संसारी व्यक्ति ऊंट की तरह है. ऊंट कांटेदार झाड़ियों को खाने का शौक़ीन है. जितना खाता है उसके मुख से रक्त धड़ धड़ करके गिरता रहता है. फिर भी वही काँटा घास खाता रहता है, छोड़ता नहीं. संसारी व्यक्ति भी कितना कष्ट ताप पाता है फिर भी उसे नही छोड़ता. स्त्री मर गई, या दूसरे संग भाग गई, तब भी दुबारा विवाह करेगा. लड़का मर गया, कितना शोक उसकी मां मनाती है? कुछ दिन बाद वही जो शोक में आकाश का सीना चीर देना चाहती थी. फिर कुछ दिन बाद ही बाल बंधे, गहने पहने इतराती घूमती है. कभी कभी सांप छूछून्दर की स्थिति होती है, निगल भी नहीं सकते, छोड़ भी नहीं सकते. बद्ध जीव की स्थिति है कि उसे संसार से थोडा हटा दो तो तड़प कर मर जाएगा.
शास्त्रों में जीव चार प्रकार के बताये गये हैं – बद्ध , मुमुक्षु, मुक्त और नित्य .
संसार एक जाल जैसा है. जीव मछली है. ईश्वर मछुआ है. उसकी माया ही जाल है अर्थात संसार है.
*मछुवे के जाल में जब मछली फंसती है तो कोई कोई मछली जाल काट कार भाग जाती है. यह मुमुक्षु जीव हैं हम जैसे.
*जो भागने की कोशिस करती है वे सभी नहीं भाग पाती. दो चार धप्प करके कूद जाती हैं. लोग कहते है- अरे वो बड़ी वाली तो भाग गई. ये मुक्त जीव हैं.
*कुछ स्वभाव से सावधान रहती हैं, वो जाल में पडती ही नहीं जैसे नारद आदि ऋषि . ये नित्य मुक्त हैं.
*अंतिम वो जो सबसे ज्यादा पकड़ी और काटी जाती हैं.उनके डिश बनते हैं. उन्हें बोध नहीं होता. वे जाल में पड़े पड़े जाल सहित कीचड़ में गिर पडती हैं. कीचड़ में छिपने का प्रयास करती हैं. भागने की चेष्टा नहीं करती. ये बद्ध जीव हैं. ये जाल में रहते हैं और सोचते हैं यही पर हम अच्छे हैं.
अनित्यमसुखं लोकमिमं प्राप्य भजस्व माम्।।-भगवद्गीता
अनित्य और सुखरहित इस लोक को तो तू प्राप्त हो ही गया है तो भी कोई बात नहीं, तू मेरी उपासना कर, मुझमे अपना चित्त और मन लगा. इससे तुझे नित्य सुख की प्राप्ति होगी

