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हिन्दू धर्म में भगवद्गीता को एक प्रमाणिक स्मृति ग्रन्थ माना गया है. यह हिन्दू धर्म में प्रस्थानत्रयी का हिस्सा है. उपनिषद, ब्रह्मसूत्र और भगवद्गीता को प्रस्थानत्रयी कहा जाता है. उपनिषद वेदों के अंत भाग में स्थित हैं अर्थात ये अंतिम निष्कर्ष के रूप में हैं, इससे बड़ा कोई प्रमाण नहीं है. हिन्दू धर्म में आध्यात्म बिना प्रमाण के नहीं है. किसी भी निष्कर्ष का प्रमाण वेद ही हैं. भगवद्गीता में कहा गया है कि मनुष्य की जैसी श्रद्धा होती है वह वैसा ही होता है ” सत्त्वानुरूपा सर्वस्य श्रद्धा भवति भारत, श्रद्धामयोऽयं पुरुषो यो यच्छ्रद्धः स एव सः” इस वक्तव्य की यदि आध्यात्मिक सन्दर्भ में व्याख्या करें तो यह कहा जायेगा कि किसी व्यक्ति की श्रद्धा का चरित्र कैसा है तदनुरूप उसका स्वरूप बनता है. मसलन कोई व्यक्ति भूत-प्रेत-पितर में ही श्रद्धा रखता है तो वह वैसा ही होता है. तमोगुणी अघोरी उसी तमोगुण के कारण चंडालवत होता है. इसी श्रद्धा के अनुसार संत के चरित्र का निर्धारण शास्त्र करते हैं. कोई संत सिद्ध है या नहीं है, प्रामाणिक है या नहीं है? उसकी शास्त्रीय परीक्षा भी की जाती है. रामकृष्ण परमहंस सिद्ध थे या नहीं, इसकी परीक्षा के लिए विद्वानों की एक सभा बैठी थी और उन्होंने उनके स्वभाव, मनोभाव, चरित्र, वाणी, शारीरिक विकार इत्यादि की परीक्षा करके उन्हें पूर्ण कहा और वे परमहंस कहलाये.

हिन्दू धर्म की श्रुतियों में एक सिद्ध के लिए कुछ प्रमाण बताये गये हैं. भगवद्गीता में स्थितिप्रज्ञ की भाषा बताई गई है. अर्जुन ने पूछा था ” हे केशव समाधि में स्थित स्थिर बुद्धि वाले पुरुष का क्या लक्षण है स्थिर बुद्धि पुरुष कैसे बोलता है कैसे बैठता है कैसे चलता है?”
श्री कृष्ण कहते हैं –
प्रजहाति यदा कामान् सर्वान् पार्थ मनोगतान्।
आत्मन्येवात्मना तुष्टः स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते।।2.55।।
हे पृथानन्दन ! जिस कालमें साधक मनोगत सम्पूर्ण कामनाओंका अच्छी तरह त्याग कर देता है और आत्मा से ही आत्मा में सन्तुष्ट रहता है? उस समय वह स्थितप्रज्ञ कहलाता है।
दुःखेष्वनुद्विग्नमनाः सुखेषु विगतस्पृहः।
वीतरागभयक्रोधः स्थितधीर्मुनिरुच्यते।।2.56।।
दुःखोंकी प्राप्ति होनेपर जिसके मनमें उद्वेग नहीं होता और सुखोंकी प्राप्ति होनेपर जिसके मनमें स्पृहा नहीं होती तथा जो राग, भय और क्रोधसे सर्वथा रहित हो गया है, वह मननशील मनुष्य स्थिरबुद्धि कहा जाता है. जिस तरह कछुआ अपने अङ्गोंको सब ओरसे समेट लेता है, ऐसे ही जिस कालमें यह कर्मयोगी इन्द्रियोंके विषयोंसे इन्द्रियोंको सब प्रकारसे समेट लेता (हटा लेता) है, तब उसकी बुद्धि प्रतिष्ठित हो जाती है.
ये कुछ लक्षण है बाबा या संत के कि वह राग-द्वेष से मुक्त होता है, क्रोध और हिंसा से परे स्थित होता है, वह किसी चीज की इच्छा नहीं करता, उसकी इन्द्रियां पूर्ण रूप से उसके वश में होती हैं, वह त्यागी होता है, वह लोककल्याण को सर्वश्रेष्ठ धर्म मानता है और उसकी बुद्धि ईश्वर में ही प्रतिष्ठित होती है. यह संत जो प्रमाण उपस्थित करता है, उस पर चल कर जनता अपना कल्याण करने में सक्षम होती है. इसके इतर मिथ्याचारी, धूर्त और ठग होते हैं. भगवद्गीता कहती है –

यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते।।3.21।।
समाज का नेतृत्व करने वाला जैसा आचरण प्रस्तुत करता है और जैसा प्रमाण उपस्थित करता है, जनता उसी का अनुसरण करती है. जनता देखती है किसी देश का पीएम तो ठगी करता है, गाय के मूत्र से और जादू से कैंसर ठीक करने वाले ठगों को अपना छोटा भाई कहता है, बलात्कारियों और भ्रष्टाचार करने वाले को बचाता है और भोग विलास को ही जीवन का अंतिम सत्य मानता है. सरकारी धन को अपने भोग विलास में खर्च करता है, अपने प्रचार और फोटो शूट में अरबों खर्च करता है. जब देश जलता है तो घूमने निकल जाता है. इस प्रकार जितना नॉन सेंसिटिव समाज या देश का नेतृत्व करने वाला होता है, उतनी ही नॉन सेंसिटिव जनता भी बन जाती है. यह भगवद्गीता का श्लोक है जो आज बेहद प्रासंगिक है.
कोई ठग बाबा रूप धारण किये हुए आश्रम में कंपनी चला कर भोग के साधन जुटा रहा, महंगी कार और लग्जरी का प्रदर्शन कर रहा है. जनता इसे बाबा होने के लिए स्टैंडर्ड समझती है. जितने धूर्त और ठग हैं वही बाबा बन जाते हैं और उन्हें ठग प्रचारित करते हैं. आज कल वही बाबा माने जाते हैं जिसके भोग विलास के साधन हों. आज का राजनीतिक बाबा हिंसा और घृणा से भरा हुआ शैतान है. जनता समझती है हिंसा भी धर्म है. एक बनिया सदगुरु कम्पनी बना कर करोड़ो लोगों को आयुर्वेद के नाम पर और एक अशास्त्रविहित CUNT भैरवी बना कर उसकी कलात्मक मूर्ति बेच कर ठग रहा है और कह रहा है कि हिंदुओं के भगवान कृष्ण का अपनी मां से INCEST रिलेशन था. हिंदू उसे ही प्रमाण मानकर घर में अपनी मां, बहन या बेटी के साथ यह कर सकता है. बलात्कारी राम रहीम ने तो शोषण के लिए सुरंग बनाया था. वह सुरंग में से लड़की बिस्तर तक मंगवाता था. इस कार्य को करने के लिए उसके आश्रम में वेश्याएं रखी गई थीं. लडकियों के स्कूल में एक वैश्या रख दो, फिर देखो स्कूल का क्या होता है! वह जो प्रमाण उपस्थित करेगी, वह स्कूल के लिए और क्षात्राओं विनाशक हो सकता है. इसी प्रकार यदि धर्म जगत में भी वेश्याओं और दल्लों का चरित्र धारण किये हुए अनेक ठग बाबा विनाशक हो रहे हैं.

हिन्दू धर्म में संत या बाबा एक प्रमाणिक व्यक्ति है. उसकी प्रामाणिकता उसकी शास्त्र निष्ठा और उसके अनुसार त्यागपूर्ण जीवन जीने, तप और तपस्या से आती है. यह कारण है कि आदि शंकराचार्य जैसे आचार्य भगवान सदृश हैं और सनातन धर्म के बारे में प्रमाण हैं. उन्होंने जो चार मठ स्थापित किये थे, उस मठ के आचार्यों की परम्परा समृद्ध रही है और आज भी कलियुग के घोर प्रभाव के बावजूद इन मठों में विराजमान शंकराचार्यों में कोई ज्यादा विकार दृष्टिगोचर नहीं हो रहा है. उनमे सन्यास धर्म अब भी प्रतिष्ठित है.