
जगनाथपुरी सप्त पवित्र पुरियों में एक है और चार धाम में एक माना जाता है. जगन्नाथ पुरी को पुरुषोत्तम पुरी, शंख क्षेत्र, श्रीक्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है. स्कंद पुराण के अनुसार, प्रथम मन्वंतर के द्वितीय खंड सतयुग में जगन्नाथ जी की पहली रथयात्रा निकली थी. भगवान जगन्नाथ की यह रथयात्रा तीन रथों के साथ की जाती है जिसमे जगन्नाथ मन्दिर के तीन देवता जगन्नाथ भगवान, सुभद्रा और बलभद्र सवार होते हैं. बलभद्र के रथ को ‘तालध्वज’, सुभद्रा के रथ को ‘दर्पदलन’ या ‘पद्म रथ’, भगवान जगन्नाथ के रथ को ‘नंदी घोष’ या ‘गरुड़ ध्वज’ के नाम से जाना जाता है. यह नाम तीनो रथों पर लगे ध्वज के आधार पर दिया गया है. गुण्डिचा मन्दिर की यात्रा के पीछे दो पौराणिक मान्यता है, पहली पद्मपुराण के अनुसार, भगवान जगन्नाथ की बहन ने एक बार नगर देखने की इच्छा जताई. तब जगन्नाथ और बलभद्र अपनी लाडली बहन सुभद्रा को रथ पर बैठाकर नगर दिखाने निकल पड़े. इस दौरान वे मौसी के घर गुंडिचा भी गए और यहां सात दिन ठहरे. तभी से जगन्नाथ यात्रा निकालने की परंपरा चली आ रही है. नारद पुराण और ब्रह्म पुराण के अनुसार मौसी के घर पर भाई-बहन के साथ भगवान खूब पकवान खाते हैं और फिर वह बीमार पड़ जाते हैं. उसके बाद उनका इलाज किया जाता है और फिर स्वस्थ होने के बाद ही जनता को दर्शन देते हैं. स्कन्द पुराण में कहा गया है कि रथ-यात्रा में जो व्यक्ति श्री जगन्नाथ जी के नाम का कीर्तन करता हुआ गुंडीचा नगर तक जाता है वह पुनर्जन्म से मुक्त हो जाता है. जो व्यक्ति श्री जगन्नाथ जी का दर्शन करते हुए, प्रणाम करते हुए मार्ग के धूल-कीचड़ आदि में लोट-लोट कर जाते हैं वे सीधे भगवान श्री विष्णु के उत्तम धाम को जाते हैं. जो व्यक्ति गुंडिचा मंडप में रथ पर विराजमान श्री कृष्ण, बलराम और सुभद्रा देवी के दर्शन दक्षिण दिशा को आते हुए करते हैं वे मोक्ष को प्राप्त होते हैं.
उड़ीसा के पुरी में 27 जून से भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा शुरू होगी. रथयात्रा की प्राचीन परम्परा है, इसका आयोजन हर साल आषाढ़ माह में शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को होता है. यह यात्रा जगन्नाथ मन्दिर से गुण्डिचा मन्दिर तक की जाती है. भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ रथ पर सवार होते हैं और उन्हें भक्त खींचते हुए गुण्डिचा मन्दिर तक ले जाते हैं. गुंडीचा मंदिर को ‘गुंडीचा बाड़ी’ भी कहते हैं. यह भगवान की मौसी का घर है. भगवान 7 दिनों तक आराम करते हैं. इस दौरान गुंडिचा माता मंदिर में खास तैयारी होती है और सात दिन भगवान की यही पर सेवा की जाती है. आषाढ़ माह के दसवें दिन भगवान जगन्नाथ पुन: मुख्य मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं. रथों की वापसी की इस यात्रा की रस्म को बहुड़ा यात्रा कहते हैं. परम्परा के अनुसार साल की सिर्फ दो तिथि में मंदिर के बाहर भगवान दर्शन देते हैं. पहली बार आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को , फिर आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी को जब बाहुड़ा यात्रा के पश्चात भगवान अपने घर में आते हैं. इससे पहले ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन भी भगवान भक्तों को मंदिर से बाहर दर्शन देते हैं.