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वैदिक ज्योतिष में पंचांग में एक योग है जो दिन, तिथियों, नक्षत्र के योग से बनता है. वैदिक ज्योतिष में शोभन योग, शुक्र (किसी किसी के अनुसार बृहस्पति कारक है) से बनता है. यह योग जन्म के समय बनने वाले 27 नित्य योगों में से पांचवां योग है. शोभन योग को बहुत शुभ माना जाता है. सोमवार के साथ अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, आर्द्रा, पुष्य, अश्लेषा, मेघ, पूर्व फाल्गुनी, हस्त, अनुराधा, ज्येष्ठ, मूल, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्व भाद्रपद अथवा रेवती नक्षत्र होने से शोभन योग बनता है. इस योग में चन्द्रमा और सूर्य के बीच अंशात्मक दुरी 53:20 से 66:40 तक होती है. इस योग में जन्मे जातक में कामुकता, आकर्षण, तीक्ष्ण बुद्धि, धार्मिक स्वभाव, आक्रामकता होती है. यह पेशेवर कार्यों के लिये भी अच्छा योग माना जाता है. इस योग से जातकी में बौद्धिकता का विकास होता है, जातक गुणवान और मृदुभाषी होते हैं. ये आकर्षक एवं प्रगतिशील विचार वाले होते हैं. शुभ कार्यों और यात्रा के लिए यह योग उत्तम माना गया है शोभन योग शुक्र द्वारा शासित है.

दूसरा शोभन योग ज्योतिष में ग्रहों के अनुसार भी होता है. कुंडली में यदि शुक्र बृहस्पति या बुध के साथ केंद्र या त्रिकोण में हो और शुक्र उच्च का या स्वगृही हो तो शोभन योग बनता है. यह बहुत शुभ योग है. इस योग में जातक धार्मिक, बुद्धिमान और अत्यंत कामुक होता है. शोभन योग में जातक तीक्ष्ण मेधा शक्ति वाला होता है और उसे कलाओं का बेहतर ज्ञान होता है. यह हॉउस के अनुसार देखना चाहिए, यदि यह योग नवम धर्म भाव में बनता है तो जातक अत्यंत प्रगतिशील और धार्मिक होता है साथ ही उसमे कामुकता भी उत्कृष्ट कोटि की होती है.