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ज्योतिष ग्रन्थों बताया गया है कि यदि जातक लग्न और लग्नेश बलवान हो तथा कुंडली में एक दो ग्रहयोग बने हों तो जातक का जीवन बेहतर होता है. ऐसा एक योग लग्नाधि योग है. लग्नाधि योग में उत्पन्न जातक राजा, या ,मंत्री या उच्चाधिकारी होता है. यह भूसम्पत्ति का स्वामी होता है तथा दीर्घायु होता है. यह योग तब बनता है जब लग्न से छठे, सातवें और आठवें भाव में शुभ ग्रह हों। कोई हॉउस खाली नहीं होना चाहिए और ग्रहों की शुभता पाप ग्रहों द्वारा नष्ट नहीं होनी चाहिए. इस योग के अनुसार यदि अशुभ भावों शुभ ग्रह हों तो उन भावों शुभ परिणाम होता है।

वर्तमान समय में अनेक ज्योतिषी उल्लू बनाने के लिए मनमानी बाते कहते हैं और बताते हैं कि यह योग तीन प्रकार का भी होता है. यदि ग्रह तीनों भावों में स्थित हों तो शक्तिशाली प्रभाव देते हैं. यदि 2 घर हों तो मध्यम परिणाम और यदि एक घर, तो साधारण परिणाम. जबकि प्राचीन आचार्यों ने स्पष्ट लिखा है कि तीनो भाव में शुभ ग्रह होने पर ही लग्नाधि योग बनता है.

कुछ ज्योतिष विद्वान् मानते हैं कि लग्नाधि योग तभी होता है जब चौथे घर में पाप ग्रह न हो. लग्न से छठवें, सातवें और आठवें पर पाप दृष्टि और पाप ग्रह की युति न हो. यदि पाप ग्रह लग्न से छठवें और सातवें हो तो मनुष्य सुख से वंचित रहता है. ऐसे सभी योगों में सिर्फ सात ग्रह ही लेने चाहिए. राहु और केतु को योगों में नहीं गिना गया है.