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हिन्दू दर्शन में किसी भी चीज जड़ या चेतन की जाति का स्वरूप वेदांत (सांख्य) दर्शन के त्रि-गुणों पर आधारित हैं. उपनिषद में कहा गया है “अजामेकां लोहितशुक्लकृष्णां बह्वीः प्रजाः सृजमानां सरूपाः।” सम्पूर्ण सृष्टि एक अनादि, अजन्मा प्रकृति के तीन गुणों का विकार (manifestation) है. उसने ही अपने तीन गुण सत्व, रजस और तमस से नाना प्रकार की प्रजा की सृष्टि की है. इनका स्वरूप बड़ा क्लिष्ट है. सृष्टि की सभी चीजों में ये गुण सम्मिश्रण के अनुसार कम या ज्यादा रहते हैं. इसी आधार पर सत्ता के स्वरूप का निर्धारण किया गया है, चाहे वो मनुष्य हो, जीव जन्तु हों या भौतिक चीजे जैसे ग्रह, नक्षत्र इत्यादि. हर चीज की जाति होती है. जाति एक शाश्वत सत्य है.

ज्योतिष वेदों की आंख है इसलिए इसका चिन्तन भी वेदों के दर्शन से अलग नहीं है. वेदांत का कर्म सिद्धांत हो या तत्व मीमांसा, यह सब ज्योतिष में लागू है. राशियों, ग्रहों और नक्षत्रों की जाति का निर्धारण वेदांत दर्शन के अनुसार ही किया गया है. ग्रहों की जातियां क्या हैं और मोटा मोटा स्वरूप क्या है? यह इस तालिका में देखें –

ग्रह (Planet)जाति (Caste)स्वरूप (Nature)
1-सूर्य (Sun )क्षत्रिय (Khatriya)सत्व-रजोगुण मिश्रित, कर्म, शौर्य, राजसत्ता, प्रशासक
2-चन्द्रमा (Moon)वैश्य (Vaishya)
मतान्तर पौराणिक (ब्राह्मण)
रजोगुण-सत्वगुण मिश्रित, भोग, चंचलता, व्यापार
3-मंगल (Mars)क्षत्रिय (khatriya)रजोगुण-तमोगुण मिश्रित. युद्ध , क्रूरता, सैन्य कर्म, साहस
4-बुध (Mercury)वैश्य (Vaishya), कायस्थरजस-सत्व मिश्रित, सत्व प्रभावी, व्यापार, बहीखाता वाले, बौधिक कर्म
5-शुक्र (Venus)ब्राह्मण (Brahmin)सत्वगुण-रजोगुण मिश्रित लेकिन रजस प्रभावी, कला,मनोरंजन, नाट्य, काम, सत्व प्रभावी हो तो धर्म और आध्यात्म
6-बृहस्पति (Jupiter)ब्राह्मण (Brahmin)सत्वगुण, धर्म, नैतिक आचरण, सदाचार, उच्च दर्शन, आध्यात्म, उपदेश करने वाले
7- शनि (Saturn)शुद्र (Low caste)तमस, प्रमाद, अविद्या, अज्ञानता, क्रूरता, श्रम. लेबर
8-राहु ( Rahu)चंडाल (most lowly castes), आसुरी प्रकृति, अन्त्यज स्वभाव ग्रहों और रशियों के सम्बन्ध के अनुसार
9- केतु (केतु)चंडाल (most lowly castes)
स्वभाव ग्रहों और रशियों के सम्बन्ध के अनुसार

उपरोक्त विभाजन मोटा मोटा विभाजन है. ग्रहों की प्रकृति और स्वभाव जन्म कुंडली में उसकी राशि स्थिति, नक्षत्रों और अन्य ग्रहों से उसके सम्बन्ध पर निर्भर करता है. चन्द्रमा को वैश्य माना जाता था क्योंकि पूर्व काल में वैश्य ट्रेड के लिए लम्बी यात्रा करते थे. वैश्य भोगी और भोजन प्रेमी होते हैं. चंद्रमा के अनेक गुण वैश्यों में प्राप्त होते हैं इसलिए उसकी जाति वैश्य कही गई.
ज्यादातर ग्रहों की जाति निश्चित स्वरूप वाली है. मंगल में वीरता और साहस होने से मंगल प्रभावित जातक पुलिस, सेना इत्यादि में बहुतायत में पाए जाते हैं. शनि का निश्चित गुण है तमस इसलिए प्रमाद, अज्ञानता, गरीबी, श्रम यह शुद्र जाति के अनुरूप है इसलिए इसकी जाति शुद्र है. ग्रहों का स्वभाव एक गुण से नहीं बनता, उनमे तीनों गुणों का सम्मिश्रण कार्य करता है. उदाहरण के लिए शनि सूर्य की राशि सिंह में अलग चरित्र प्रदर्शित करता है जबकि गुरु की मीन राशि में अलग स्वरूप दिखाता है क्योंकि उसके नैसर्गिक गुण उस राशि के गुण से प्रभावित होते हैं. सभी ग्रहों के बारे में यही बात लागू होती है. ग्रहों की नीचता का अर्थ भी इसमें समाहित होता है. मंगल अग्नि प्रधान है, जब यह जल राशि कर्क में होता है तब इसका नैसर्गिक चरित्र खराब हो जाता है इसके सत्वमय साहस इत्यादि गुणों में कमी आ जाती है.