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भाग्य से ही सब कुछ प्राप्त होता है. भाग्य से ही अच्छी पत्नी, पुत्र और जीवन के सभी सुख प्राप्त होते हैं. ज्योतिष शास्त्र में इसलिए कहा गया है कि सभी भावों को छोडकर भाग्य भाव को ही प्रमुखता से देखें. जीवन में मनुष्य को जो कुछ भी प्राप्त होता है उसे पहले ही लिख दिया गया है ऐसा ज्योतिष की मान्यता है. ज्योतिष में नवम स्थान को भाग्य एवं धर्म स्थान माना जाता है. जन्मपत्री देखते समय सभी विषयों पर विस्तार पूर्वक विचार करना चाहिए लेकिन भाग्य भाव का विचार सबसे महत्वपूर्ण है. सबसे पहले लग्न को देखें, अगर लग्न कमजोर हो या संधि में हो तो कुंडली कमजोर होती है. लग्नेश के अस्त होने पर कुंडली में बहुत ही खराब हो जाती है. लग्नेश खराब हो तो ग्रह कितने भी अच्छे हों, कुछ न कुछ परेशानी बनी रहेगी. लग्नेश वक्री हो और अपने स्थान से छठे, आठवें या बारहवें, चला गया हो तो कुंडली कमजोर हो जाती है. ज्योतिष में गुरु, शुक्र, बुध और पक्षबली चंद्रमा को शुभ माना गया है. अगर ये ग्रह केंद्र या त्रिकोण में हों, तो कुंडली में अरिष्ट भंग करते हैं अर्थात अच्छा योग बनाते हैं. केंद्र में सभी ग्रहों का एक समान शुभ फल नहीं होता मसलन शुभ ग्रह दशम में शुभ फल नहीं करते. कौन से ग्रह कहाँ बेहतर होते हैं यह जानना चाहिए. जन्मकुंडली में त्रिकोण स्थान और केंद्र स्थान को अच्छा माना गया है लेकिन इनके बल में अंतर होने से कोई ज्यादा शुभ है कोई कम शुभ है. सप्तम केंद्र है लेकिन प्रबल मारक हॉउस है. .

जन्मकुंडली में आमदनी और धन के लिए दूसरा और ग्यारहवां स्थान दोनों अच्छे मानें गये हैं , लेकिन स्वास्थ्य के लिए नहीं है. ग्यारहवां स्वामी सबसे बड़ा पापी ग्रह माना गया है इसलिए इसका विश्लेषण बहुत सावधानी से करना चाहिए. पाप के द्वारा मनुष्य सभी दुखों की प्राप्ति करता है. जन्मकुंडली में 6, 8, 12 स्थानों को अशुभ, दु:स्थान और पाप-मारक माना जाता है. इसलिए अगर लग्नेश, भाग्येश, नवमेश, लाभेश और धनेश केंद्र या त्रिकोण में हों, तो कुंडली में अच्छा योग होता है और जातक की वृद्धि होती है. अगर कोई अच्छा ग्रह नवम में हो, तो अच्छा फल देता है लेकिन द्वितीयेश नवम में अशुभ फल प्रदान करता है.

कुंडली में चंद्रमा पक्ष बली हो और उस पर किसी पापी ग्रह का प्रभाव नहीं हो, तो जन्मपत्री में बहुत अच्छी हो जाती है. जन्मकुंडली देखते समय लग्न, चंद्र लग्न और सूर्य लग्न तीनों का विचार करना चाहिए. लग्न शरीर है, चंद्रमा मन और दिमाग है और सूर्य का संबंध आत्मा से है अर्थात सूर्य आत्मा है. अगर तीनों की स्थिति अच्छी हो, तो जातक का जीवन अच्छा होता है. सूर्य लग्न के दोनों तरफ शुभ ग्रह आ जाते हैं या सूर्य से छठे और आठवें घरों में शुभ ग्रह स्थित होते हैं, तो सूर्य लग्न के दोनों तरफ शुभ मध्यत्व पड़ने के कारण सूर्य लग्न बलवान होता है. यही स्थिति यदि लग्न और चंद्र के दोनों तरफ हो, तो वे भी बली होते हैं. चन्द्रमा से बृहस्पति का अष्टम होना खराब होता है, यह सकट योग का निर्माण करता है. जातक का सुख खत्म हो जाता है. चन्द्रमा का पक्ष बल ही उसका सबसे बड़ा बल है, पक्ष बली चन्द्र सभी योगो को बल प्रदान करता है. सूर्य या चन्द्रमा की की शनि, राहु और केतु के साथ युति होने पर या इनकी दृष्टि में होने पर कुंडली खराब होती है और ये अशुभ फल को उत्पन्न करते हैं. जातक को प्रतिष्ठा, सम्मान, जीवन में उच्च पदों की प्राप्ति नहीं होती और धन आदि का नुकसान होता है. चन्द्रमा से इन छाया ग्रहों की युति स्त्री की कुंडली को खराब करते हैं और उनके सुख को खत्म कर देते हैं.

जन्म कुंडली में नवमेश का सबसे महत्वपूर्ण रोल होता है. जातक का भाग्य इस ग्रह के हाथ में होता है. यदि नवमेश का सम्बन्ध लग्नेश, पंचमेश और दशमेश से हो तो जातक की कुंडली अच्छी हो जाती है और उन्हें जीवन में सब कुछ प्राप्त होता है. नवमेश का केंद्र भावो से सम्बन्ध कुंडली को अच्छा कर देता है. यदि अष्टमेश नवम में हो या नवमेश अष्टम में हो तो कुंडली खराब होती है. नवमेश का चतुर्थ स्थान में बैठना उस हॉउस के लिए अशुभ फलदाई होता है. नवमेश को हर भाव के अनुसार देखना चहिये. उदाहरण के लिए नीचे उदाहरण कुंडली जुलियन असांजे की है जिसका भाग्यभाव नष्ट होने से बुध की महादशा के प्रारम्भ से भागते पराते रहे, परेशान रहे और अंतत: जेल में हैं.