क्यों महाभारत सात्वत वैष्णवों का एक प्रोपगेंडा ग्रन्थ है? क्यों इसके लेखक वेदव्यास नहीं है.? कारण ये है व्यास देव वेदांत के परमाचार्य हैं उनके बुद्धि इस स्तर की नहीं हो सकती जो यह लिखा कि औरतें और राजकुमारियां सियार और बकरी पैदा करने लगी. ऐसा अपशगुन नहीं होता किसी काल में. किसी वेदांत के बड़े आचार्य की कलम से ऐसे निम्न स्तरीय श्लोक प्रकट नहीं हो सकते.

यह सात्वत वैष्णव बाबाओं द्वारा कृष्ण का दैवीकरण करने के लिए लिखा गया एक प्रोपगेंडा ग्रन्थ है जो लम्बे समय से लिखा जा रहा है और इसकी एडिटिंग लम्बे समय तक की जाती रही है. प्राचीन वैदिक धर्म के पतन के बाद वैष्णव धर्म का तेजी से विकास हुआ और ईसापूर्व 1100-900 के बीच पहली बार मनुष्य को भगवान बनाने का प्रारम्भ हुआ. भारत में मनुष्य या प्रमुख रूप से राजा को देवता के रूप में पूजने का यह पहला उदाहरण है. यह विकृति का पहला कदम था. मिश्र में ईसा पूर्व 2500 में राजा फैरो या फराओ को भगवान माना जाता था और पूजा जाता था. हो सकता है यह विकृति वहीं से आई हो. यह उत्तर वैदिक काल के अंत के बाद का समय माना जाता है. ऐसा शास्त्रों के अध्ययन से पता चलता है कि उत्तर वैदिक काल ईसा पूर्व 1200-900 के बीच तक खत्म हो गया था.

चलिए मोटा मोटा ट्रेस करते है क्यों यह प्रोपगेंडा बुक है. दैवीकरण की प्रवृत्ति पौराणिक बाबाओं की प्रारंभ से ही रही है. लेकिन दैवीकरण सबका नहीं होता, इसकी एक निश्चित परम्परा है. वैष्णव पितृपूजक हैं इसलिए जिसका दैवीकरण किया जाता है वह किसी ऐसे वंश से सम्बन्धित होता जिसका इतिहास इनसे कहीं न कही आवश्यक जुड़ा होता है. यह वंश या कुल क्षत्रिय या ब्राह्मण कुल होता है. राम एक छोटे राजा दशरथ के पुत्र थे जिनका साम्राज्य 500 किलोमीटर के दायरे में भी नहीं था. राजा राम के शासन के समय में ही 500 किलोमीटर दूर मथुरा में बाणासुर नाम का राजा राज करता था. जबकि रामायण में लिखा है कि दसरथ ने इंद्र से युद्ध किया था. सहस्रार्जुन एक मालवा का राजा था. उसे हजार भुजा वाला बताया गया और इसका महिमा मंडन किया गया, जबकि उसने हजारों ब्राह्मणों का कत्लेआम किया. क्यों? क्योंकि उसका पौराणिक इतिहास एक हैहेय वंश से है, जो विष्णु से पैदा हुआ था. यह वैष्णवों के पवित्र यदुवंश में ही पैदा हुआ था. सहस्रार्जुन ने दत्तात्रेय को प्रसन्न किया और उनसे वर प्राप्त किया था. दत्तात्रेय को विष्णु का अवतार कहा जाता है, इनकी पूजा महाभारत में सात्वत भी करते थे. दत्तात्रेय तन्त्र मार्ग के उपदेशक थे. सहस्रार्जुन का एक कल्ट विकसित हुआ और यह कल्ट तन्त्र में भी पाया जाता है. इस राजा के मन्त्र, तन्त्र और यंत्र है जिससे पूजा करके इससे वर प्राप्त किया जा सकता है.
अब महाभारत में यही परम्परा दिखती है. महाराष्ट्र गुजरात के बीच विदर्भ क्षेत्र में कुछ छोटे मोटे खानदान थे, कुछ राजा और कुछ सामंत जो विष्णु की उपासना करते थे. भागवत पुराण में इस वंश का वर्णन है. उनमें सात्वत भी एक छोटा राजा रहा होगा जिसकी जयकार पांचरात्र वैष्णव करते थे और वह विष्णु की पूजा करता था तथा ब्राह्मणों का सम्मान करता था. वह राजा था इसलिए पुजारी वर्ग उसकी जयकार करता था, उसके बदले पुजारी वर्ग को कुछ सोने के सिक्के, अन्न आदि प्राप्त होते थे. पुजारी वर्ग को सिर्फ इसी से काम है. उसके कुल में ही उग्रसेन और वृष्णि नाम का एक सामंत या राजा हुआ. वृष्णि के कुल में ही वासुदेव हुआ जो विष्णु भक्त था. उसकी शादी इसी कुल के उग्रसेन के पुत्र कंस राजा की बहन देवकी से हुई. वासुदेव की पांच बहने थी जिसमे प्रसिद्ध कुंती का नाम आता है जो कृष्ण की बुआ थीं. यह एक ही वंश था जिसमें सत्ता के लिए संघर्ष हुआ.
किसी ज्योतिषी ने कंस को बताया ( जिसे आकाशवाणी कहा गया) कि यह शादी उसके राज्य के लिए खतरा होगी क्योंकि इसकी संतान को पांचरात्र वैष्णव मानेंगे और उसे राजा बनाने का षड्यंत्र करेंगे. पांचरात्र वैष्णवों का समाज पर प्रभाव हैं. यह सुन कर उसने उन्हे बंदी बना लिया. जैसे मुगल काल में भी देखते हो, पुत्र ने पिता को बंदी बना लिया, भाई ने भाई को मार दिया. यह प्राचीन काल में भी होता था. तो इसी प्रकार कंस ने वासुदेव और देवकी को बंदी बन लिया. उसके जेल में पैदा होने वाले एक एक कर सारे बच्चे मार दिए लेकिन एक को चुपके से रात में किसी तरह निकाल दिया गया. यह बालक जो सात्वतो के वृष्णि वंश के वासुदेव और उग्रसेन वंश की कन्या देवकी के गर्भ से पैदा हुआ कृष्ण नाम से प्रसिद्ध हुआ. वह वृंदावन में अन्य यादव जाति के घर पाला बढ़ा, यहीं से उसने संघर्ष किया और कालान्तर में वह राजा बना. यह सात्वत वैष्णव था. वह ब्राह्मणों के साथ रहता था, उनके कार्य करता, उनको एकजुट किया. अन्य यादव आदि जातियों को भी एकजुट किया, जनजाति में जामवंत भालू वंश की लड़की ले आया और उन्हें भी साथ मिलाया. यादव एक क्षेत्र में शक्तिशाली हो गए. धीरे धीरे कृष्ण का राजनीतिक दायरा बढ़ा. कुंती रिश्ते में बुआ थी जो कुरु वंश में ब्याही गई थी तो कुरुवंश से एक स्वाभाविक सम्बन्ध बन गया. कृष्ण का पांडवों से विशेष संबंध था क्योंकि ये भी सात्वत मत को मानते थे और वासुदेव के भक्त थे. कृष्ण ने उनके हित के लिए सब कुछ किया. यही कृष्ण थे जिनका दैवीकरण सात्वत ब्राह्मणों ने किया. 1100 से 900 BC से पंचवीं शताब्दी मध्य युग आते दैवीकरण पूर्ण रूप से स्थापित हो गया और 8वीं-9वीं शताब्दी में लिखे भागवत पुराण में “कृष्णस्तु भगवान स्वयं”.

यह दैवीकरण बिना महाभारत लिखे संभव नहीं था. महाभारत में जगह जगह दैवीकरण एपिसोड लिखे गये हैं. कहीं सूरज ढक देना, कहीं विश्वरूप दिखाना, इंद्र से लड़ कर कल्प वृक्ष ले आना इत्यादि. जितने सात्वत थे कृष्ण को विद्वान और भगवान कह कर प्रचारित करते थे. आज भी जैसे बाबा, कथावाचक एक ठग नरेंद्र मोदी को अवतार बताते हैं.
लेकिन तथ्य यही है कि कृष्ण एक छोटे राजा थे और अपने स्टेट्स के लिए अपने पुत्र और नाती की शादी असुर राजा और दुर्योधन की बेटी से कराई और उनके दामाद बने. बलराम और कृष्ण इतने बलवान भी नहीं थे कि स्वयं दुर्योधन के सम्राज्य को उलट दे और युधिष्ठिर को राजा बना दें. या स्वयं कृष्ण ही सम्राट बन जाते. कृष्ण द्वारका के छोटे इलाके में एक छोटा राज्य चलाते चलाते 120 वर्ष की आयु में एकदम बैकुंठ पधारे.

