका विमुद्रीकरण प्रयोग एक आपदा था, ‘महाभारत युद्ध 18 दिनों में जीता गया था, कोरोना युद्ध 21 दिनों में जीता जाएगा’ जैसे भाषण और फिर युद्ध जीतने के लिए जनता से थाली बजवाना तथा 9 मिनट 9 बजे दीया जलवाना, या बंगाल चुनाव हारने पर ‘दीदी ओ दीदी’ का भद्दा ताना, ये चिंतित मोदी के हताश संबोधनों के कुछ हालिया उदाहरण हैं. उनका बेतुका दावा कि कांग्रेस लोगों का सोना हड़प लेगी और इसे मुसलमानों को सौंप देगी, हताशा का एक और स्पष्ट संकेत है. लेकिन यह बेहद खतरनाक भी है. मोदी के झूठ को चुनाव की गर्मी में महज राजनीतिक बयानबाजी कहकर खारिज नहीं किया जा सकता. कुत्ते की सीटी तेज़ और स्पष्ट थी – हिंदू नारीत्व के पवित्र प्रतीक, मंगलसूत्र, और भारतीय परिवारों में धन के सर्वोत्कृष्ट सांस्कृतिक प्रतीक, सोने का उपयोग करके धार्मिक आधार पर मतदाताओं का ध्रुवीकरण करना. भाजपा की प्रणाली जो व्हाट्सएप समूहों के डार्क वेब के माध्यम से बड़े पैमाने पर नफरत फैलाती है, इससे संभवतः अत्यधिक सांप्रदायिक तनाव और हिंसा भड़क सकती है, जिसके गंभीर सामाजिक परिणाम हो सकते हैं.

मोदी के कार्यकाल में गोल्ड-लोन में कई गुना वृद्धि हुई –

‘परिवार की चांदी बेचना’ हताश समय को दर्शाने वाला एक अंग्रेजी मुहावरा है, जो भारत में ‘परिवार का सोना गिरवी रखना’ के बराबर है. यह वही बात है जो भारतीय परिवार इन दिनों में तेजी से कर रहे हैं, जो चिंताजनक स्तर पर है. भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, भारतीयों ने कैश के लिए 2023-24 में 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक के अपने सोने के आभूषण गिरवी रखे, जो 2018-19 की तुलना में लगभग पांच गुना अधिक है. यह हाल के इतिहास में स्वर्ण ऋण में सबसे तेज़ वृद्धि है और आरबीआई को इसमें कदम उठाना पड़ा और बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों को चेतावनी जारी करनी पड़ी. समग्र व्यक्तिगत ऋण में स्वर्ण ऋण की हिस्सेदारी मार्च 2019 में 1 प्रतिशत से लगभग ढाई गुना बढ़कर मार्च 2021 में कोविड-19 के दौरान लगभग 2.5 प्रतिशत और फरवरी 2024 में 2 प्रतिशत हो गई.

भारत में परिवारों को कठिन समय से निपटने के लिए परिवार के आभूषण गिरवी रखने और नकदी लेने के लिए ‘गिरवी दलाल’ के पास ले जाना एक सांस्कृतिक और सामाजिक अपमान है. अत्यंत कठिन वित्तीय परिस्थितियों में ही परिवार यह कदम उठाने के लिए मजबूर होते हैं. यह आरबीआई के आंकड़ों में परिलक्षित होता है, जहां व्यक्तिगत ऋण के लिए सोना गिरवी रखने की हिस्सेदारी कोविड के दौरान अपने चरम पर पहुंच गई थी, जब आर्थिक स्थितियां खराब थीं. तो फिर, भारतीय परिवार अब भी इतनी खतरनाक गति से उधार लेने के लिए अपना सोना गिरवी क्यों रख रहे हैं? जोड़ने के लिए, यह सिर्फ औपचारिक ऋण देने वाला चैनल है जिसके लिए आरबीआई डेटा एकत्र करता है. यह सर्वविदित है कि पारिवारिक सोने के बदले में इस तरह की अधिकांश उधारी अनौपचारिक माध्यमों से होती है जिन्हें ‘पॉन ब्रोकिंग’ के नाम से जाना जाता है. जब औपचारिक तौर पर गिरवी रख कर कर्ज लेने वाले चैनलों तक पहुंच रखने वाले लोगों को अपने सोने को गिरवी रखने के लिए इतनी भारी मात्रा में मजबूर किया जा रहा है, तो आश्चर्य होना लाजमी है कि अनौपचारिक चैनलों में इस तरह के स्वर्ण ऋण उधार लेना कितना व्यापक है? जिस पर निम्न मध्यम वर्ग के अधिकांश भारतीय भरोसा करते हैं ! मोदी समर्थक इस डेटा को केवल वित्तीय संस्थानों द्वारा सोना उधार लेने के लिए अधिक दबाव और परिवारों की उधार लेने की प्राथमिकताओं में बदलाव का प्रतिबिंब मानकर खारिज करने का प्रयास कर सकते हैं, न कि पारिवारिक संकट का संकेत. भले ही यह सच हो लेकिन यह सोने के गिरवी रखने की दर में चिंताजनक वृद्धि को पूरी तरह से स्पष्ट नहीं करता है. तथ्य यह है कि कोविड के दौरान सोने के ऋण में तेजी से वृद्धि हुई और आर्थिक संकट के कारकों के साथ एक साल बाद तुरंत गिरावट आई और यह सिर्फ सोने को गिरवी रखने के लिए औपचारिक चैनलों की अधिक उपलब्धता का संकेत नहीं है.

मोदी ने,ही मंगल सूत्र छीने और गिरवी रखवाए –

अन्य महत्वपूर्ण डेटा बिंदु यह है कि पिछले पांच वर्षों में भारत का सोने का आयात भी 20 प्रतिशत (मात्रा के हिसाब से) कम हुआ है. भारत दुनिया में सोने का सबसे बड़ा उपभोक्ता है और घरेलू स्तर पर सोने की अधिक मांग के कारण सोने का आयात बढ़ता है. निस्संदेह, सोने की अधिक घरेलू मांग परिवारों के लिए उच्च आय और बचत का एक परिणाम है. वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान यूपीए 1 और यूपीए 2 के बीच सोने के आयात में मात्रा के हिसाब से 24 फीसदी और मूल्य के हिसाब से 224 फीसदी की बढ़ोतरी हुई. इस बीच, मोदी के कार्यकाल में सोने के आयात में गिरावट आई है. सोने की बढ़ती कीमतों के कारण मात्रा और मूल्य के हिसाब से केवल 38 प्रतिशत की वृद्धि हुई.

बेशक, ऐसे कई अन्य कारक हो सकते हैं जो सोने के आयात को प्रभावित करते हैं जैसे सोने की कीमतें, आयात शुल्क इत्यादि. फिर भी, जब गिरती घरेलू बचत और स्थिर वास्तविक आय के अन्य व्यापक आर्थिक आंकड़ों के साथ संयोजन में देखा जाता है, तो यह आरोप लगाना दूर की कौड़ी नहीं है कि घरेलू सोने की मांग भी कम थी, जिससे मात्रा के हिसाब से सोने के आयात में गिरावट आई. सरल शब्दों में कहें तो, मोदी के कार्यकाल की तुलना में मनमोहन सिंह के कार्यकाल में सोने की घरेलू मांग अधिक थी. यानी, मनमोहन सिंह के शासनकाल में भारतीय परिवारों ने अधिक सोना जमा किया, जबकि मोदी के शासनकाल में उन्होंने अपना सोना अधिक गिरवी रखा और बेचा. इसलिए, महिलाओं के मंगलसूत्र छीनने की कांग्रेस की साजिश के बारे में सभी हो-हल्ले के बावजूद, डेटा से पता चलता है कि यह मोदी ही हैं जो हिन्दू परिवारों के सोने के आभूषण और उनके मंगलसूत्र छीन रहे हैं. और यह किसी राजनीतिक भाषण में लगाया गया आधारहीन आरोप नहीं है, बल्कि आरबीआई के वास्तविक आंकड़ों पर आधारित है. अब, यदि राजनीति और चुनाव केवल तथ्यों और सच्चाइयों से संचालित होते, तो शायद भारतीय परिवारों ने बेहतर आर्थिक प्रबंधकों को चुनकर गिरवी रखने की तुलना में अधिक सोना जमा किया होता.

-साभार दी प्रिंट, लेखक -प्रवीण चक्रवर्ती (राजनीतिक अर्थशास्त्र के विशेषज्ञ और लेखक )