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पौराणिक मान्यताओं के अनुसार बसंत पंचमी के दिन ही समस्त विद्याओं की जननी देवी मां सरस्वती का अवतरण हुआ था. हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल बसंत पंचमी का पर्व माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है. इस दिन से वसंत ऋतु की शुरुआत भी मानी जाती है. हिन्दू वसंत पंचमी का पर्व बहुत हर्ष-उल्लास के साथ मनाते हैं और हर घर, स्कूल में विद्या की देवी मां सरस्वती पूजन करते हैं. मां सरस्वती सभी विद्याओं और कलाओं की माता हैं इसलिए इनकी पूजा से विद्या और बुद्धि की प्राप्ति होती.

देवी भागवत पुराण में कथा है कि माता सरस्वती के बीज मन्त्र जपने से एक गरीब ब्राह्मण को सभी विद्याओं का ज्ञान हो गया था. वसंत पंचमी के घर और विद्या स्थान में सरस्वती पूजा की प्राचीन परम्परा है. इस दिन पीले फूलों से माता सरस्वती की पूजा करना चाहिए और किसी भगवद्गीता जैसे ग्रन्थ को भी पढना चाहिए. विद्यार्थी अपनी स्कूल की किताबो की पूजा कर सकते हैं और उसका माता के समक्षं अध्ययन कर सकते हैं.

वसंत पंचमी मुहूर्त –

पंचांग के अनुसार, माघ शुक्ल पंचमी तिथि की शुरुआत 02 फरवरी को सुबह 09 बजकर 14 मिनट पर हो रही है. इस तिथि का समापन अगले दिन यानी 03 फरवरी को सुबह 06 बजकर 52 मिनट पर होगा. उदया तिथि के अनुसार वसंत पंचमी का त्योहार 02 फरवरी को मनाया जाएगा.

वसंत पंचमी के दिन माता शारदा का विधि पूर्वक पीले वस्त्र धारण कर, पीले पुष्प और विविध नैवेद्यों से पूजन करना चाहिए और उनके स्तोत्र का पाठ करना चाहिए. इस दिन देवी के इस मन्त्र का जप करना चाहिए “ॐ ह्रीँ श्रीँ वद वद वाग्वादिनी स्वाहा “. इसके इतर यह उत्सव का दिन भी होता है ऐसे के कलाओं की देवी पूजा कलाओं से करना चाहिए, नृत्य, गीत और संगीत का आयोजन करना चाहिए. इस दिन के देवता कामदेव भी हैं इसलिए उनकी भी पूजा करनी चाहिए.

सरस्वती स्तोत्र –
या कुन्देन्दु-तुषारहार-धवला या शुभ्र-वस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना ।
या ब्रह्माच्युत-शंकर-प्रभृतिभिर्देवैः सदा पूजिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥ १॥

दोर्भिर्युक्ता चतुर्भिः स्फटिकमणिमयीमक्षमालां दधाना
हस्तेनैकेन पद्मं सितमपि च शुकं पुस्तकं चापरेण ।
भासा कुन्देन्दु-शंखस्फटिकमणिनिभा भासमानाऽसमाना
सा मे वाग्देवतेयं निवसतु वदने सर्वदा सुप्रसन्ना ॥ २॥

आशासु राशी भवदंगवल्लि
भासैव दासीकृत-दुग्धसिन्धुम् ।
मन्दस्मितैर्निन्दित-शारदेन्दुं
वन्देऽरविन्दासन-सुन्दरि त्वाम् ॥ ३॥

शारदा शारदाम्बोजवदना वदनाम्बुजे ।
सर्वदा सर्वदास्माकं सन्निधिं सन्निधिं क्रियात् ॥ ४॥

सरस्वतीं च तां नौमि वागधिष्ठातृ-देवताम् ।
देवत्वं प्रतिपद्यन्ते यदनुग्रहतो जनाः ॥ ५॥

पातु नो निकषग्रावा मतिहेम्नः सरस्वती ।
प्राज्ञेतरपरिच्छेदं वचसैव करोति या ॥ ६॥

शुद्धां ब्रह्मविचारसारपरमा-माद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम् ।
हस्ते स्पाटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थितां
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम् ॥ ७॥

वीणाधरे विपुलमंगलदानशीले
भक्तार्तिनाशिनि विरिंचिहरीशवन्द्ये ।
कीर्तिप्रदेऽखिलमनोरथदे महार्हे
विद्याप्रदायिनि सरस्वति नौमि नित्यम् ॥ ८॥

श्वेताब्जपूर्ण-विमलासन-संस्थिते हे
श्वेताम्बरावृतमनोहरमंजुगात्रे ।
उद्यन्मनोज्ञ-सितपंकजमंजुलास्ये
विद्याप्रदायिनि सरस्वति नौमि नित्यम् ॥ ९॥

मातस्त्वदीय-पदपंकज-भक्तियुक्ता
ये त्वां भजन्ति निखिलानपरान्विहाय ।
ते निर्जरत्वमिह यान्ति कलेवरेण
भूवह्नि-वायु-गगनाम्बु-विनिर्मितेन ॥ १०॥

मोहान्धकार-भरिते हृदये मदीये
मातः सदैव कुरु वासमुदारभावे ।
स्वीयाखिलावयव-निर्मलसुप्रभाभिः
शीघ्रं विनाशय मनोगतमन्धकारम् ॥ ११॥

ब्रह्मा जगत् सृजति पालयतीन्दिरेशः
शम्भुर्विनाशयति देवि तव प्रभावैः ।
न स्यात्कृपा यदि तव प्रकटप्रभावे
न स्युः कथंचिदपि ते निजकार्यदक्षाः ॥ १२॥

लक्ष्मिर्मेधा धरा पुष्टिर्गौरी तृष्टिः प्रभा धृतिः ।
एताभिः पाहि तनुभिरष्टभिर्मां सरस्वती ॥ १३॥

सरसवत्यै नमो नित्यं भद्रकाल्यै नमो नमः
वेद-वेदान्त-वेदांग- विद्यास्थानेभ्य एव च ॥ १४॥

सरस्वति महाभागे विद्ये कमललोचने ।
विद्यारूपे विशालाक्षि विद्यां देहि नमोऽस्तु ते ॥ १५॥

यदक्षर-पदभ्रष्टं मात्राहीनं च यद्भवेत् ।
तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरि ॥ १६॥

॥ इति श्रीसरस्वती स्तोत्रं सम्पूर्णं॥