
निकुम्भला देवी कौन थी ? इनकी मेघनाद पूजा करता था. यह श्रीविद्या की उपविद्या प्रत्यंगिरा हैं. यह दुर्गा देवी की प्रत्यंगिरा भी हैं क्योकि श्री विद्या और दुर्गा में एकत्व है, यह देव्याथर्वशीर्ष से स्पष्ट है. दुर्गा शप्तशती में यदि “शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके। घण्टास्वनेन न: पाहि चापज्यानि: स्वनेन च।।” का सम्पुट कर दिया जाय तो वही निकुम्भला देवी हो जाती हैं. जब मेघनाद निकुम्भला देवी की पूजा और हवन सम्पन्न कर ल्रेता था तो अजेय हो जाता था. उसे निकुम्भला देवी ने वरदान दे दिया था. यह रामायण में आता है.
दुर्गा शप्तशती में यदि बगलामुखी मन्त्र का सम्पुट करके पाठ किया जाय तो किसी भी दुश्मन पर विजय प्राप्त होती है. इसके साथ मृतसंजीवनी विद्या का सम्पुट सभी रोग निवारण करने के लिए किया जाता है. इसमें सिर्फ शैव शाक्त मन्त्रों का सम्पुट ही लगाया जा सकता है क्योकि यह एक शैव-शाक्त ग्रन्थ है और इसके प्रवर्तक महाशैव चिरंजीवी मार्कण्डेय ऋषि हैं. इसके साथ वैदिक मन्त्र “जातवेदसे ” का सम्पुट करने से यह अत्यंत शक्तिशाली पाठ बन जाता है जिससे कोई भी कार्य सम्पन्न किया जा सकता है.
राम-रावण दोनों दुर्गा माता के ही उपासक थे, ऐसा आगम ग्रन्थों में लिखा है. रावण शैव-शाक्त था, राम वैष्णव-शाक्त थे. दोनों ही एक समान बलवान थे. यह सिर्फ शक्ति उपासना से ही सम्भव है. सभी वैदिक शास्त्रों में प्रमुख प्रतिपाद्य शक्ति ही हैं.
दुर्गा देवी की सात्विक, राजसिक, तामसिक तीनो तरह उपासना की जाती है. शास्त्रों में कलियुग में सात्विक पूजा को प्रशस्त नहीं माना गया है और इसे सन्यासी और यतियों के लिए ही कहा गया है. गृहस्थ को देवी की राजसिक उपासना करनी चाहिए. सात्विक उपासना सिर्फ उन्हें करनी चाहिए जिन्हें, ज्ञान, भक्ति और रोगादि की निवृत्ति करनी हो या पुत्रादि की प्राप्ति में बाधा आ रही हो. दुर्गा की राजसिक उपासना में सब कुछ ग्राह्य होता है.