 
									दीपावली के महापर्व की शुरूआत धनतेरस के त्यौहार से ही होती है. इस साल धनतेरस का त्यौहार 10 नवंबर दिन शुक्रवार को पड़ रहा है. कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस का पर्व मनाया जाता है. धनतेरस को धनत्रयोदशी के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन धन के देवता कुबेर, औषधि के देवता धनवंतरी और मां लक्ष्मी के पूजन का विधान है. इस दिन खरीदारी करने को भी बहुत शुभ माना जाता है. पौराणिक मान्यता है कि इस दिन सोना, चांदी या बर्तन आदि खरीदने से घर में सुख और सौभाग्य का आगमन होता है. कोई कोई इस दिन कुछ न खरीदने को ही शुभ मानते हैं. दीपावली के महापर्व की शुरूआत धनतेरस के त्यौहार से ही होती है. धनतेरस के दिन धनकुबेर और धनवंतरी देव की पूजा होती है, इसलिये इस त्यौहार को धनतेरस या धनत्रयोदशी के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन लक्ष्मी को घर आमंत्रित करना चाहिए. तंत्र में इस दिन घर से लक्ष्मी का बाहर जाना अशुभ बताया गया है. यदि इस दिन पैसे न खर्च हों तो घर में लक्ष्मी स्थिर रहती है.
धनतेरस मुहूर्त –
पंचांग के अनुसार, इस बार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 10 नवंबर, शुक्रवार दोपहर 12:36 से 11 नवंबर, शनिवार की दोपहर 01:58 तक रहेगी. चूंकि धनतेरस यमराज के लिए दीपदान व पूजा शाम को किया जाता है. इसलिए ये पर्व 10 नवंबर, शुक्रवार को ही मनाया जाएगा. 10 नवंबर, शुक्रवार को धनतेरस पूजा का शुभ मुहूर्त रात 05:47 से 07:43 तक रहेगा. यम दीपदान के लिए प्रदोष काल शाम 05:30 से 08:08 तक रहेगा. पूरा दिन धनतेरस की खरीदारी के लिए शुभ रहेगा.

धनतेरस की कथा –
धनतेरस मनाने की कई पौराणिक कथाएं प्रसिद्ध हैं. उनमें से एक है समुद्र मंथन की कथा. समुद्र मंथन की पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन ही भगवान धनवंतरी अमृत कलश ले कर समुद्र से प्रकट हुए थे और देवताओं को अमृत पिलाकर अमर किया था. इसलिए उनके अवतरण दिवस के रूप में धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है और उनका पूजन होता है. भगवान धनवंतरी को औषधि और चिकित्सा का देवता माना जाता है. भागवत में उन्हें भगवान विष्णु का अंशावतार बताया गया है. वे आयुर्वेद के गुरु हैं, वे ही संपूर्ण संसार को आरोग्य प्रदान करते हैं.
इसके साथ ही धनतेरस मनाने के पीछे भगवान विष्णु के वामन अवतार की कथा का भी उल्लेख आता है. भागवत पुराण के अनुसार धनतेरस के दिन ही वामन अवतार ने असुराज बलि से दान में तीनों लोक मांग कर देवताओं को उनकी खोई हुई संपत्ति और स्वर्ग प्रदान किया था. इसी उपलक्ष्य में देवताओं नें धनतेरस का पर्व मनाया था. 
एक अन्य कथा के अनुसार, राजा बलि तीनो लोकों के स्वामी हो गये थे. एकदिन दैत्य गुरु शुक्राचार्य पधारे. उन्हें देख बलि ने पाद्य अर्घ्य से उनकी पूजा की और आसन प्रदान किया.  शुक्राचार्य ने कहा -राजन, क्या आपने अपनी जनता का हाल देखा हैं? बलि ने कहा-सब कुशल तो है ? शुक्राचार्य ने कहा- नहीं, मेरे साथ चलिए. शुक्राचार्य बलि को लेकर चले और गाँव गाँव भेष बदल कर घुमाया. बलि ने देखा कि उनके राज्य की जनता फटेहाल है, उनके पास कुछ भी नहीं. यह देख बलि ने कहा- भगवन, हमने तीनो लोकों को जीता है फिर भी हमारी जनता दरिद्र क्यों है? शुक्राचार्य ने कहा -क्योंकि लक्ष्मी नहीं हैं. जब तुमने तीनो लोकों को विजय किया उसी समय द्वेष वश देव योनि लक्ष्मी बैकुंठ चली गईं. राजन, तुम उन्हें बैकुंठ से ले आओ. राजा बलि तब बैकुंठ गये और लक्ष्मी से पृथ्वी लोक चलने का आग्रह किया. लक्ष्मी ने कहा- मैं स्वतंत्र हूँ, अपनी इच्छा से आती जाती हूँ. मैं तुम्हारे साथ नहीं जाऊंगी. तब बलि बड़ा क्रोधित हुआ, उसने कहा- देवी, यदि नहीं चलोगी तो मै बलपूर्वक ले जाऊंगा. तीनो लोको को हमने पुण्य और अपने बहुबल से जीता है. तीनो लोकों की लक्ष्मी पर मेरा अधिकार है. यह सुन विष्णु ने बीच बचाव किया और बोले- देवी, बलि ठीक ही कहता है. आप सबकी माता हो, आपको अपने इस पुत्र के साथ अन्याय नहीं करना चाहिए, यह तो मेरा परम भक्त भी है. आप उसके साथ जाएँ. तब लक्ष्मी बलि के साथ पृथ्वी लोक आईं. जिस दिन वे पृथ्वी लोक आईं उस दिन कार्तिक कृष्णपक्ष त्रयोदशी थी. लक्ष्मी ने देखा सभी के घर में दीप लगे हुए हैं, गरीब भी घरों को लीप कर लक्ष्मी के स्वागत के लिए घर के बाहर दीप जलाये हुए हैं. लक्ष्मी को बड़ी प्रसन्नता हुई, उन्होंने सोचा- मेरा ऐसा भावनापूर्ण स्वागत तो देवलोक में भी नहीं होता. उन्होंने बलि से कहा-पुत्र बलि! इस दिन जो कोई तुम्हारा नाम लेकर मेरी पूजा करेगा उस पर मेरी कृपा अवश्य होगी. यह दिन बलि की पूजा का दिन भी माना जाता है. तभी से धनतेरस मनाया जाने लगा. 
धनतेरस के दिन भगवान धनवंतरी के पूजन से स्वास्थ्य और आरोग्य की प्राप्ति होती है, तो वही धन कुबेर के पूजन से धन और संपत्ति की. धनतेरस घर में सुख-समृद्धि के आगमन का पर्व है. इस दिन घर के मुख्य द्वार पर यमदीपक जलाने का विधान है. मान्यता है कि ऐसा करने से यमराज अकाल मृत्यु से अभय प्रदान करते हैं.


 
					 
					 
																			 
																			 
																			 
																			 
																			 
																			 
																			