
ज्योतिष में नाड़ी विचार न केवल शादी के लिए किया जाता है बल्कि अन्य सम्बन्धों के लिए भी किया जाता है. मन्त्र दीक्षा में मन्त्र और नाड़ी का सम्बन्ध देखा जाता है. यदि मन्त्र और साधक की नाड़ी एक होती है तो उसका नाश होता है, यहाँ तक की मृत्यु तक हो जाती है. नक्षत्र नाड़ी से किसी व्यक्ति की क्षमताओं एवं उसके स्वास्थ्य के विषय में जाना जा सकता है. नाड़ी शब्द संस्कृत शब्द ‘नाड़ी ‘ से आया है जिसका अर्थ है किसी चीज का प्रवाह. भारतीय ज्योतिष में विवाह में वर और वधु की कुंडली की अनुकूलता की जांच के लिए अष्टकूट मिलान में एक प्रमुख कारक नाड़ी भी है, नाड़ी मिलान को सर्वाधिक अंक प्राप्त होते हैं. जब मिलान में इसके अधिकतम 8 अंक मिलते हैं तो इसे अच्छा मिलान मानते हैं. वर-वधू का मिलन अतिउत्तम माना जाता है. जब वर-वधू के जन्म नक्षत्र एक होते हैं अथवा जन्म नक्षत्र ज्ञात न हो तो अगत्या नाम की नाड़ी द्वारा देखने की परम्परा है.
नक्षत्र का 3 नाड़ियों में वर्गीकरण–
ये नाड़ी त्रिगुणात्मक हैं. इससे व्यक्ति की ‘प्रकृति’ का पता चलता है. आयुर्वेद के अनुसार, तीन अलग-अलग प्रकृति में वात, पित्त और कफ को दर्शाते हैं. वात का प्रतिनिधित्व करने वाले सभी नक्षत्र आदि नाड़ी को दर्शाते हैं, पित्त का प्रतिनिधित्व करने वाले सभी नक्षत्र मध्य नाड़ी को दर्शाते हैं और कफ का प्रतिनिधित्व करने वाले सभी नक्षत्र अंत्य नाड़ी को दर्शाते हैं.
अब यहाँ मान लीजिये वर वधू दोनों के नक्षत्र एक ही नाड़ी में हैं तो यह उनके स्वास्थ्य और जीवन के लिए घातक सिद्ध हो सकता है.
27 नक्षत्र का नाड़ी विभाजन –
जन्म कुण्डली में चन्द्रमा जिस नक्षत्र में होता है तो जातक उस नक्षत्र की नाड़ी का माना जाता है.
आदि नाड़ी – अश्विनी नक्षत्र, आर्द्रा नक्षत्र, पुनर्वसु नक्षत्र, उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र, हस्त नक्षत्र, ज्येष्ठ नक्षत्र, मूल नक्षत्र, शतभिषा नक्षत्र, और पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र. इन नक्षत्रों में जन्मे जातक आदि नाड़ी के होते हैं.
मध्य नाड़ी- भरणी नक्षत्र, मृगशिरा नक्षत्र, पुष्य नक्षत्र, पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र, चित्रा नक्षत्र, अनुराधा नक्षत्र, पूर्वाषाढ़ नक्षत्र, धनिष्ठा नक्षत्र और उत्तराभाद्रपद नक्षत्र . इन नक्षत्रों में जन्मे जातक मध्य नाड़ी के होते हैं.
अन्त्य नाड़ी- कृतिका नक्षत्र, रोहिणी नक्षत्र, आश्लेषा नक्षत्र, माघ नक्षत्र, स्वाति नक्षत्र, विशाखा नक्षत्र, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र, श्रवण नक्षत्र या रेवती नक्षत्र. इन नक्षत्रों में जन्मे जातक को अंत्य नाड़ी का माना जाता है.
नाड़ी दोष के प्रभाव-
यदि पुरुष और महिला दोनों एक ही नाड़ी से संबंध रखते हैं, तो नाड़ी मिलान में 8 में से 0 अंक दिए जाते हैं क्योंकि यह नाड़ी दोष माना जाता है. शास्त्र में कहा गया है -तस्मान नाड़ीव्यधो वीक्ष्यो विवाहे शुभमिच्छता.. यदि पुरुष नाड़ी महिला नाड़ी से अलग है, तो 8 में से 8 अंक दिए जाते हैं. आदि नाड़ी से पति को, मध्य नाड़ी से दोनों को और अन्त्य नाड़ी से कन्या को अति कष्ट होता है. सुखी और सफल विवाह के लिए पति और पत्नी की नाड़ियों में अंतर होना चाहिए. कभी भी एक नाड़ी और एक गोत्र में विवाह नहीं करना चाहिए. एक ही नाड़ी होने से मृत्यु तक हो जाती है. नाडी दोष के कारण कई तरह के कुप्रभाव जीवन पर पड़ते हैं. इस दोष से दोनों के स्वास्थ्य पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है. इनके अन्य नकारात्मक परिणामों में लड़ाई, वाद- विवाद और दोनों के बीच इच्छा शक्ति की कमी हो सकती है. इस दोष से मनमुटाव, अलगाव या तलाक लेने तक की स्थिति बन जाती है. अचानक दुर्घटना, मृत्युतुल्य कष्ट की स्थिति से जातक परेशान हो सकता है या आर्थिक तंगी में जा सकता है. इस दोष में संतान संबंधी समस्याएं भी अत्यधिक देखने को मिलती होती हैं. लंबे समय तक विवाहित रहने के बाद भी संतान के सुख में कमी या परेशानी हो सकती है. साथी संतान पैदा करने में सक्षम न हो तो चिंता और तनाव का कारण बन सकता है.