
भगवान विष्णु के वराह अवतार की कथा लगभग सभी पुराणों में प्राप्त है, भागवत पुराण में भी यह कथा मिलती है. वराह अवतार, भगवान विष्णु के चौबीस अवतारों में से तीसरा अवतार कहा गया है. जब असुर शक्तियों का प्रभाव बढ़ जाता है तब विष्णु का अवतार होता है. आसुरी शक्तियों के बल का पराभव करने के लिए तदनुसार उनका स्वरूप होता है. अवतार के अवतरण में पृथ्वी की प्रमुख भूमिका होती है, पृथ्वी गौ रूप ही है. पुराण लिखने वाले ब्राह्मणों की मान्यता है कि धर्म तभी वृद्धि को प्राप्त कर सकता है जब तक भैतिक संसाधन सभी प्राणियों को समान रूप से उपलब्ध हों. यदि कोई राजा भौतिक संसाधनों का अपहरण करता है तो उससे जनता पीड़ित होती है और जनता के पीड़ित होने पर धर्म कर्म बाधित हो जाता है. धर्म और धन का गहरा सम्बन्ध है. यज्ञ, दान आदि बिना धन के सम्भव नहीं है और उसके न होने पर धर्म कार्य करने वाले सन्यासी आचार्यों और ब्राह्मणों इत्यादि को कुछ भी प्राप्त नहीं होता. यह धर्म गृहस्थ आश्रम पर ही आश्रित है, उनके धनविहीन, अन्नविहीन और दु:खी होने पर यह धर्म भी क्षीण होने लगता है. विष्णु का वराह उस समय हुआ जब पृथ्वी का शासक हिरण्याक्ष ने भौतिक संसाधनो का अपहरण कर लिया और पृथ्वी को रसातल में ले कर चला गया. पुराण कथा में यह भी कहा गया है कि भौतिक संसाधनों के साथ हिरण्याक्ष ने ज्ञान पर भी अधिकार कर लिया और वेदों को भी रसातल में ले कर गया. रसातल में राक्षस रहते हैं. इसका दूसरा अर्थ इस प्रकार भी लगाया जा सकता है कि जो आसुरी शक्तियाँ हैं वो एक अंडरवर्ड का निर्माण करती हैं और जनता के धन आदि अपहरण कर रसातल में अपने क्लास या वर्ग के साथ पूर्ण भौतिक सुख भोगते हैं. आधुनिक युग में अर्थव्यवस्था का एक हिस्सा अंडरवर्ल्ड से सम्बन्धित है. कुछ उद्योग अंडरवर्ल्ड का हिस्सा हाँ जैसे फैशन, बॉलीवुड, ड्रग उद्योग इत्यादि. ये उद्योग काले धन पर आधारित हैं और ये जनविरोधी कर्म करते हैं. इसी प्रकार हिरण्याक्ष ने अपने शासन में भौतिक संसाधनों पर पूर्ण अधिपत्य स्थापित कर लिया और उसका अपहरण कर रसातल में ले गया.
पृथ्वी के अपहरण होने से अर्थात भौतिक संसाधनों पर कुछ राक्षसी शक्तियों का अधिकार होने से जनता पीड़ित होने लगी, अन्नादि की कमी से जनता त्राहि त्राहि करने लगी, ज्ञान प्रदान करने वाले विद्वान् ब्राह्मण पीड़ित किये जाने लगे, राक्षस उनका बध करने लगे, इस प्रकार धर्म कर्म रुक गया और क्षीण हो गया. आसुरी शक्तियों ने अज्ञानता और अधर्म का विस्तार किया और उसे ही धर्म बताने लगे. दैत्य हिरण्याक्ष मद का प्रतीक है, वह शक्ति के मद में अँधा है और घोर अहंकारी है. वह जादू, टोना और ऐसी मायावी शक्तियों का स्वामी है. उसकी शक्तियों से सामना करने का साहस ऋषि महर्षियों में नहीं है और न किसी देवता में है. हिरण्याक्ष यज्ञ का भाग असुरो को प्रदान करता है जिससे असुर बलशाली हो गये हैं. यह लोक भी यज्ञ है अर्थात यह अर्थव्यवस्था और राज्य कर्म भी एक यज्ञ है. यदि इसका लाभ सिर्फ इस यज्ञ के कर्ता सिर्फ उन्हें ही प्रदान करें जो उनके सहयोगी और मित्र हैं तथा जनता को इसका कोई लाभ न मिले तो यह भी कुछ वैसे ही है जैसे यज्ञ भाग. वेदों में यज्ञ भाग पर देवताओं का ही अधिकार बताया गया है क्योकि देवता सदैव लोककल्याण में लगे रहते हैं. इसके विपरीत दैत्य और असुर जब यज्ञ भाग पर अधिकार कर लेते हैं तो उसका लाभ सिर्फ दैत्यों को मिलता है और दैत्य बलवान होने लगते हैं. आधुनिक परिप्रेक्ष्य में देखें तो जिस प्रकार से संसाधनों पर चन्द्र पूंजीपतियों का अधिकार हो गया है और जनता की सम्पत्तियों को जिस प्रकार से वर्तमान शासन गौतम अडानी को बेच रहा है, उससे जनता ही पीड़ित हो रही है. अर्थव्यवस्था का जनता को कोई लाभ प्राप्त नहीं हो रहा है. जनता को बहुत प्रकार से पीड़ित किया जा रहा है. अधिकारों के लिए बोलने वाले या प्रदर्शन करने वाले लोगों को गोली मार दी जा रही है. किसान को आतंकवादी बता कर उसे शहर में नहीं घुसने दिया जाता है. विद्यार्थी अपने जॉब के अधिकार की बात करता है तो उसे डंडों से पीटा जा रहा है. अनेक प्रकार के टैक्स के साथ पॉपकोर्न पर भी GST टैक्स लगा कर असुरों को बलवान बनाया जा रहा है. जनता अत्यंत पीड़ित है. इसी प्रकार हिरण्याक्ष की कहानी है.
यह दैत्य मदशाली और घोर अहंकारी है. ऐसे मद वाले का वध करने में वही सक्षम हो सकता है जिसमे मद उससे ज्यादा हो. जंगली वाराह आकार और बल में सुअरों से बहुत शक्तिशाली होता है और इसमें मद सबसे अधिक होता है, यह अपने मद में जब अपने थूथुन से वृक्ष मूल में प्रहार करता है तो वृक्ष मूल सहित उखड़ कर गिर जाता है. जिस तरह सूकर हूँकार करता है उसी प्रकार हुंकार करते हुए वाराह ने हिरण्याक्ष का वध किया. हुंकार को मन्त्र शास्त्र में सूकर बीज भी कहा गया है. मत्स्यपुराण में वराह अवतार को वृषाकपि कहा गया है “हिरण्यरेतास्त्रिशिखस्ततो भूत्वा वृषाकपि” और उनकी पत्नी को वृषाकपायी बताया गया है.
रसां गतामेव मचिनत्यविक्रम: सुरोत्तम: प्रवरवराहरूपधृक।
वृषाकपि: प्रसभमथैदंष्ट्रया समुद्धरद्द्धरणिमतुल्यपौरुष: ।।
निरुक्त में वृषाकपायी को सूर्य की पत्नी बताया गया है. वृषाकपायी के साथ उषस और सूर्या भी सूर्य की पत्नियाँ हैं. वृषाकपि सूर्य हैं. ऋग्वेद दशम मंडल के मन्त्र में उन्हें सूर्य ही कहा गया है –
यदुद॑ञ्चो वृषाकपे गृ॒हमि॒न्द्राज॑गन्तन । क्व१॒॑ स्य पु॑ल्व॒घो मृ॒गः कम॑गञ्जन॒योप॑नो॒ विश्व॑स्मा॒दिन्द्र॒ उत्त॑रः ॥
सूर्य ही रूद्र भी हैं. इस सम्बन्ध से चूँकि वृषाकपि में कपि लगा है, रामायणी हनुमान को रूद्र अवतार बताते हैं. –
“नाहमि॑न्द्राणि रारण॒ सख्यु॑र्वृ॒षाक॑पेॠ॒ते । यस्ये॒दमप्यं॑ ह॒विः प्रि॒यं दे॒वेषु॒ गच्छ॑ति॒ विश्व॑स्मा॒दिन्द्र॒ उत्त॑रः ॥”
ऋग्वेद में ये वृषाकपि इंद्र के मित्र हैं और उसे मत्तसखा कहा गया है. इंद्र के साथ रहता था और मित्र था, अक्सर इन्द्राणी को सेक्सुअली परेशान करता रहता था. वराह अवतार का उद्गम स्थल ऋग्वेद के दशम मंडल की ये ऋचाएं है. कपि वास्तव में न केवल बन्दर या कपि प्रजाति के लिए प्रयुक्त होता है बल्कि वराह जैसे जंगली जीवो के लिए भी प्रयुक्त होता है. वाल्मीकि रामायण में मृग और शश का प्रयोग एक ही अर्थ में किया गया है. वृषाकपायी सूर्य की पत्नी हैं तो निरुक्त से वृषाकपि ही सूर्य हैं यह निश्चित होता है. वेदों में जो विष्णु हैं वो आदित्यों की तरह ही एक देवता हैं. वैष्णव सम्प्रदाय में उनका 2000 साल में कायांतरण हुआ और एक सौर्य देवता से वे एक स्वतंत्र सृष्टि के नियामक देवता के रूप में स्थापित हुए. इंद्र, आदित्य, वसुगण, वरुण इत्यादि वैदिक देवताओं के बीच विष्णु भी एक देवता हैं जो कालान्तर में यज्ञपुरुष हैं और बाद में परमपुरुष. उपनिषद में 33 देवताओं में विष्णु का नाम शरीक है और आदित्यों में ही इन्हें गिन लिया जाता है. कालान्तर में विष्णु ही द्वादश आदित्य भी हो जाते हैं. ऋग्वेद में असुरो से युद्ध में इंद्र इन्हें साथ लेता है और मिलकर असुरों को पराजित करते हैं. खैर, ये विषय नहीं है. विषय है कि वृषाकपि विष्णु जो आदित्य या सूर्य हैं, वही वाराह अवतार धारण करते हैं. यह अभिव्यक्ति मूलभूत रूप से शक्ति का विकार ही है जैसा कि उपनिषद कहते हैं – वाचारम्भणों विकारो नाम धेयं” अपने मूल रूप से अन्य रूप में परिवर्तन को विकार ही कहा जाता है. पराशर ने वराह अवतार को राहु का अवतार भी कहा है.
हिन्दू धर्म में आदित्य विष्णु का वाराह रूप में यह अवतरण इस रूप में समझा जा सकता है कि जब दैत्य या आसुरी शक्तियाँ बढती हैं तो न केवल उनके चरित्र में पशुता आ जाती है बल्कि उनकी भाषा पर भी पशुओं का प्रभाव होता है. हिरण्याक्ष के सन्दर्भ में यह कहा जा सकता है कि उसने सूअरों के चरित्र को धारण कर लिया और जैसे सुअर मद और काम में ही रहता है, उसके साथ कई सुअरियां रहती हैं वैसे ही यह दैत्य भौतिकवादी होकर अँधा हो गया था. उसने सभी संसाधनों पर कब्जा कर लिया और ज्ञान को भी नियंत्रित कर अपनी अज्ञानता के अनुसार प्रचारित करने लगा. यह वर्तमान समय के OLIGARCH के सन्दर्भ में भी समझा जा सकता है. भौतिक संसाधनों पर नियन्त्रण तो जनता के लिए कष्टदायक होता ही है लेकिन ज्ञान पर नियन्त्रण भी उसी प्रकार से हानिकारक होता है. शिक्षा को कुछ पूंजीपतियों ने नियंत्रित कर लिया है, उनके द्वारा बनाये बड़े बड़े स्कूलों में कोई भी सामान्य व्यक्ति की सन्तान नहीं पढ़ सकती है. उनकी फ़ीस देने की क्षमता भारत की 85% जनसंख्या में नहीं है. पूर्व में स्थापित शिक्षा मॉडल को ध्वस्त करने के लिए वर्तमान दैत्य शासक सरकारी स्कूलों को खत्म करने का हर प्रकार का षड्यंत्र कर रहा है. मीडिया पर पूर्ण नियंत्रित कर उसे गोदी मीडिया में तब्दील करके दैत्य अज्ञानता, अधर्म, झूठ, हिंसा आदि को बढ़ावा दे रहे हैं. हिरण्याक्ष का शासन कुछ इसी तरह का रहा होगा लेकिन जैसा पुराण बताते हैं वह ज्यादा हिंसा से पूर्ण, अधर्ममय और पापमय था. हिरण्याक्ष को मारने के लिए भगवान को उसके सूकर चरित्र और मद से ज्यादा प्रभाशाली मद को धारण करके अवतरित होना पड़ा. हर काल में आसुरी शक्तियों का प्राबल्य होता है ऐसा होता रहा है.