श्री ऋगवैदिय पूर्वाम्नाय गोवर्धनमठ पुरीपीठ के श्रीमज्जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी श्री निश्चलानन्द सरस्वतीजी महाराज ने एक महिला के सत्य विषयक जिज्ञासा का समाधान करते हुए कहा कि सृष्टि का अंतिम निमित्त उपादान कारण ही सत्य है. सत्य की परिभाषा के अंतर्गत गुरु देव ने यह भी स्पष्ट रूप से इंगित किया कि नैतिक मूल्य और उसको धारण करने वाला सदाचारी भी सत्य है क्योंकि वह सबके आदि कारण भगवान के ऋत के नियमों को धारण करता है. भगवान का जो भी भक्त है उसमें धर्म के मूल्यों- सत्य, अहिंसा, अचौर्य इत्यादि की प्रतिष्ठा होनी चाहिए. इनके सत्य होने के कारण ही भगवान ने कहा ‘कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्तः प्रणश्यति “हे अर्जुन! तू निश्चयपूर्वक सत्य जान कि मेरा भक्त नष्ट नहीं होता. इस सन्दर्भ में महाभारत ही सबसे प्रमाणिक उदाहरण है, महाभारत में सबका नाश हो गया लेकिन सत्यधर्मा पांडवों का नाश नहीं हुआ. भगवान ने कहा “कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो” मैं मैं सम्पूर्ण लोकोंका क्षय करनेवाला बढ़ा हुआ काल हूँ और इस समय मैं इन सब लोगोंका संहार करनेके लिये यहाँ आया हूँ. तुम्हारे प्रतिपक्षमें जो योद्धालोग खड़े हैं, वे सब तुम्हारे युद्ध किये बिना भी नहीं रहेंगे. काल रूपी भगवान ने सबका भक्षण कर लिया, सब काल के गाल में समा गये, लेकिन अर्जुन के वंश बीज को उन्होंने संरक्षित किया.

