हिन्दू पंचांग में हर एक चन्द्र महीने में दो चतुर्थी तिथि होती है. पूर्णिमा के बाद कृष्ण पक्ष में आने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है तथा अमावस्या के बाद शुक्ल पक्ष में आने वाली चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहा जाता है. विनायक चतुर्थी को वरद विनायक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है. सबसे महत्वपूर्ण विनायक चतुर्थी भाद्रपद के महीने में पड़ने वाली विनायक चतुर्थी होती है. इस दिन गणेश जी की उपासना से सुख-समृद्धि, धन-वैभव, ऐश्वर्य, संपन्नता, बुद्धि की प्राप्ति होती है. मान्यताओं के अनुसार भगवान गणेश का जन्म भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मध्याह्र काल के प्रहर में, स्वाति नक्षत्र और सिंह लग्न में हुआ था. वैष्णवों की कृष्ण जन्माष्टमी की तरह ही गाणपत्यों का गणेशोत्सव होता है. इस बार भाद्रपद महीने की 19 तारीख को गणेश चतुर्थी का उत्सव मनाया जायेगा है. भाद्रपद की गणेश चतुर्थी को हर साल पूरे भारत में भगवान गणेश के जन्मदिन के उपलक्ष्य में भव्य उत्सव मनाया जाता है. शिवपुराण में भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को मंगलमूर्ति गणेश की अवतरण-तिथि बताया गया है जबकि गणेशपुराण के अनुसार गणेशावतार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को हुआ था. गणपति सम्प्रदाय का यह सबसे बड़ा उत्सव है. दस दिनों तक चलने वाला गणेशोत्सव का विसर्जन अनंत चतुर्दशी के दिन 28 सितंबर 2023 को होगा. इस दौरान हर घर में गणपति बप्पा विराजेंगे और नित्य पूजन, भोग स्वीकार करेंगे. भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मुख्य गणेश चतुर्थी, विनायक चतुर्थी, कलंक चतुर्थी और डण्डा चौथ के नाम से भी जाना जाता है. गणेश उत्सव की शुरुआत 1893 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने महाराष्ट्र में की थी.
महूर्त –
चतुर्थी तिथि 18 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 29 मिनट से शुरू होगी और इस तिथि का समापन 19 सितंबर को दोपहर 13 बजकर 43 मिनट पर होगा. उदया तिथि के अनुसार, गणेश चतुर्थी 19 सितंबर 2023 को मनाई जाएगी. इस दिन पूजा के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 11 बजकर 1 मिनट से दोपहर 1 बजकर 26 मिनट तक ही है. 13 बजकर 48 मिनट पर स्वाती नक्षत्र खत्म हो जायेगा. गणेश जी का जन्म स्वाती नक्षत्र में हुआ था.
कैसे मनाएं गणेशोत्सव
भगवान गणेश की घर में विधिवत स्थापना करने वाले को नित्य त्रिकाल पूजन अर्थात सुबह, दोपहर और शाम तीनों प्रहर में पूजन अनिवार्य होता है. जिन्हें घर में नये गणपति बप्पा की मूर्ति की स्थापना नहीं करनी है वो इस उत्सव को सुबह-शाम पंचोपचार पूजन के कर सकते हैं. गणेश चतुर्थी के दिन मध्याह्न का समय गणपति की पूजा के लिए सर्वोत्तम है.चतुर्थी के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत होकर सबसे पहले स्वच्छ वस्त्र धारण करें. इसके बाद शुद्धिकरण करके पूजा मंदिर में प्रविष्ट हों. मन्दिर के द्वार देवताओं का पूजन करें और तत्पश्चात आसन का पूजन करके आसन पर बैठे. आसन पर विराजमान होकर स्वयं पवित्र हों और विघ्न उत्सारण करें. अब सभी पूजन सामग्री को पवित्र करें और दीप जलाकर इसके बाद पूजा का संकल्प लें. फिर शुभ मुहूर्त के अनुसार गणपति की प्रतिमा स्थापित करें. अब गणपति का आवाहन, स्थापन इत्यादि सम्पन्न करे, पाद्य, आचमन, अर्घ्य, मधुपर्क अर्पित गणेश जी को गंगाजल से अभिषेक करें तत्पश्चात पंचामृत से अभिषेक करे, वस्त्र, उत्तरीय, जनेऊ समर्पित करे. फिर चन्दन,कुमकुम, पुष्प,पुष्प माला, दूर्वा, विल्वपत्र इत्यादि अर्पित करें. पूजन के दौरान भगवान गणेश को सिंदूर लगाएं और उन्हें अनेक प्रकार के भोग के साथ मोदक या लड्डू का भोग भी अर्पित करें. सभी कर्म गणेश मन्त्र “ॐ गं गणपतये नम: पाद्यम समर्पयामि ” इत्यादि से सम्पन्न करें. पूजन के अंत में गणपति बप्पा की आरती करें, क्षमा प्रार्थना करें और प्रसाद वितरण करें.

