नरेंद्र मोदी ओबीसी नहीं है यह तथ्य स्पष्ट हो चूका है. यह अपरकास्ट वैश्य जाति में तेली उपजाति का हिन्दू है. गुजरात में बनियों का काफी प्रभुत्व है, सभी मनुवादी है और उनमे धर्म नदारद है इसलिए मूलभूत रूप से अधर्मी हैं. भागवत पुराण में बताया गया है कि सौराष्ट्र में सनातन धर्म का अंगभंग हो जायेगा. यह विगत एक दशक में बहुत स्पष्ट हो चूका है. चातुर्वर्ण्य व्यवस्था से सिर्फ दो जाति को फायदा है- शासक क्षत्रिय और वैश्य. राजा मनु ने ब्राह्मण को धार्मिक षड्यंत्र द्वारा इस व्यवस्था को बनाये रखने की जिम्मेदारी दी. इस सिस्टम में बहुसंख्यक ब्राह्मण इससे लाभान्वित नहीं होता, प्राचीन समय की उनकी दरिद्रता की कहानियाँ प्रसिद्ध हैं. ब्राह्मण जाति में बाबा-पुजारी-पंडा वर्ग के सिवाय बहुसंख्यक ब्राह्मण पहले भी दलित की तरह था और आज भी दलित की तरह ही है. क्षत्रिय राजाओं द्वारा सुदामा के चरित्र का विकास भी बाबा-पंडा-पुजारी वर्ग का एक षड्यंत्र था. सुदामा के मित्र थे द्वारका के राजा, उसके कई बच्चे गरीबी में भूख से मर गये लेकिन राजा से उसको कोई लाभ नहीं मिला. पत्नी ने बहुत जोर जबरदस्ती करके मित्र से कुछ मांगने के लिए भेजा था तब वृद्धावस्था में उसको राजा घर बनवा दिया जिससे वह सुखी हो गया. यह आदर्श स्थापित किया गया कि ब्राह्मण क्षत्रिय-बनिया के शोषणतन्त्र की धर्म द्वारा रक्षा करे, बदले में समय समय पर कुछ रोटी के टुकड़े फेंक दिए जायेंगे. बाबा-पंडा वर्ग अपने निहित स्वार्थ के कारण बहुसंख्यक ब्राह्मण को बरगलाते रहे हैं. जब शंकराचार्य या कथावाचक यह कहते हैं कि ब्राह्मण शासक नहीं हो सकता, उसका काम सिर्फ तप करना और बरगलाना है. अथवा तप से जो कुछ प्राप्त हो उसका निवेश शोषण तन्त्र के लिए करे जैसा तुलसीदास ने किया तो तात्पर्य उनकी स्वार्थ सिद्धि होता है क्योंकि वह बाबा-पंडा-कथावाचक ब्राह्मण जाति है लेकिन एक वर्ग (class) है..यह अंतर समझना चाहिए.
तुलसीदास की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. पूरी जिन्दगी कष्ट और यातना सह कर इस मूर्ख ब्राह्मण ने धर्म की सेवा नहीं की, अपने आत्म कल्याण के लिए नहीं लिखा. उसने मनुवाद के शोषण तन्त्र के लिए लिखा रामचरित मानस, जिसमे दलितों, स्त्रियों का घोर अपमान किया गया है और उनपर दमन करने को धर्म बताया गया है. यह व्यक्ति दरिद्रता में मर गया, मुक्ति ? ऐसे लोगो को मुक्ति नहीं मिलती. ब्राह्मण जाति में जन्मे व्यक्ति को कभी तुलसीदास बनकर मनुवाद की सेवा नहीं करनी चाहिए, उसे मनुष्यता की सेवा करनी चाहिए और धर्म के वास्तविक स्वरूप को जनता के समक्ष रखना चाहिए. खैर, तो जहाँ तक दलित की बात है, उन्हें स्व-सामर्थ्य के विकास में खुद को नियुक्त करना चाहिए. सामंतवाद की नकल न कर, नये आधुनिक मार्ग से खुद को आधुनिक बनाना चाहिए और स्वयं को मनुवाद से अगल स्थापित करना चाहिए. सामंतवादी चेतना से मुक्त होकर आगे बढ़ने की जरूरत है.
मनुवाद की बातें करने वाले बाबाओं, पंडो और कथाकारों को गुजरात के बनिया खूब ढेर सारा कालाधन ठेलते हैं जिससे गुजरात में मनुवाद अपने सबसे घृणित और विकृत रूप में दिख रहा है. विगत दस वर्षों में इस राज्य में ही दलितों पर सबसे ज्यादा अत्याचार हुए हैं. यह वीडियो इसका एक अन्य प्रमाण है.

