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भचक्र में अभिजित नक्षत्र को 28वां नक्षत्र माना गया है. इसके शासक ब्रह्मा हैं इसलिए इससे सम्बन्धित मुहूर्त भी ब्रह्मा द्वारा शासित है और उनके वरदान से सर्वसिद्धिकारक माना गया है। तंत्र-आगम में मध्याह्न के अतिरिक्त मध्य रात्रि (निशीथ) काल में भी अभिजित मुहूर्त मान्य है। इसकी शुभता ऐसी है कि ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार – ‘कालं हित्वा सर्वदेशे लग्ने शस्तोऽभिजित्क्षणः अम्भोधि मथनोत्पन्नां प्राप्तोऽत्र कमलां हरि’ जहां कोई शुभ लग्न-मुहूर्त न मिलता हो,वहां सभी कार्य अभिजित मुहूर्त में किए जा सकते हैं। यह सभी नक्षत्रों में श्रेष्ठ माना गया है क्योंकि पूर्व वैदिक काल में ध्रुवतारा रह चूका है और आगे भी यह ध्रुवतारा होगा।

ध्रुवतारा होने के कारण ही इसकी शुभता का वर्णन किया गया है। ध्रुव भगवान के परम भक्त थे जिन्हें इस सृष्टि के केंद्र में स्थापित किया गया था। वर्तमान ध्रुव तारा पोलरिस भागवत पुराण में वर्णित ‘अग्नि’ तारा है। पोलरिस के बाद ऐसा अनुमान है कि 3,100 ईसवी में सिफियस तारा मंडल का Gamma Cephei ध्रुव तारा होगा तत्पश्चात Beta Cephei 5800 ईसवी में और Alpha Cephei 7600 ईसवी में ध्रुव तारा होगा, साईंनस तारा मंडल का डेनेब ( Cygni ) 10,200 ईसवी में ध्रुव तारा होगा , इसी तारा मंडल का Delta Cygni 11,600 में ध्रुव तारा होगा और अंत में 13,700 ईसवी में अभिजित पुन: ध्रुव तारा बन जायेगा।
श्रीमदभागवत पुराण में श्री कृष्ण ने अभिजित को अपना स्वरूप बताया है-
संवत्सरोऽस्म्यनिमिषामृतूनां मधुमाधवौ ।
मासानां मार्गशीर्षोऽहं नक्षत्राणां तथाभिजित्

मैं काल हूँ, मैं सम्वत्सर हूँ, मैं ऋतुओं में मधु-माधव हूँ, महीनों में मार्गशीर्ष हूँ और नक्षत्रों में मैं अभिजित हूँ ।
शिव के त्रिशूल एवं विष्णु के चक्र की शक्ति अभिजित में ही स्थित मानी गई है। भगवान श्री राम और श्री कृष्ण का जन्म अभिजित मुहूर्त में हुआ था। तुलसी रामायण में राम के जन्म मुहूर्त का वर्णन आया है ‘ नवमी तिथि मधु मास पुनीता। सुकलपच्छ अभिजित हरिप्रीता।’ अभिजित भगवान को प्रिय है। अभिजित सभी सिद्धियों को प्रदान करने वाला नक्षत्र है।

क्या होता है अभिजित –

मकर राशि में अभिजित नक्षत्र का विस्तार उत्तराषाढ अंतिम पाद और श्रवण नक्षत्र के प्रथम पाद बीच 6:40:00 से 10:53:20 अंश तक है। यह एक लघु संज्ञक क्षिप्र नक्षत्र है। इसकी जाति वैश्य, योनि नकुल, योनि वैर सर्प है। यह उत्तर-पश्चिम दिशा का स्वामी है।

उत्तराषाढ़ के अंतिम चरण की पन्द्रह घटी और श्रवण के प्रारम्भ की चार घटी मिलकर जो १९ घटी आता है. अभिजित इसी के बीच का काल है। यदि अभिजित का मान 4-13-20 है तो उसमे उत्तरा का एक चरण ३ अंश २० कला और श्रवण का ५३ कला २० विकला = ४ अंश १३ कला २० विकला अभिजित हुआ । इसका सूत्र है – उत्तराषाढ़ भभोग / 4 +श्रवण भभोग / 4 = अभिजित भभोग
अभिजित पन्द्रह मुहूर्तों के मध्य में घटित होता है इसलिए इसे 8वां मुहूर्त माना गया है। यह सभी कामों में शुभ माना गया है सिवाय बुद्धवार को छोड़ कर क्योकि इस दिन इस समय राहू काल होता है। अहोरात्र में मध्यान्ह और मध्यरात्रि के 28 मिनट पूर्व और पश्चात का समय (11. 32 से 12. 28 और 23.32 से 00 .28) अभिजित मुहूर्त होता है। दिन व रात मिलाकर 24 घंटे के समय में, दिन में 15 व रात्रि में 15 मुहूर्त मिलाकर कुल 30 मुहूर्त होते हैं अर्थात् एक मुहूर्त 48 मिनट (2 घटी) का होता है। मुहूर्तों के नाम निम्लिखित हैं – 1.रुद्र, 2.आहि, 3.मित्र, 4.पितॄ, 5.वसु, 6.वाराह, 7.विश्वेदेवा, 8.विधि, 9.सतमुखी, 10.पुरुहूत, 11.वाहिनी, 12.नक्तनकरा,13.वरुण, 14.अर्यमा, 15.भग, 16.गिरीश, 17.अजपाद, 18.अहिर, 19.बुध्न्य, 20.पुष्य, 21.अश्विनी, 22.यम, 23.अग्नि, 24.विधातॄ, 25.कण्ड, 26.अदिति जीव/अमृत, 27.विष्णु, 28.युमिगद्युति, 29.ब्रह्म और 30.समुद्रम।
सूर्य के लग्न से दशम स्थान में स्थिति को भी अभिजित कहा जाता है। अभिजित नक्षत्र मार्गशीर्ष मास ९ नवम्बर-८ दिसम्बर के बीच में उत्तर-पश्चिम में क्षितिज के पास दिखाई देता है। इसी समय इसका उदय होता है। अभिजित नक्षत्र में जन्म होने से जातक दैवी गुणों वाला, करिश्माई, बली, सुंदर रूपवान, साधुओं का प्रिय, नृप तुल्य, यशस्वी, कुलभूषण, दृढ़ निश्चयी, उत्साही, प्रयोगवादी, आविष्कारक, शोधकर्ता, निर्भीक, कौशलतापूर्ण, यात्रा प्रिय, प्रेमी स्वभाव, उदार हृदय मित्र समूह का अभिलाषी, सामाजिक राजनीतिक क्षेत्र में सफल होता है.