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वैदिक ज्योतिष में करण का विशेष महत्व है. हिंदू पंचांग के पंचांग अंग है:- तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण. उचित तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण को देखकर ही कोई शुभ या मंगल कार्य किया जाता है. इसके अलावा मुहुर्त का भी इसमें महत्व है. चन्द्र और सूर्य के भोगांश के अन्तर को 6 से भाग देने पर प्राप्त संख्या करण कहलाती है. दूसरे शब्दों में चन्द्र और सूर्य में 6 अंश के अन्तर के समय को एक करण कहते हैं.

एक तिथि में दो करण होते हैं- एक पूर्वार्ध में तथा एक उत्तरार्ध में. कुल 11 करण होते हैं- बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज, विष्टि, शकुनि, चतुष्पाद, नाग और किस्तुघ्न. कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी (14) के उत्तरार्ध में शकुनि, अमावस्या के पूर्वार्ध में चतुष्पाद, अमावस्या के उत्तरार्ध में नाग और शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के पूर्वार्ध में किस्तुघ्न करण होता है. विष्टि करण को भद्रा कहते हैं. भद्रा में शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं.

इसमें किस्तुघन से गणना आरम्भ करने पर पहले 7 करण आठ बार क्रम से पुनरावृ्त होते है। अंत में शेष चार करण स्थिर प्रकृति के है।

करण का विस्तृत फल इस प्रकार से है :-

करण का नामजीव का नामस्वभावफ़लादेश
बवशेरचलायमानजातक स्वस्थ होता है अपने काम को करने के बाद ही सन्तुष्टि को प्राप्त करता है , एक क्षेत्र  में अधिकार रखता है और  अपनी पहिचान बनाता है, अपने जीवन साथी और बच्चो की सुरक्षा को महत्व देता  है , बुद्धि से काम लेता है, शत्रु को परास्त करने के लिये जी जान से लगता है, जीवन का बचपन और बुढापा कष्टकारी होता है जंगल पहाड़  आदि प्रिय स्थान होते है.
बालवचीताचलायमानजातक अपनी सुरक्षा के प्रति आश्वस्त होता है भाग दौड वाले काम मे सफ़ल होता है, लोग जल्दी से आदत को पहचान नही पाते है,ऊंचे स्थानो में रहना पसंद करता है, अपने आसपास के माहौल पर अधिक ध्यान रखता है,आक्रमक होता है गजब की फ़ुर्ती होती है,दिन की बजाय रात को किये काम अधिक सफ़ल होते हैं ,  स्वभाव से  जासूस होता है, अक्सर जीवन साथी सम्बन्धित मामले अधिक परेशान करने वाले होते है.
कौलवसूअरचलायमानजातक का परिवार बडा होता है अपने परिवार की सुरक्षा के लिये ही धन को खर्च करता है, निडरता होती है , आवाज तेज होती है,अपनी पहिचान बनाने के लिये कई प्रकार के उपक्रम करता है, नीच जाति से संरक्षण प्राप्त होता है, आदर का पात्र होता है गले की बीमारियांा करने वालीहोती है एक से अधिक रिश्ते, मान्यतातोओं  से दूर रहना , विजातीय शादी और विजातीय सभ्यता की तरफ़ अधिक आकर्षित होना .
तैतिलगधाचलायमानएक स्थान पर पड़े रहना, भोजन और आराम की तरफ़ अधिक ध्यान देना ,आलसी होना ,चुगली करना लोगों  की खबरो को प्रसारित करना , कामोत्तेजना के समय मे अधिक चंचल हो जाना, कहे अनुसार ही काम करना , अभाव मे स्वस्थ रहना और सम्पन्नता मे बीमारियों का लगना, गर्म प्रदेश अच्छे लगना आदि बाते देखी जाती हैं . अजगरी वृत्ति होती है .
गरहाथीचलायमानराज्य की चाहत रखना, काम मे कम और आराम मे अधिक विश्वास  करना , भले रहने पर सभी के साथ चलना बिगडने पर किसी का नही होना, या खूनी हो जाना रोजमर्रा  के कामो में आलसी होना, समय से सोना जागना सभी कुछ नही होना,अधिक भोजन करना , बल वाले काम करने में आगे रहना आदि
वणिजसांडचलायमानजल्दी से क्रोध आजाना आवारापन , किसी का कहना नही मानना ,पुरुष महिलाओ की तरफ़ और महिला पुरुषो की तरफ़ अधिक आकर्षित होना , रहने वाले स्थान को बार बार बदलते रहना, दूसरे की सम्पत्ति को प्राप्त करने के लिये जी जान लगा देना,विरोधी का डट कर मौत से भी जूझ कर सामना करना या तो परास्त होकर मर जाना या मार देना आदि बाते देखी जाती है.
विष्टिउल्लूचलायमानपाप के कामों मे आगे रहना , चोरी, डकैती,  बलवान को भी परास्त करने की सोचता है , सभी से विरोध वाले काम करना , गुप्त कामो में लगे रहना , गुप्त निवास रखना, रात को अधिक सक्रिय हो जाना, घर के सदस्यो के साथ उनके बालिग होने तक ही साथ देना, हिंसा पर अधिक ध्यान देना ,शराब कबाब तामसी भोजन की रुचि ,  किसी भी प्रकार के खतरे को जल्दी भांप लेने की आदत होना और खतरा आने के पहले ही पलायन कर जाना, पुराने हवेली या महल जैसे स्थान मे रहना पसंद करना , इतिहास की अधिक जानकारी रखना आदि.
शकुनिचिडियास्थिरअपनी सुरक्षा अपने आप करना, अपने ही कुल के लोगो से विश्वासघात होना , पति पत्नी के साथ ही जीवन मे रहना , अन्य के साथ रहने मे दिक्कत का होना, सामूहिक परिवार में  केवल भोजन, लड़ाई झगड़ा अधिकतर परिवारिक सम्बन्धो के मामले मे ही होना आदि बातें इस जातक में देखी जाती हैं .
चतुष्पदकुत्तास्थिरगरीब लेकिन विलासी भी होना, अपने पास जो है उससे अधिक दिखावा करना, अपने ही कुल के लोगो से लड़ाई-झगड़ा करते रहना, पुरुष की वजाय स्त्रियों के प्रति  अधिक क्रियाशील होना, एक ही स्थान पर बने रहने की आदत होना, जो मिल जाये उसी पर संतोष कर लेना , सम्बन्धो के मामले मे शरीर कष्ट होना , सर्व भक्षी होना आदि इस जातक के प्रमुख गुण हैं .
नागसर्पस्थिरस्वाभिमान को हमेशा कायम रखना, अपनी कही बात को पूरा करना , एक से अधिक जीविका,  गुप्त रूप से कार्य करना , कुछ करना और,  वाणी में रुखा पर्ण , कड़क भाषा होना , जिससे एक बार मिल लिया जाये उसे आजीवन याद रखने के लिये कारण बना देना, हर छ: महिने मे रूप का बदल लेना, स्वभाव में  लगातार बदलाव आना इत्यादि इस जातक के गुण हैं .
किस्तुघ्नकीडे मकौडेस्थिरजातक अपने कुल की रक्षा करने वाला होता है, एक साथ रहना पसंद करता है, किसी भी शत्रु पर मिलकर हमला करना और एक साथ दबोच लेना , अपने से बलवान को भी परास्त कर देने की कला होती है,अलगाव में  समाप्त हो जाना , अधिक गर्मी या अधिक सर्दी सहन नही कर पाना ,पानी वाले स्थानों में भीड के साथ रहना आदि इस जातक के गुणों में माना जाता है