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कार्तिक पूर्णिमा पर देव दिवाली मनाई जाती है मान्यता है कि इस दिन देवताओं का काशी में प्रवेश हुआ था. ये दिवाली देवताओं को समर्पित है, इसका काशीविश्वनाथ से पौराणिक संबंध है. इस विशेष दिन पर काशी में विशेष पूजा और वृहद पैमाने पर आरती का आयोजन किया जाता है. बड़ी संख्या में श्रद्धालु देव दीपावली देखने काशी आते हैं. भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन राक्षस त्रिपुरासुर का वध कर उसके अत्याचारों से सभी को मुक्त कराया और त्रिपुरारि कहलाये. इससे प्रसन्न देवताओं ने स्वर्ग लोक में दीप जलाकर दीपोत्सव मनाया था तभी से कार्तिक पूर्णिमा को देवदीवाली मनायी जाने लगी. कार्तिक पूर्णिमा के दिन देशभर में देव देवाली भी मनाई जाती है. इस बार पंचांग के अनुसार देव दिवाली 26 नवंबर 2023 को मनाई जाएगी और कार्तिक पूर्णिमा का व्रत, स्नान 27 नवंबर 2023 को होगा.

मुहूर्त-

कार्तिक पूर्णिमा तिथि शुरू – 26 नवंबर 2023, दोपहर 03.53

कार्तिक पूर्णिमा तिथि समाप्त – 27 नवंबर 2023, दोपहर 02.45

  • प्रदोषकाल देव दीपावली मुहूर्त – शाम 05:08 – रात 07:47
  • अवधि – 02 घण्टे 39 मिनट्स

इस दिन प्रदोष काल में देव दीपावली मनाई जाती है.

देव दिवाली की कथा –

 किसी मन्वन्तर में त्रिपुरासुर नामक राक्षस के आतंक से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया था. त्रिपुरासुर, असुर तारकासुर का पुत्र था. ये असुर एक नहीं, बल्कि तीन थे. तीनों ने देवताओं को परास्त करने का संकल्प लिया था. हजारों साल तक तीनों ने ब्रह्मा जी की घोर तपस्या की और ब्रह्मा जी ने तीनों ने देवताओं से परास्त न होने का वरदान प्राप्त कर लिया. ब्रह्मा जी से वरदान पाकर तीनों शक्तिशाली हो गए और घोर अत्याचार करने लगे.

जब देवताओं को जीतने की ईच्छा से त्रिपुरासुर ने स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया तब भयभीत स्वर्ग के देवता ब्रह्मा जी के पास गए. उन्हें स्थिति से अवगत कराया. तब ब्रह्मा जी बोले-वरदान तो मैंने ही उन्हें दिया है. अब मैं कुछ नहीं कर सकता, त्रिपुरासुर को रोकने के लिए आप सभी को भगवान शिव से सहायता लेनी होगी. भोलेनाथ ही आप सबकी रक्षा कर सकते हैं. यह सुनने के बाद सभी देवता कैलाश पहुंचे और महादेव से रक्षा की कामना की. शिव ने उन्हें आश्वस्त करके भेजा.

कालांतर में भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया. इस उपलक्ष्य पर देवताओं ने स्वर्ग में दीप जलाकर दीपावली मनाई. पुराणों में बताया गया है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया था. अतः हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा तिथि पर देव दीपावली मनाई जाती है।

त्रिशंकु की कथा –

त्रिशंकु को राजर्षि विश्वामित्र ने अपने तपोबल से स्वर्ग भेजने का उपक्रम किता था. देवतागण इससे बेहद ही उद्विग्न और भयभीत हो गए. सृष्टि का नियम भंग हो रहा था. इंद्र ने त्रिशंकु को अपने अस्त्र वज्र से मारा तो वह स्वर्ग और पृथ्वी के बीच अधर में लटक गया. स्वर्ग से निकाले जाने के बाद क्षुब्ध विश्वामित्र ने एक नई सृष्टि बनाई जो पृथ्वी-स्वर्ग आदि से मुक्त थी. इसकी रचना उन्होंने अपने तपोबल से की. उन्होंने कुश, मिट्टी, ऊँट, बकरी-भेड़, नारियल, कोहड़ा, सिंघाड़ा आदि की रचना का क्रम शुरू किया. साथ ही विश्वामित्र ने ब्रह्मा-विष्णु-महेश की प्रतिमा भी बनाई. इन प्रतिमाओं को अभिमंत्रित कर उनमें प्राण फूंकना आरंभ किया. इससे पूरी सृष्टि डांवाडोल हो उठी. हर तरफ कोहराम की स्थिति बन गई.

हाहाकार के बीच देवताओं ने राजर्षि विश्वामित्र की मानमनौल किया तब उन्होंने एक अलग और नई सृष्टि की रचना का संकल्प वापस ले लिया. इससे देवताओं और ऋषि-मुनियों खुशी में पृथ्वी, स्वर्ग, पाताल सभी जगह दीपावली मनाई. इसी को हर वर्ष देव दीपावली के तौर पर मनाया जाता है.