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यह सवाल हर हिन्दू को पूछना चाहिए कि जब देश मुगलों का गुलाम था, जब देश अंग्रेजों का गुलाम था और बाबाओं के मठ तब भी थे, बाबा कथा तब भी करते थे. लाखों मन्दिर तब भी थे और लाखों पुजारी तब भी थे. बड़े बड़े बनिया तब भी थे. बड़े बड़े सामंत थे जिनके पास ताकत थी. उस समय उन्होंने कोई हिन्दू राष्ट्र बनाने का आन्दोलन क्यों नहीं किया ? जब भारत की जनता ने और देशभक्तों ने लड़ाई लड़ी और अपना खून बहाया तब भारत देश गुलामी से मुक्त हुआ और स्वतंत्र हुआ. भारत के ऋषि रवीन्द्रनाथ टैगोर ने “जनगणमन अधिनायक जय हे” कि देश की जनता सम्प्रभु है, न की कोई राजा रानी. स्वतंत्र भारत में पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु ने एक एकीकृत भारत बनाया, ऐसा नक्शा जो भारत के 5000 साल के इतिहास में उपस्थित नहीं रहा. वर्तमान भारत का जो वर्तमान मैप है उसे न तो कोई राम-कृष्ण जैसा अवतार बना पाया, न कोई सम्राट बना पाया. इतिहास यही बताता है. यह जनता ने, बढ़े संघर्ष से और बलिदान से बनाया है और इसमें बाबाओं का कोई योगदान नहीं है.

राजा श्री कृष्ण जिन्हें वैष्णवों ने अवतार बनाया, उन्होंने पश्चिमी भारत और उत्तरी भारत का एकीकरण किया था. पांडवों का कोई Trace दक्षिण में नहीं मिलता. कृष्ण भी कभी उधर नहीं गये. उनका राजनीतिक दायरा मथुरा से शुरू होकर द्वारका से इन्द्रप्रस्थ तक था. यही पुराण के अनुसार उनका राजनीतिक मैप है. यदि एक मिनट के लिए आस्था को भूल जाओ और सोचो कि यदि शासक ही भगवान के अवतार थे (जो थे) तो भारत के 5 हजार साल के इतिहास में जवाहरलाल नेहरु ही सबसे बड़े भगवान के अवतार हुए. उन्होंने ही वृहद एकीकृत भारत बनाया जो इतिहास में पहले कभी अस्तित्व में नहीं था. पंडित नेहरु परमज्ञानी, विद्वान् और परम सत्यवादी थे. नेहरु एक बोधिसत्व थे ऐसा ओशो रजनीश मानता था. उनमे जनता के कल्याण की भावना थी, वे सर्वधर्म समभाव के साथ शासन करते थे. उन्होंने भारत में बड़े बड़े इंस्टिट्यूशन बनाये, ज्ञान-विज्ञानं का विकास किया और भारत को सम्प्रभु शक्तिशाली राष्ट्र बनाया बनाया जिसको सारी दुनिया सम्मान से देखती थी. उन्होंने देश की दलित आबादी को ऊपर उठाया, उनके लिए अनेक बड़ी योजनाओं को लागू किया. सभी धर्मों को समान दृष्टि से देखा और सबको विकास के समान मौके दिए. इसरो ने चन्द्रमा और मंगल पर मिशन भेजा और भाभा परमाणु अनुसन्धान केंद्र ने “स्माइलिंग बुद्धा” परमाणु बम बनाया और अमेरिका के आर्थिक नाकाबंदी के बाद भी उसका परिक्षण हुआ. उन्होंने भारत को सम्प्रभु और एक शक्तिशाली राष्ट्र बनाया.

बहुसंख्यक मठाधीश बाबा पहले से ही राष्ट्रवादी नहीं थे. लगभग 1100 साल की गुलामी में एक भी बाबा ने आन्दोलन नहीं किया. पूरे मुगल काल में नहीं किये और ब्रिटिश राज में ही किया. जब देश स्वतंत्र हो गया तब ये धूर्त आन्दोलन करने लगे. कभी सवाल पूछा ये ? क्यों नहीं किये? क्यों जब देश आजाद हुआ तब इन्हें विश्वगुरु चाहिए था? इसकी वजह इनका देशद्रोह है और इनकी गुलाम मानसिकता का होना है. बहुसंख्यक मठाधीश बाबा और कथावाचक मध्ययुग से ही गुलाम मानसिकता के रहे हैं. ये राजाओं से पैसे लेते थे, उनकी जयकार बोलते थे, यहाँ तक कि उन्हें अवतार बताते थे और हिन्दू जनता को पुराण कहानियों से उल्लू बनाये रखते थे. इन्होने स्वतन्त्रता की आवाज नहीं उठाई क्योकि बाबा ही प्रमुख रूप से हिन्दुओं को गुलाम बनाये रखने की प्रमुख भूमिका निभाते थे. इनके प्रमुख अस्त्र थे -अज्ञानता फैलना, झूठ फैलाना, अन्धविश्वास फैलाना और जनता की सोच को विकृत करना. हम संत की बात नहीं कर रहे, संत तो त्यागी होता है. उसका कोई राजनीतिक उद्देश्य भी नहीं होता और न वह भोगी होता है. संत लोककल्याण के लिए कार्य करता है और सत्य धर्म का उपदेश देता है. हम मठाधीश बाबाओं की बात कर रहे, पुजारियों और कथावाचकों की बात कर रहे हैं. ये उद्म्भरी वर्ग जो धर्म का बिजनेस करते थे, इन्हें अच्छा मठ चाहिए, सुविधा चाहिए. यह शासक दे देता था. मुगलों ने भी इन्हें दिया, मुगल मन्दिर भी बना देते थे.

कभी तुमने किसी इसाई को किसी विदेशी राजा की भक्ति करते देखा, किसी मुस्लिम को देखा ऐसा? उनमे देशद्रोही आत्मा नहीं रहती. उनमे गुलाम मानसिकता नहीं है. हिन्दू पुजारियों, बाबाओं, कथावाचकों में यह गुलाम चेतना लम्बे समय से है. देश और हिन्दू यूँ ही 1000 साल से गुलाम नहीं रहा. पीछे दो दशक से राजनीतिक मुहीम के तहत ऐसे बाबाओं-कथावाचकों को काला धन गुजराती बनिया उड़ेल रहे हैं. उनका एकमात्र उद्देश्य राजनीतिक शक्ति प्राप्त करके देश को लूटना था. उस लूटपाट में नरेंद्र मोदी और अडानी जैसे गुजराती बनियों के साथ बाबाओ और कथावाचकों का बड़ा गिरोह सम्मलित हुआ. ये नरेंद्र मोदी के राजनीतिक प्रचार में लग गये है. ज्यादातर आरएसएस के कार्यकर्ता बन गये और हिन्दुओं को विश्वगुरु बनाने लगे. देश को इन्होने हिंसा में झोंक दिया और लूटपाट, बलात्कार और भष्टाचार का बोलबाला हो गया.

ये बाबा धर्म का काम थोड़े कर रहे थे, वे अपना उल्लू सीधा कर रहे थे. इसमें अनेक बड़े प्रसिद्ध बाबा बलात्कार के जुर्म में जेल गये. सभी बाबा गुजराती बनियों द्वारा फंड किये गये थे और उनके मीडिया द्वारा ही उनका प्रचार हुआ था. ऐसे ही मध्ययुग में भी गपोड़ी बाबाओ ने हिन्दुओ को गुलामी में धकेला . ये पुराण से अज्ञानता का विस्तार करते हैं. उसमे अन्धविश्वास तड़का डाल कर हिन्दुओं की पुंगी बजाते हैं और खुद करोड़ो की कार पर चलते हैं, महाभोग करते हैं और मौका मिले तो बलात्कार भी करते हैं. जब तुम देश का कुछ भला करने की सोचो बाबा खड़े हो जायेंगे. जब तुम देश की जनता की स्वतन्त्रता, समानता की बात करो बाबा आन्दोलन करेंगे. जब तुम शिक्षा का प्रचार करो ये उसका विरोध करेंगे. इन्हें कोई वैज्ञानिक शिक्षा नहीं चाहिए, यह इनके अज्ञानता को खत्म कर देगा और इनका अधर्म केन्द्रित बिजनेस डूब जाएगा. इन्हें इसलिए विश्वगुरु चाहिए था और जिसको विश्वगुरु बनाने के लिए चुना, वह जाहिल, महाठग, महाझूठा, भ्रष्टाचारी और अधर्मी था. जब भी’ तुम धर्म का कुछ अच्छा करो तो यही बाबा विरोध करेंगे, पुजारी खड़े हो जायेंगे. इन्होने तो आदि शंकराचार्य को भी नहीं छोड़ा. धर्म विरोधी बताया था. जब स्वामी विवेकानंद हिन्दू धर्म का डंका पीट कर आये तो इन्हीं गपोड़शंख ने उन्हें मद्रास में घेर लिया. अधर्मी, तूने हमारे धर्म पर हमला किया है, जवाब दे . विवेकानंद ने कहा- भाई तुम मेरे पीछे मत पड़ो. हम रूद्र हैं. हम उस गुरु के शिष्य हैं जो तुम्हारा भक्षण कर सकता था. विवेकान्द भी अनेक शिष्यों से घिरे थे जो प्रकांड विद्वान् थे. टिकाधारी भाग खड़े हुए थे.

हिन्दू पुजारियों और बाबाओं से ज्यादा देशभक्त मुस्लिम थे और अब भी हैं. जब मुगलराज स्थापित हुआ, उसके बाद से किसी विदेशी ताकत को उन्होंने भारत नहीं लूटने दिया. उन्होंने भारत को विश्व की महाशक्ति बना दिया था. भले वो हिन्दू नहीं थे लेकिन जब उन्होंने इण्डिया को अपना देश बना लिया तो उसके लिए लड़ मरे. एशिया में भारत से बड़ी शक्ति कोई नहीं थी. दुनिया की अर्थव्यवस्था में मुगलों ने 22.7% जीडीपी के साथ विश्व में सबसे ऊपर स्थान बनाया. चीन का क्विंग साम्राज्य बहुत बड़ा था एकीकृत था लेकिन वो भी मुगलों से बहुत पीछे था. यह देशभक्ति के बिना सम्भव नहीं है.

वंदेमातरम् ..