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सनातन वैदिक हिन्दू धर्म में गर्भस्थ शिशु से लेकर मृत्युपर्यंत जीव के कार्मिक मलों का शोधन, पवित्रीकरण आदि कार्य विशिष्ट वैदिक मन्त्रों तथा क्रियाओं द्वारा किया जाता है जिसे संस्कार कहा जाता है. हिंदू धर्म में सोलह संस्कार होते हैं लेकिन इसके इतर भी अनेकों संस्कार बताए गए है किंतु धर्मज्ञों के अनुसार उनमें से मुख्य सोलह संस्कारों में ही सारे संस्कार समाहित हो जाते हैं. इन संस्कारों के नाम हैं-

(1)गर्भाधान संस्कार, (2)पुंसवन संस्कार, (3) सीमन्तोन्नयन संस्कार, (4) जातकर्म संस्कार, (5) नामकरण संस्कार, (6)निष्क्रमण संस्कार, (7)अन्नप्राशन संस्कार, (8) मुंडन संस्कार, (9) कर्णवेधन संस्कार, (10) विद्यारंभ संस्कार, (11)उपनयन संस्कार, (12)वेदारंभ संस्कार, (13) केशांत संस्कार, (14) सम्वर्तन संस्कार, (15) विवाह संस्कार और (16)अन्त्येष्टि संस्कार।

संस्कार का अभिप्राय उन धार्मिक कृत्यों हैं जो किसी व्यक्ति को वास्तविक रूप मैं हिन्दू बनाता है. संस्कार ही मनुष्य को किसी सभ्यता का हिस्सा बनाए रखते हैं. कोई मुस्लिम अपने संस्कार के कारण मुस्लिम है, उसका खतना एक संस्कार है. वेदों के अलावा गृहसूत्रों में सभी संस्कारों का उल्लेख मिलता है. हिंदू दर्शन के अनुसार, मृत्यु के बाद मात्र यह भौतिक शरीर या देह ही नष्ट होती है, जबकि सूक्ष्म शरीर जन्म-जन्मांतरों तक आत्मा के साथ संयुक्त रहता है. यह सूक्ष्म शरीर ही जन्म-जन्मांतरों के शुभ-अशुभ संस्कारों का वाहक होता है. ये संस्कार मनुष्य के पूर्वजन्मों से ही नहीं आते, अपितु माता-पिता के संस्कार भी रज और वीर्य के माध्यम से उसमें (सूक्ष्म शरीर में) प्रविष्ट होते हैं, जिससे मनुष्य का व्यक्तित्व इन दोनों से ही प्रभावित होता है. बालक के गर्भधारण की परिस्थितियां भी इन पर प्रभाव डालती हैं. ये संस्कार ही प्रत्येक जन्म में संगृहीत (एकत्र) होते चले जाते हैं, जिससे कर्मों (अच्छे-बुरे दोनों) का एक विशाल भंडार बनता जाता है. इसे संचित कर्म कहते हैं. इन संचित कर्मों का कुछ भाग एक जीवन में भोगने के लिए उपस्थित रहता है. इन कर्मों के अच्छे-बुरे संस्कार होने के कारण मनुष्य अपने जीवन में इनसे प्रेरित होकर ही अच्छे बुरे कर्म करता है. फिर इन कर्मों से अच्छे-बुरे नए संस्कार बनते रहते हैं तथा इन संस्कारों की एक अंतहीन श्रृंखला बनती चली जाती है, जिससे मनुष्य के व्यक्तित्व का निर्माण होता है.

ये संस्कार हिन्दू के लिए महत्वपूर्ण संस्कार हैं जिन्हें हर हिन्दू को करवाना चाहिए. आजकल तो विधिपूर्वक मुंडन संस्कार तक नहीं कराते. विवाह ही एक मात्र संस्कार शेष है जो हिन्दू थोड़ा विधिविधान से कर पाता है. श्री-विद्या पीठ काशी के इस वीडियो से जाने कैसे होता है उपनयन संस्कार –