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भारतीय ज्योतिष में राहु को फणी कहा जाता है. जन्म कुंडली में राहु सर्प दोष तथा काल सर्प योग का प्रमुख कारक है. राहु दोष की निवृत्ति के लिए मनसा देवी की पूजा प्रशस्त है. ऐसा माना जाता है कि नागों ने इनसे वचन लिया था कि जो कोई भी इनका नाम और पुत्र आस्तीक का नाम लेगा उसे सर्प दोष नहीं होगा और न ही सर्प दंश से उनकी मृत्यु होगी. मनसा को भगवान शिव और माता पार्वती की सबसे छोटी पुत्री माना जाता है. इनका प्रादुर्भाव शिव के मस्तक से हुआ है इस कारण इनका नाम मनसा पड़ा. महाभारत के अनुसार मनसा देवी नाग वासुकी की बहन हैं.

महाभारत के अनुसार इनका वास्तविक नाम जरत्कारु है और इनके समान नाम वाले पति महर्षि जरत्कारु तथा पुत्र आस्तिक हैं. आस्तिक ने नागों के वंश को नष्ट होने से बचाया था. इनके भाई बहन गणेश जी, कार्तिकेय जी , देवी अशोकसुन्दरी , देवी ज्योति और भगवान अय्यपा हैं. मनसा देवी और सर्प दोष की कथा महाभारत में विस्तार से मिलती है. यह कथा यहाँ पढ़ें.

ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार ये एक नागकन्या थी जो शिव तथा कृष्ण की भक्त थी. उसने कई युगों तक तप किया तथा शिव से वेद तथा कृष्ण मंत्र का ज्ञान प्राप्त किया जो मंत्र आगे जाकर कल्पतरु मंत्र के नाम से प्रचलित हुआ. राहु महादशा में नागों की माता मनसा की पूजा करने से राहु दोष की निवृत्ति होती है, ऐसी प्राचीन समय से मान्यता है.

घर में मनसा देवी की मंगलवार, रविवार और शनिवार को विशेष पूजा करने से राहु दोष की पूर्ण निवृति होती है और राहु दोष से निर्मित संतान दोष भी खत्म हो जाता है. मनसा की विधिवत पूजा से कालसर्प दोष की भी पूर्ण निवृत्ति हो जाती है. सूर्य का विशेष सम्बन्ध नागों से है इसलिए रविवार की पूजा का विशेष महत्व माना जाता है. भारत वर्ष में सैकड़ो मनसा देवी के मन्दिर हैं. मां मनसा देवी का अति प्राचीन बहुप्रसिद्ध मंदिर हरिद्वार से तीन किमी दूर शिवालिक पर्वतमाला पर बिलवा नामक पहाड़ी पर स्थित है. एक प्रसिद्ध मन्दिर पंचकुला हरियाणा में भी स्थित है जिसकी बहुत मान्यता है.