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जब किसी भी राशि में सूर्य और चंद्रमा की युति होती है तो अमावस्या होती है. सूर्य युति के कारण सूर्य के प्रभाव में चंद्रमा अपनी कलाओं से शून्य हो जाता है और अपनी शक्ति और सौम्य सकारात्मक प्रभाव खो देता है. अमावस्या तीन प्रकार की होती है-सिनीवाली, दर्श और कुहू. प्रातःकाल से लेकर रात्रि तक रहने वाली अमावस्या को सिनीवाली, चतुर्दशी से बिद्ध को दर्श एवं प्रतिपदा से युक्त अमावस्या को कुहू कहते हैं और चतुर्दशी के दिन ही अमावस्या शुरू हो और चन्द्र दर्शन हो तो उसे सिनीवाली कहते हैं. तीनों के अलग अलग फल बताये गये हैं. जन्म कुंडली में इस दोष से जातक के लिए कई शारीरिक और मानसिक संघर्ष की पैदा होती है. अमावस्या मृत्यु है. अमावस्या के दिन चन्द्रमा अपनी सभी कलाओं को खो देता है, एक प्रकार से उसकी मृत्यु हो जाती है. वैज्ञानिकों ने पूर्णिमा और अमावस्या में पक्षियों के व्यवहार का अध्ययन में यह पाया कि पूर्णिमा के दिन पक्षी लम्बी यात्रायें करते हैं, बहुत ऊँचा उड़ते हैं, पानी में खूब उतरते हैं और ज्यादा क्रियाशील रहते हैं जबकि अमावस्या में वे कम क्रियाशील रहते हैं. मन और भावनाओं का कारक है चंद्रमा; इसके शक्तिहीन होने से जातक के विकास में बाधाएं आती है, उसे ज्यादा संघर्ष करना पड़ता है. वैदिक ज्योतिष में तिथि की गणना चंद्रमा सूर्य की दुरी पर आधारित है. एक तिथि 12 डिग्री की होती है. अमावस्या दोष की तीव्रता सूर्य और चंद्रमा की युति की डिग्री के आधार पर भिन्न भिन्न होती है. अमावस्या तिथि पर राहु शासन करता है, इसलिए जन्म कुंडली में अमावस्या दोष का होना ज्यादा अशुभ माना जाता है.

कुछ अमावस्या तिथियाँ विशेष मानी गई हैं जैसे माघ अमावस्या इसलिए महत्वपूर्ण है क्योकि इस दिन कलियुग का प्रारम्भ हुआ था. अमावस्या एक पर्व तिथि है क्योंकि यह पितरो की तिथि अर्थात इसका सम्बन्ध मृतकों और प्रेतात्माओं से हैं. अमावस्या में मृतकों और प्रेतात्माओं से सम्बन्धित कर्म किये जाते हैं. ऐसे में यह अन्य कार्यों के लिए यह शुभ तिथि नहीं है. यदि अमावस्या तिथि तीन याम से अधिक है तभी उसे श्राद्ध कर्म में ग्रहण किया जाता है. अमावस्या अपराह्न या सायं तक होनी चाहिए, पितरो का श्राद्ध दोपहर के बाद ही किया जाता है. ज्योतिष में जन्म के 17 दोष होते हैं जिनमे तीन तिथियों से सम्बन्धित है जिनमे अमावस्या, कृष्ण चतुर्दशी, सार्पशीर्ष और भद्रा है.

ये दोष विकट दोष कहे गये हैं. यदि अमावस्या में अनुराधानक्षत्र हो तो उसके तीसरे चौथे चरण में सार्पशीर्ष होता है, इसमें जन्म लेने का दोष अत्यंत प्रबल माना गया है. यहाँ अमावस्या एक अशुभ तिथि तो हो ही गई साथ में राशि- नक्षत्र योग भी हो गया है. इसके इतर अशुभ योग बताये गये हैं जिनमे जन्म बहुत सारे संकट देने वाले होते हैं. अमावस्या का दोष इतना प्रबल होता है कि जातक इस दोष के कारण जीवन भर परेशान रहता है. यदि दोष प्रबल है और कुछ अनिष्टकारी योग भी है कुंडली में तो जातक के लिए यह अल्पायु का योग बना देता है या इसके दुष्प्रभाव में जातक हत्या या आत्महत्या जैसे कर्म कर डालता है.

अमावस्या में चन्द्रमा के अस्त होने के कारण जातक का मानसिक अवस्था खराब होती है और उनके पागलखाने जाने का योग भी बन जाता है. तीन अमावस्या में चन्द्र विहीन कुहू नाम की अमावस्या ज्यादा खराब होती है. स्त्री जातक के लिए अमावस्या जन्म का दोष ज्यादा खतरनाक होता है, इस दोष में स्त्री पुत्र और पति दोनों के लिए घातक हो सकती है. अमावस्या के एकदिन पहले चतुर्दशी और अमावस्या के एक दिन बाद प्रतिपदा में चन्द्र दोष होता है इसलिए इन्हें शुभ नहीं माना गया है. चन्द्रमा का काल बल ही महत्वपूर्ण बल है. चन्द्रमा कमजोर होने पर जातक के सुख नष्ट होते हैं और कष्ट और दुःख की जीवन में प्रधानता रहती है. इन जातकों में चन्द्र कलाओं से हीन रहने के कारण जुर्म की प्रवृत्ति भी होती है. यह दोष लग्न और लग्न स्वामी के बलवान होने और कुछ प्रबल राजयोग होने से कमजोर हो जाता है.

प्रयागराज महाकुम्भ भगदड़ के दिन की कुंडली –

प्रयागराज महा’कुम्भ में सरकारी आंकड़े के अनुसार 30 लोगो की मृत्यु हुई है और 60 लोग घायल है. यह दुर्घटना रात 1-2 am के बीच हुई थी.
दिन -बुधवार
तिथि- अमावस्या
लग्न -वृश्चिक

इस कुंडली सबसे पहली अशुभ बात है कि लग्न स्वामी वक्री मंगल शत्रु राशि में अष्टम हॉउस में स्थित है. द्वितीयेश मारक बृहस्पति सप्तम भाव में वक्री होकर स्थित है और उसकी लग्न पर पूर्ण दृष्टि है. दूसरी तरफ अमावस्या है और चन्द्रमा सूर्य, बुध पर मंगल और बृहस्पति दोनों की दृष्टि है. लग्न पर मारक दृष्टि शनि की भी है. कुंडली में लग्न और चन्द्र दोनों ही अशुभ प्रभाव में हैं और लग्न का स्वामी दु:स्थान में हैं. इस समय सूर्य-बुध-राहु की दशा है. राहु उच्च के मारकेश शुक्र के साथ पंचम भाव में स्थित है जो 22वे द्रेष्काण का स्वामी है. उधर मंगल अशुभ 64वें नवांश में है और उसके स्वामी की भुक्ति है जिसे छिद्र ग्रह की दशा कहा जाता है. मारक भाव में स्थिति वक्री बृहस्पति द्रेष्काण लग्न का स्वामी है. भुक्ति स्वामी द्रेष्काण में मारक भाव में चन्द्रमा और केतु के साथ है जबकि लग्न में प्रत्यंतरदशा स्वामी 22वे द्रेष्काण के स्वामी के साथ है. दशा के अनुसार फल शुभ नहीं है. प्रयाग महाकुम्भ में छिद्र ग्रह अष्टमेश की मारक भुक्ति में घटित हुआ.

वार बुधवार भुक्ति स्वामी बुध कुंडली का क्षिद्र ग्रह किसी ग्रह को यह कुम्भ पसंद नहीं था इसलिए लोग मारे गये. माघ अमावस्या कलियुग की अमावस्या है. इस दिन कलियुग का प्रारम्भ हुआ था.