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ज्योतिष में रोग उत्पन्न होने का काल अत्यंत महत्वपूर्ण होता है. जिस ग्रह की दशा में रोग उत्पन्न होता है तदनुसार रोग से कष्ट और निवृत्ति होती है. प्रश्न लग्न से रोगारम्भ का समय जाना जा सकता है. ऐसा कहा गया है कि प्रश्न के आरुढ लग्न राशि से जितने स्थान पर 6th लार्ड बैठा हो उतने महीने पहले रोग शुरू हुआ मानना चाहिए अथवा षष्ठेश का नक्षत्र प्रश्न लग्न के नक्षत्र से जितनी संख्या आगे हो उस पर रोग का आरम्भ हुआ, ऐसा कहना चाहिए. रोगेश अष्टमेश और षष्टमेश दोनों ही होते हैं. इन दोनों के भुक्त भोग्य अंशो के आधार पर ही रोग के बारे बता सकते हैं.

षष्टेश जिस राशि में होता है प्रश्न कुंडली में उस राशि में जब चन्द्रमा गोचर करता है, तब रोग होता है या लग्न, लग्नेश या चन्द्रमा का पाप ग्रहों से सम्बन्ध हो अर्थात युति दृष्टि का कोई सम्बन्ध हो तब रोग उत्पन्न होता है अथवा रोग के कारक ग्रहों की दशा में रोग उत्पन्न होता है. दु: स्थान स्थित ग्रहों में जो ग्रह अति दोषप्रद हों उनसे आश्रित राशि में चन्द्र, बुध, गुरु, शुक्र आदि के पहुंचने पर रोग का आरम्भ होता है. ऐसा शास्त्रों का मानना है कि रोग दोषप्रद ग्रह के स्वामी देवता के प्रकोप से होता है. ऐसे में रोग की शांति भी उन देवताओं के पूजा अनुष्ठान से आवश्य होता है. यदि गंडमूल के नक्षत्रों – ज्येष्ठा’, मूल, अश्लेषा, रेवती में हो या स्वाती, आर्द्रा और पूर्व फाल्गुनी, पूर्व भाद्रपद या पूर्वाषाढ में हो तो मृत्युदायक होते हैं. छिद्र तिथियों – चतुर्थी, नवमी, चतुर्दशी, षष्टी, अष्टमी और द्वादशी को रोग हो तो रोग घातक होता है. यदि इन नक्षत्रों से रविवार, शनिवार और मंगलवार का योग हो तो भी रोग मृत्युदायक हो जाते हैं.

अष्टमी, अमावस्या और पूर्णिमा, रविवार, शनिवार और मंगलवार , त्रिजन्म नक्षत्र, जन्म नक्षत्र से तीसरा, पांचवां और सातवाँ नक्षत्र घातक रोग उत्पन्न करते हैं. इसमें यदि रोग प्रकट हो तो वह जातक के लिए मृत्युदायक हो सकता है. यदि रोग उत्पन्न होने के समय नक्षत्र (तारा), वार, तिथि, शूलचक्र और जन्म नक्षत्र ये पांचो उपस्थित हों तो निश्चय ही जातक के लिए प्राणघातक होते हैं. ऐसा देखा जाता है कि जातक अक्सर अपने जन्म दिन, दशा लार्ड के दिन, जन्म तिथि, जन्म सम्वत्सर, जन्म नक्षत्र के दिन इत्यादि में मृत्यु को प्राप्त होते हैं.

यदि लग्न में पाप ग्रह हों, लग्न पापकर्त्री में हो, लग्नेश दु:स्थान में हो और निर्बल हो, पाप ग्रहों के बीच हो, लग्नेश पाप ग्रह से युत हो, चन्द्रमा क्षीण हो या अशुभ नक्षत्र में हो, चन्द्रमा 6-8-12 हॉउस में हो, चन्द्रमा पाप ग्रह के मध्य हो तो रोग लम्बे समय तक या जीवन भर कष्ट देते हैं. जितने बुरे योग कुंडली में होंगे उतना ही कष्ट होगा. कठिन रोगो के शमन के लिए शास्त्र ही उपाय हैं. शास्त्रीय विधि से उनका अनुष्ठान, पूजन और दान आदि से प्रायश्चित करने से रोग का शमन आवश्य होता है. पूर्व जन्म के किये पाप कर्म से ही इस जन्म में रोग उत्पन्न होते हैं. इसकी शांति औषधि, दान, जप, होम, अनुष्ठान और पूजा से होती है. ब्राह्मणों के आशीर्वाद से भी जातकों के कष्ट खत्म होते हैं.