वक्री ग्रह क्या होते हैं ? कोई भी ग्रह वास्तव में न रुकता है और ना ही वक्री होता है. ग्रह की वक्री गति या उसका स्टेशनरी होना, एक मिथ्या प्रतीत है, यह पृथ्वी की गति के सापेक्ष एक आभासी गति होती है. यदि आप एक रुकी ट्रेन में बैठे हैं और जिस समय वह डगरना शुरू करे उसी समय दूसरी पटरी पर कोई तेज गति से ट्रेन गुजरे तो आपको अपनी ट्रेन पीछे चलती हुई दिखाई पडती है. यह एक प्रतीति है, ऐसा होता नहीं. इसी तरह ग्रहों की गति भी है. वक्रगति का अर्थ है, ‘पीछे की ओर गति’. कोई भी ग्रह विशेष जब अपनी सामान्य दिशा की जगह उल्टी दिशा यानि विपरीत दिशा में चलता हुआ दिखाई पड़ता है तो ऐसे ग्रह गति को वक्र गति कहा जाता है. उदाहरण के लिए शनि अपनी सामान्य गति से कुंभ राशि के किसी बिंदु से आगे बढ़ रहा है और मीन राशि की तरफ जा रहा है लेकिन भ्रमण के दौरान ही वह अकस्मात पीछे मकर राशि की तरफ जाता हुआ दिखने लगता है. शनि की यह गति ही वक्री गति कही जाती है. जब इसकी वक्री गति समाप्त होती है तब यह पुन: अपनी सामान्य गति और दिशा में कुम्भ राशि से मीन राशि की तरफ चलना शुरू कर देता हैं. नवग्रहों में सूर्य तथा चन्द्रमा सदैव सामान्य मार्गी ही रहते हैं तथा कभी भी वक्री नहीं होते. इनके अतिरिक्त राहु-केतु सदा उल्टी दिशा में ही चलते हैं अर्थात हमेशा ही वक्री रहते हैं. सिर्फ पांच ग्रह ही वक्री होते हैं.
वक्री ग्रह कैसा परिणाम देते हैं? इस विषय में ज्योतिष ग्रन्थों में सकारात्मक और नकारामक दोनों प्रकार की बातें मिलती है. कुछ ग्रन्थ वक्री ग्रह को शक्तिशाली मानते हैं, कुछ कमजोर मानते हैं और इस आधार पर उसका फल बताते हैं. कुछ ज्योतिषी मानते हैं कि वक्री ग्रह किसी भी कुंडली में सदा अशुभ फल ही प्रदान करते हैं क्योंकि वक्री ग्रह उल्टी दिशा में चलते हैं इसलिए तार्किकत: उनके फल अशुभ ही होंगें. कुछ अन्य मानते हैं कि वक्री ग्रह किसी कुंडली विशेष में अपने स्वभाव से विपरीत आचरण करते हैं अर्थात अगर कोई ग्रह किसी कुंडली में सामान्य रूप से शुभ फल दे रहा है तो वक्री होने की स्थिति में वह अशुभ फल देना शुरू कर देता है. इसी प्रकार अगर कोई ग्रह किसी कुंडली में सामान्य रूप से अशुभ फल दे रहा है तो वक्री होने की स्थिति में वह शुभ फल देना शुरू कर देता है. वक्री होने से दोनों ही स्थितयों में उलटा फल देते हैं. सारावली के लेखक का मत है कि कोई ग्रह अपनी उच्च की राशि में स्थित होने पर वक्री हो जाता है तो उसकी शक्ति कम हो जाती है और अशुभ फल देता हैं जबकि यदि शुभ ग्रह है उच्च का नहीं है तो राजयोग भी दे सकता है अर्थात शुभ फल देता है. अनेक मध्ययुगीन ज्योतिषी वक्री गति को उच्च के ग्रह जैसा मानते हैं. यदि कोई ग्रह वक्री गति से युत हो तो उसकी शक्ति आधी हो जाती है. यदि कोई ग्रह नीच का होकर वक्री हो जाय तो उच्च के ग्रह जैसा शुभ फल; प्रदान करता है. यदि कोई ग्रह अपनी नीच की राशि में वक्री हो जाता है तो उसके फल शुभ हो जाते हैं. इसी प्रकार अनेक तरह की मत वैभिन्यता है.
- शनि 138-140 दिन तक वक्री रहता है और वक्री होने से पहले और बाद में 5 दिन स्थिर अवस्था(stationary) में रहता है
- बृहस्पति 120 दिन वक्री रहता है वक्री होने से पहले और बाद में 3- 4 दिन स्थिर अवस्था में रहता है
- मंगल 80 दिन वक्री रहता है और वक्री होने से पहले और बाद में 2-3 दिन स्थिर अवस्था में रहता है
- शुक्र 42 दिन वक्री रहता है वक्री होने से पहले 2 दिन पहले और बाद में स्थिर अवस्था में रहता है
- बुध 21-24 दिन तक वक्री रहता है वक्री होने से पहले तथा बाद में 1 दिन स्थिर अवस्था में रहता है
सभी ग्रह वक्री होने से पूर्व, धीरे-धीरे अपनी गति को कम करते प्रतीत होते हैं और धीमी गति से चलते-चलते स्थिर अवस्था में आ जाते हैं. इस स्थिर अवस्था से जिस समय उलटी दिशा में गति प्रारम्भ करता है तब हम उसे वक्री कहते हैं. मार्गी होते समय भी ग्रह इसी तरह का वर्ताव करते हैं, पहले स्थिर अवस्था में आते हैं फिर मार्गी होते हैं. इन दो बिन्दुओं को वक्री बिंदु और मार्गी बिंदु कहा जाता है. ज्योतिष ग्रन्थों में वक्री ग्रह के चार बिन्दु बताये गये हैं – छाया बिन्दु, वक्री बिन्दु, मार्गी बिन्दु और प्रक्षेपण बिन्दु. यह निश्चित विज्ञान समझ लेना चाहिए कि ग्रह सदैव मार्गी ही चलते हैं लेकिन पृथ्वी और दूरस्थ ग्रहों की सापेक्षिक गति के कारण द्रष्टा के लिए वे ग्रह वक्री चाल चलते हुए दिख पड़ते हैं. जिस प्रकार रज्जू में सर्प की मिथ्या प्रतीति से मनुष्य डर जाता है उसी प्रकार वक्री ग्रहों का भी प्रभाव मानव पर पड़ता है. बुध मनुष्य की ब्रेन को प्रभावित करता है, इसके वक्री होने से चित्त विभ्रम हो सकता है. पाश्चात्य ज्योतिषी वक्री बुध को लेकर विशेष चिंता व्यक्त करते प्रतीत होते हैं.

ऊपर दिया गया चल चित्र 29 जुलाई 2003 में हुए वक्री मंगल का है जो पृथ्वी से इस प्रकार दिखा था. महाभारत में युद्ध के समय क्रूर ग्रहों मंगल और शनि को वक्री होते देख युद्ध का सूचक माना गया है. जब ज्यादा ग्रह वक्री हो जाएँ तो उन्हें कुछ बुरे होने का निश्चित संकेत (bad omen) माना जाता है.

