 
									कुम्भनदास अष्टछाप के प्रसिद्ध भक्त कवि थे. ये परमानंददास जी के समकालीन थे. कुम्भनदास का चरित “चौरासी वैष्णवन की वार्ता” के अनुसार संकलित है. एक बार अकबर बादशाह के बुलाने पर इन्हें फतेहपुर सीकरी जाना पड़ा जहाँ इनका बड़ा सम्मान हुआ. पर इसका इन्हें खेद रहा, राजा के सम्मान से भी प्रसन्नता नहीं हुई तब उन्होंने लिखा संतन को कहाँ सीकरी सों काम …
1-संतन को कहा सीकरी सों काम?
संतन को कहा सीकरी सों काम?
आवत जात पनहियाँ टूटी, बिसरि गयो हरि नाम।।
जिनको मुख देखे दुख उपजत, तिनको करिबे परी सलाम।।
कुभंनदास लाल गिरिधर बिनु, और सबै बेकाम।।
2-माई हौं गिरधरन के गुन गाऊँ
माई हौं गिरधरन के गुन गाऊँ
मेरे तो ब्रत यहै निरंतर, और न रुचि उपजाऊँ ॥
खेलन ऑंगन आउ लाडिले, नेकहु दरसन पाऊँ।
‘कुंभनदास हिलग के कारन, लालचि मन ललचाऊँ ॥
3-रसिकिनि रस में रहत गड़ी।
रसिकिनि रस में रहत गड़ी।
कनक बेलि वृषभान नन्दिनी स्याम तमाल चढ़ी।।
विहरत श्री गोवर्धन धर रति रस केलि बढ़ी।।
4-बैठे लाल फूलन के चौवारे
बैठे लाल फूलन के चौवारे 
कुंतल, बकुल, मालती, चंपा, केतकी, नवल निवारे ॥
जाई, जुही, केबरौ, कूजौ, रायबेलि महँकारे ।
मंद समीर, कीर अति कूजत, मधुपन करत झकारे ॥
राधारमन रंग भरे क्रीड़त, नाँचत मोर अखारे ।
कुंभनदास गिरिधर की छवि पर, कोटिक मन्मथ वारे ॥


 
					 
					 
																			 
																			 
																			 
																			 
																			 
																			 
																			