वृंदावन के प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर को हिंदुत्व ठगों ने भगवान के वस्त्र मुस्लिम से न खरीदने के लिए दबाव बनाया था. मन्दिर के सेवायतों ने भगवान के लिए मुस्लिम कारीगरों द्वारा बनाई जाने वाली पोशाकों का इस्तेमाल बंद करने की मांग को खारिज कर दिया है. मन्दिर के प्रमुख पुजारी ने कहा कि मंदिर की परंपराओं में धार्मिक भेदभाव का कोई स्थान नहीं है, मन्दिर से मांग भाजपा-आरएसएस-विहिप के राजनीतिक संगठन श्री कृष्ण जन्मभूमि मुक्ति संघर्ष न्यास के नेता दिनेश शर्मा ने उठाई थी. उसने मंदिर प्रबंधन से मुस्लिम कारीगरों की सेवा लेने से बचने और यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया कि भगवान कृष्ण की पोशाक केवल उन लोगों द्वारा तैयार की जाए जो धार्मिक शुचिता का ध्यान रखते हों.
मन्दिर के प्रमुख पुजारी ज्ञानेंद्र किशोर गोस्वामी ने कहा कि कारीगरों का मूल्यांकन धर्म के आधार पर नहीं किया जाता है. उन्होंने हिंदू धर्मग्रंथों से ऐतिहासिक उदाहरणों का हवाला दिया जहां पुण्य और पापी दोनों व्यक्ति एक ही परिवार में पैदा हुए. उन्होंने कहा, भगवान कृष्ण के नाना उग्रसेन के परिवार में कंस जैसे पापी का जन्म हुआ तो हिरण्यकश्यप जैसे हरि विरोधी के घर में प्रह्लाद रूपी नारायण भक्त ने जन्म लिया. इस प्रकार अच्छे और बुरे मनुष्य तो कहीं भी, किसी भी धर्म, सम्प्रदाय या कुल में हो सकते हैं. उन्होंने कहा, जिस प्रकार मथुरा-वृन्दावन में बड़ी संख्या में मुस्लिम कारीगर ही ठाकुरजी के मुकुट और पोशाक बनाते हैं, उसी प्रकार काशी में भगवान शिव के लिए रुद्राक्ष की मालाएं मुस्लिम परिवार ही बनाते हैं. ऐतिहासिक उदाहरणों का हवाला देते हुए, उन्होंने याद दिलाया कि मुगल सम्राट अकबर ने एक बार मंदिर से जुड़े एक पूज्य संत स्वामी हरिदास को भगवान कृष्ण की पूजा के लिए इत्र भेंट किया था. उन्होंने कहा, आज भी, मुस्लिम समुदाय के संगीतकार विशेष अवसरों पर नफीरी (एक पारंपरिक वाद्य यंत्र) बजाते हैं. भगवान की पोशाक, मुकुट और जरदोजी बनाने वाले कुशल कारीगरों में से लगभग 80 प्रतिशत मुस्लिम हैं. अन्य समुदायों के पास इन पोशाकों को तैयार करने में समान स्तर की विशेषज्ञता नहीं है.
“Most of those who stitch clothes for the idol are Muslim. They are the best tailors and the most disciplined. They understand our needs and work with devotion.”
इस वाकया से यह भी स्पष्ट है मुस्लिम से यह न खरिदो, वह न खरीदो वाला हिंदुत्व फासिस्ट्स का मामला बनियों से सम्बन्धित है इसका हिन्दू से कोई सम्बन्ध नहीं. यदि अथेंटिक मुगलई मटन खाना है तो मुस्लिम के रेस्टोरेंट में जाना ही पड़ेगा, उनके पास मुगलई मटन पकाने का 700 साल अनुभव है. इसी प्रकार लहंगे का बारीक़ काम मुस्लिम ही करते हैं. यहाँ तक की मार्बल पर बारीक काम करने का हुनर उनके पास है क्योकि यह कला उन्हें विरासत से प्राप्त है. सनातन धर्म में कहा गया है कि तुम किसी से उसका हुनर, उसकी विद्या नहीं छीन सकते.

