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प्राचीनकाल में देवगण व राजा-महाराजा अपने कूटनीति में शत्रुओं का छलपूर्वक साम्राज्य समाप्त करने के लिए वास्तविक ‘विषकन्या’ का प्रयोग किया करते थे. ये विषकन्यायें अत्यधिक सुंदर हुआ करती थी, इनका चुनाव कुंडली में विषकन्या योग से होता था और इन्हें धीरे धीरे ट्रेंड कर ड्रग इत्यादि जहरीले औषधि से और भी विषधारी बना दिया जाता था. 
विषकन्या योग चन्द्रमा से बनने वाला यह योग स्त्रियों के लिए एक बहुत अशुभ योग है. इसका निर्णय बहुत सावधानी से करना चाहिए .
होरा शास्त्र के अनुसार –
स-सर्पग्निजलेशर्क्षे भानुमन्दारवासरे।
भद्रातिथौ जनुर्यस्या: सा विषाख्या कुमारिका।।

अश्लेषा-कृत्तिका-शतभिषा नक्षत्र में रविवार, शनिवार, मंगलवार और भद्रा तिथि (२,७,१२)- इन तीनों योगों में जिस कन्या का जन्म होता है वह विषकन्या होती है.
अर्थात योग के लिए तिथि-दिन-नक्षत्र तीनों उपरोक्त होंने चाहिए. यह इस योग की शर्त है.
यदि इसी जन्म में 5 अशुभ मुहूर्त भी हो जैसे राक्षस, यातुधान, पिता, यम, काल हों तो यह योग और प्रभावशाली हो जाएगा.

सपापश्च शुभौ लग्ने द्वौ पापौ शत्रुभस्थितौ।
यस्या जानुषि सा कन्या विषाख्या परिकीर्तिता।
यदि लग्न मे शुभ और पाप दोनों ग्रह स्थित हो, और दो पाप ग्रह शत्रु राशि मे स्थित हो तो ऐसे योग मे जन्म लेने वाली कन्या विषकन्या होती है. (ये गौड़ योग है .. इसमें तो 80% महिलाएं विषकन्या हो जाएँगी )

विषयोगे समुत्पन्ना मृतवत्सा च दुर्भगा।
वस्त्राभरणहीना च शोकसंतप्तमानसा।
विषकन्या योग मे जन्म लेने वाली स्त्री दुर्भगा ( प्रजनन अंगो मे विकृति या रोग होता है) और वह मृत सन्तान को जन्म देती है तथा वस्त्रों आभूषणों से हीन होकर शोक संतप्त रहती है. अक्सर ऐसी महिलाओं के पति की मृत्यु हो जाती है और महिला बार बार काई बार विवाह करती है. इन महिलाओ में कामुकता ज्यादा होती है.

ऐसा माना गया है कि यदि स्त्री की कुंडली में विषकन्या योग है, परंतु जन्म लग्न या चन्द्र लग्न से सप्तम भाव में सप्तमेश या शुभ ग्रह हो तो ‘विषकन्या’ जनित दोष दूर हो जाता है. सप्तमेश शुभ स्थिति में हो और सप्तम भाव गुरु से दृष्टि हो तो ‘विषकन्या दोष’ दूर होता है. विषकन्या योग के निरस्त होने पर भी विषकन्या योग में उत्पन्न कन्या की शांति करवाना आवश्यक है. जिस तरह नीच ग्रह के दोष नीच भंग होने के बाद भी पूरी तरह नहीं खत्म होते, उसी तरह इन योगों के बारे में भी समझना चाहिए.

उपाय –
1- शादीशुदा वटसावित्री व्रत करे
2- विवाह पूर्व कुम्भ विवाह या श्रीविष्णु या फिर पीपल/समी/बेर वृक्ष के साथ विवाह सम्पन्न करवाएं
3- विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ सदैव करे, बृहस्पति व्रत करे और गुरु बृहस्पति की आराधना करे.
4-दोष निवारण के लिए विधिवत अनुष्ठान कराएँ