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आरएसएस -भाजपा का राजनीतिक हिंदुत्व मन्दिर प्राणप्रतिष्ठा इवेंट पर अब तक कई स्तरों पर एक्सपोज हो चूका है. इनके राजनीतिक कार्यक्रम को पहली बार चार शंकराचार्यों ने यह कह कर एक्सपोज किया कि मन्दिर में प्राण प्रतिष्ठा शास्त्रसम्मत नहीं है. इसके कारणों को ज्योतिषपीठ और पुरी के शंकराचार्य ने क्रम से गिनाया –

1- अधूरे बने विकलांग मन्दिर में प्राण प्रतिष्ठा नहीं की जा सकती

2-मन्दिर शिखरविहीन और ध्वजविहीन है इसलिए प्रतिष्ठा नहीं हो सकती

3-गर्भगृह में राजनीतिक व्यक्ति होंगे और मूर्ति स्पर्श करेंगे जो शास्त्रसम्मत नहीं

4-रामलला विराजमान ही मन्दिर के असली स्वामी हैं, गर्भ गृह में नई मूर्ति की प्रतिष्ठा नहीं की जा सकती है.

इन सबके बीच मन्दिर न्यास ट्रस्ट ने कहा कि रामलला विराजमान भी गर्भगृह में रहेंगे. पुन: जब दवाव पड़ा तो मन्दिर का कपड़े का शिखर बनाने लगे. लेकिन क्योंकि अधर्मियों का ही मन्दिर पर कब्जा है इसलिए नई मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा होने से पहले ही उसका चक्षुउन्मीलन कर दिया गया और सारे देश ने मूर्ति को देखा. राम की आँख हुई लीक ? ऐसा खबर बनी. किसने यह अधर्म किया ? इसके लिए मन्दिर के पुजारी ने जाँच की मांग की लेकिन जांच नहीं हई. यह भगवान राम द्वारा स्थापित धर्म का घोर अपमान हुआ.

नई मूर्ति का चक्षुउन्मीलन से सम्बन्धित जो कर्मकांड होते हैं वह लुप्त हो गया जिससे मन्दिर का यह प्रायोजित राजनीतिक कार्यक्रम पूरी तरह अधर्म सिद्ध होता है. इन सभी बातों से यह स्पष्ट सिद्ध होता है कि मन्दिर पर आसुरी शक्तियों का कब्ज़ा है. जैसा की पहले हमने ध्यान आकर्षित कराया था कि राहु-काल में भूमि पूजा होने से मन्दिर पर सिंहिका पुत्र राहु-केतु का पूर्ण अधिपत्य है और इसलिए मन्दिर का पुन: शुद्धिकरण और प्राणप्रतिष्ठा की आवश्यकता होगी जब मन्दिर का पूर्ण निर्माण हो जायेगा.

रामलला विराजमान की क्या स्थिति है यह स्पष्ट नहीं हुआ है. यदि रामलला विराजमान गर्भगृह में नहीं स्थापित होते है तब इस प्रकरण को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जानी चाहिए और वर्तमान ट्रस्ट को भंग कर नये ट्रस्ट का निर्माण किया जाना चाहिए और प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम विधि पूर्वक सम्पन्न किया जाना चाहिए.