
यम सूर्य देव के पुत्र हैं जो संज्ञा से उत्पन्न हुए थे. यम और यमी जुड़वाँ पैदा हुए थे. यमी को ही पुराण मे यमुना कहा गया है. यम को धर्मराज और काल भी कहा जाता है. यमराज दक्षिण दिशा के दिक् पाल कहे जाते हैं और मृत्यु के देवता माने जाते हैं. यम के चौदह नाम प्रसिद्ध हैं -यम, धर्मराज, मृत्यु, अन्तक, वैवस्वत, काल, सर्वभूतक्षय, औदुभ्बर, दघ्न, नील, परमेष्ठी, वृकोदर, चित्र और चित्रगुप्त . मार्कण्डेय पुराण के अनुसार जब विश्वकर्मा की कन्या संज्ञा ने अपने पति सूर्य को देखकर भय से आँखें बंद कर ली, तब सूर्य ने क्रुद्ध होकर उसे शाप दिया कि जाओ, तुम्हें जो पुत्र होगा, वह लोगों का मृत्यु रूप से संयमन करने वाला होगा. जब इस पर संज्ञा ने उनकी तरफ चंचल दृष्टि से देखा, तब फिर उन्होने कहा कि तुम्हें जो कन्या होगी, वह इसी प्रकार चंचलता पूर्वक नदी के रूप में बहा करेगी. मृत्यु रूप से नियन्त्रण करने वाले पुत्र यम हुए और कन्या यमी नदी यमुना हुई. यम की बहन ‘यमुना’ अर्थात यमी की भी अनेक कथाएं प्रसिद्ध हैं. कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि यम-यमी को समर्पित है. इस द्वितीया को पूर्व काल में यमुना ने यमराज को अपने घर पर सत्कारपूर्वक भोजन कराया था. ऋग्वेद में यम वैवस्वत सूर्य के पुत्र कहे गये हैं और यमी उनकी पुत्री कही गई है. ऋग्वेद में इन्हें पितरों का नियंता और देवता माना गया है. यम शनि के बड़े भाई हैं.
ऋग्वेद के दशम मंडल में एक प्रसंग है जिसमे यम से यमी सम्भोग की याचना करती है और यम उस याचना को स्वीकार नहीं करते. इस वार्तालाप में यमी कहती है –
ओ चि॒त्सखा॑यं स॒ख्या व॑वृत्यां ति॒रः पु॒रू चि॑दर्ण॒वं ज॑ग॒न्वान् । पि॒तुर्नपा॑त॒मा द॑धीत वे॒धा अधि॒ क्षमि॑ प्रत॒रं दीध्या॑नः ॥
यमी यम से कहती है कि हे सखा मैं तुम्हे मित्रभाव से अपना बनाना चाहती हूँ. ‘पति पत्नी’ परस्पर एक-दूसरे के सखा ही होते हैं. इस अत्यन्त विस्तृत संसार समुद्र में मनुष्य कहाँ से आता है, कहाँ जाता है यह किसको क्या पता? इस बात का विचार करता हुआ ही बुद्धिमान् पुरुष सन्तान को जन्म देता है और अपने इस नश्वर शरीर के नष्ट हो जाने पर भी उस सन्तान के रूप में बना रहता है, इसलिए हे सखा मुझसे सम्भोग कर वीर्य का आधान करो.
न ते॒ सखा॑ स॒ख्यं व॑ष्ट्ये॒तत्सल॑क्ष्मा॒ यद्विषु॑रूपा॒ भवा॑ति । म॒हस्पु॒त्रासो॒ असु॑रस्य वी॒रा दि॒वो ध॒र्तार॑ उर्वि॒या परि॑ ख्यन् ॥
यमी की बात का उत्तर देते हुए यम कहते हैं कि सन्तान प्राप्ति के लिये पुरुष और स्त्री का मित्रभाव तो ठीक ही है, परन्तु हम एक ही माता पिता से उत्पन्न हुए हैं इसलिए तुम मेरी बहन हुई. सहोदर होने से मैं तुमसे सन्तान उत्पन्न नहीं कर सकता और पत्नी रूप में भी नहीं चाहता हूँ. समान लक्षणों वाली कन्या सन्तानोत्पत्ति के लिये विषुरूपा होती है, उससे विरूप सन्तान ही होती है .
उ॒शन्ति॑ घा॒ ते अ॒मृता॑स ए॒तदेक॑स्य चित्त्य॒जसं॒ मर्त्य॑स्य । नि ते॒ मनो॒ मन॑सि धाय्य॒स्मे जन्यु॒: पति॑स्त॒न्व१॒॑मा वि॑विश्याः ॥
यमी पुन: कहती है वे ऋषि जो भोगवृत्ति से ऊपर उठे हुए हैं अर्थात भोगों में नहीं फंसते, वे भी यह दैहिक सम्बन्ध चाहते ही हैं. भगवान से अमैथुनी मानस- सृष्टि में उत्पन्न हुए हुए अमृत पुत्रों ने क्या इस सम्बन्ध की कामना नहीं की? वे तो इस सम्बन्ध में सन्तान के लिए वीर्य का आधान को त्याग ही समझते हैं! सन्तान निर्माण के लिये यह वीर्य का दान तो सचमुच एक महान् त्याग है, इसलिए हे यम! तेरा मन हमारे मन में समाहित हो. तू वीर्य रूप से मेरे शरीर में प्रवेश कर.
को अ॒स्य वे॑द प्रथ॒मस्याह्न॒: क ईं॑ ददर्श॒ क इ॒ह प्र वो॑चत् । बृ॒हन्मि॒त्रस्य॒ वरु॑णस्य॒ धाम॒ कदु॑ ब्रव आहनो॒ वीच्या॒ नॄन् ॥
यमी की इस बात का उत्तर देते हुए यम उसे धर्म का उपदेश करते हैं और कहते हैं कि यह सम्बन्ध ही तो एकमात्र सम्बन्ध नहीं होता. यह स्त्री पुरुष का सम्बन्ध तो दूर दूर का ही होता है. मनुष्य को ऋत के अनुसार धर्म और कर्म करते हुए ईश्वर में योगयुक्त होना चाहिए. ईश्वर ने हमे साथ साथ उत्पन्न कर हमे वेद ज्ञान से आवृत्त किया. हममें प्रभु ने काम व भाव को यज्ञानुष्ठान के लिए प्रदान किया है.