
जब ज्ञान द्वारा मिथ्यात्व का नाश होता है तब मनुष्य चीत्कार कर उठता है. ठीक उसी तरह जब किसी का मोह नष्ट होता है तो वह रोता बिलखता है. मृत्यु सत्य है. रोज मनुष्य देखता है लोगों की लाश फूलों से सजा कर ले जाते हुए लेकिन मनुष्य इसे स्वीकार नहीं करता. तब तक जब तक कि उसका कोई अपना नही मरता.
अविद्या के साथ भी यही बात है. यह कथा रामकृष्ण परमहंस के जीवन में भी घटित हुई थी जब तोतापूरी ने कहा “ये मूर्ति मिथ्या है, इसको ज्ञान रूपी खड्ग से काट डालो ” रामकृष्ण चीत्कार कर उठे. यदपि एकबार उन्हें यह अनुभव हो चूका था कि वह मूर्ति मिथ्या है. लेकिन अविद्या ने पुन: उनके चित्त को आवृत्त कर लिया था. अब तोतापुरी कह रहे थे कि मिथ्यात्व का नाश हुए बिना सत्य ज्ञान नहीं होता. तब रामकृष्ण ने वही किया और कहते हैं ‘निर्विकल्प’ समाधि हो गई. क्या पता ? हमे तो सम्प्रदाय के शिष्यों द्वारा बाद में लिखी बायोग्राफी को ही मनना पड़ेगा. यदपि की आप यहाँ सत्यता की जांच पड़ताल आराम से कर सकते हैं.
अनिरुद्धाचार्य के गपोड़शंख गुरु चीत्कार कर उठे ..पूरी जिन्दगी विश्वास करते रहे कि भागवत में राधा नाम है लेकिन यह जानकर कि सच में नहीं है चीत्कार कर उठे .. यही अज्ञानता का लक्षण हैं. पौराणिक अज्ञानता का लेवल अलग है, यह सामान्य मनुष्य की अज्ञानता से ज्यादा खतरनाक और पतन करने वाली है. इसने वीडियो में कहा रहस्यवाद/ रहस्यवेत्ता ? यही रहस्यवाद सच है और यह पौराणिक रहस्यवाद है बड़ा वल्गर .. राधा एक तांत्रिक रहस्य का विषय है. एक गुप्त विषय है. इसी रहस्यवाद से सारा राधावाद है, वैष्णवों का सारा भोगविलास है,अनेकानेक सहजियों जैसे वैष्णव कल्ट हैं और इसी रहस्य की तलाश में आशारामों ने राधाओं के बलात्कार किये ..
किसी ने अभी उनके गुप्त राधावाद के पांचरात्रि तांत्रिक-मान्त्रिक आधार का भंजन नहीं किया, यदि कोई कर दे तो ये वैष्णव पौराणिक चोर कहीं मूंह नहीं दिखा पायेंगे .. यदपि कि यह भंजन पहले हो चूका है ..