उत्तराषाढ़ नक्षत्र के अंतिम चरण की पन्द्रह घटी और श्रवण नक्षत्र के प्रारम्भ की चार घटी मिलकर जो १९ घटी आता है. अभिजित इसी के बीच का काल है. यदि अभिजित का मान 4-13-20 है तो उसमे उत्तरा का एक चरण ३ अंश २० कला और श्रवण का ५३ कला २० विकला = ४ अंश १३ कला २० विकला अभिजित हुआ.
इसका सूत्र है – उत्तराषाढ़ भभोग / 4 +श्रवण भभोग / 4 = अभिजित भभोग
अभिजित पन्द्रह मुहूर्तों के मध्य में घटित होता है इसलिए इसे 8वां मुहूर्त माना गया है. यह सभी कार्यों में शुभ माना गया है सिवाय बुद्धवार को छोड़ कर क्योकि इस दिन इस समय राहू काल होता है. अहोरात्र में मध्यान्ह और मध्यरात्रि के 28 मिनट पूर्व और पश्चात का समय (11. 32 से 12. 28 और 23.32 से 00 .28) अभिजित मुहूर्त होता है. दिन व रात मिलाकर 24 घंटे के समय में, दिन में 15 व रात्रि में 15 मुहूर्त मिलाकर कुल 30 मुहूर्त होते हैं अर्थात् एक मुहूर्त 48 मिनट (2 घटी) का होता है. मुहूर्तों के नाम निम्लिखित हैं – 1.रुद्र, 2.आहि, 3.मित्र, 4.पितॄ, 5.वसु, 6.वाराह, 7.विश्वेदेवा, 8.विधि, 9.सतमुखी, 10.पुरुहूत, 11.वाहिनी, 12.नक्तनकरा,13.वरुण, 14.अर्यमा, 15.भग, 16.गिरीश, 17.अजपाद, 18.अहिर, 19.बुध्न्य, 20.पुष्य, 21.अश्विनी, 22.यम, 23.अग्नि, 24.विधातॄ, 25.कण्ड, 26.अदिति जीव/अमृत, 27.विष्णु, 28.युमिगद्युति, 29.ब्रह्म और 30.समुद्रम।
सूर्य के लग्न से दशम स्थान में स्थिति को भी अभिजित कहा जाता है. अभिजित नक्षत्र मार्गशीर्ष मास ९ नवम्बर-८ दिसम्बर के बीच में उत्तर-पश्चिम में क्षितिज के पास दिखाई देता है. इसी समय इसका उदय होता है.
अभिजित नक्षत्र में जन्म होने से जातक दैवी गुणों वाला, करिश्माई, बली, सुंदर रूपवान, साधुओं का प्रिय, नृप तुल्य, यशस्वी, कुलभूषण, दृढ़ निश्चयी, उत्साही, प्रयोगवादी, आविष्कारक, शोधकर्ता, निर्भीक, कौशलतापूर्ण, यात्रा प्रिय, प्रेमी स्वभाव, उदार हृदय मित्र समूह का अभिलाषी, सामाजिक राजनीतिक क्षेत्र में सफल, अतिथि सत्कार करने में कुशल, सुखानुभूति का इच्छुक, आराम पसंद और विलास प्रेमी, प्रभावशाली व्यक्तित्व का स्वामी, रचनात्मक कार्यों में व्यस्त रहने वाला होता है. अभिजित सभी कर्मों में प्रशस्त माना गया है ‘अभिजिन्नामनक्षत्रं प्रशस्तं शुभकर्मसु’.
सूर्य सिद्धांत के अनुसार अभिजित, ब्रह्महृदय, स्वाति, धनिष्ठा, उत्तर भाद्रपद नक्षत्र कभी भी सूर्य के प्रकाश में अस्त नहीं होते. यह नक्षत्र महाभारत काल से पहले ही क्रांति वृत्त से नीचे खिसक गया था इसलिए अब इसे नक्षत्रों में गिनती नहीं करते लेकिन पूर्व काल में यह एक प्रमुख नक्षत्र था.
त्रिअभिजित – अति शुभ सूर्य भी अभिजित में उत्तराषाढ़ में हो और चन्द्र भी अभिजित पर उत्तराषाढ़ में हो और तिथि (काल,समय , बेला ) भी अभिजित में हो और ६ अंश ४० कला से १० अंश ५३ कला २० विकला के बीच सूर्य स्पष्ट यदि इन अंशो के बीच हो और चन्द्रमा भी इन अंशो के बीच हो तो दोनों में युति होगी अर्थात अमावस्या होगी। यह काल ही त्रिअभिजित काल है. यह अमावस्या माघ की पड़े तो यह नक्षत्र दुर्लभ अभिजित समय रहेगा.

