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समुद्र मन्थन के समय मोहिनी रूपी भगवान विष्णु ने स्वर्भानु का सिर चक्र से काट दिया था. उस दैत्य का धड़ ही केतु बना. केतु एक रूप में स्वरभानु नामक दानव के सिर का धड़ है. यह एक छाया ग्रह है जो राहु से सदैव विपरीत दिशा में 180 डिग्री पर रहता है. केतु मंगल की तरह क्रोधी और योद्धा है “कुजवत केतु”. यह मंगल की तरह ही युद्ध का ग्रह है अक्सर बड़े युद्ध का कारक है. केतु को मोक्ष का कारक भी माना गया है. केतु को कुल नाश करने वाला तथा कुल को समृद्ध करने वाला माना गया है. इसके हाथ में झंडा है जो इसके कारकत्व को दर्शाता है. झंडा ख्याति, महानता, उत्कृष्टता और विजय का प्रतीक है अर्थात यदि कुंडली में शुभ हो जातक महान राज्य की प्राप्ति करता है और उसका डंका बजता है. धनी लोगों की कुंडली में अक्सर लाभ या धन भाव में शुक्र आदि शुभ ग्रह के साथ स्थित पाया जाता है. बड़े राजनेताओं के कुंडली में यह शत्रुभाव में उसके स्वामी के साथ स्थित होता या दृष्ट होता है. प्राचीन शास्त्रों में इसका अलग से फलादेश नहीं मिलता क्योंकि आचार्य इसको राहु से जोड़ कर ही देखते रहे हैं. यहाँ केतु के कुछ महत्वपूर्ण कारकत्व दिए जा रहे हैं-

कुतर्क (भ्रामक तर्क) और मिथ्या ज्ञान, नानी, धोखाधड़ी,अभिचार, तांत्रिक कर्म, सोडोमी, चक्र, निम्न वर्ग,चांडाल, पापपूर्ण आदते, चमड़े का कारखाना, भट्ठे, कसाईखाना,मादक पेय, प्रवास, विदेशी भूमि में गुलामी,अल्सर, कैंसर,ड्रॉप्सी,कुष्ठरोग, अपच, कारावास और गंभीर दंड और सज़ा, कारावास से मुक्ति, मशाल की रोशनी,गुप्त रूप से पाप कर्म करने वाला,डकैती, हत्या, भ्रूणहत्या, ईर्ष्या, घृणा, दरिद्रता, अकूत धन सम्पदा, क्षय रोग, हर प्रकार का ऐश्वर्य, वायु विकार, फफोले, मैनी बाबा, ब्रह्मज्ञानी, पेट की पीड़ा, महान तपस्वी, मुर्गा, शूद्रों की सभा, मन्त्र शास्त्र का ज्ञानी,आत्मदाह, बलिदान देना, गुप्तचर, गुप्त शक्ति, मूर्खता,उन्माद, युद्ध, वध,तबाही और युद्धक्षेत्र में मृत्यु,अत्यंत विषैले स्वभाव के जीव-सांप-वाइपर और विषैले सरीसृप,विश्वासघाती और विश्वासघात, कम्बल, चेक वाले कपड़े,गर्म कपड़े,यात्रा, सिढियां,झंडा, काला सफेद कुत्ता,दूर-दृष्टि,इमली का पेड़,वासना,गहरा लाल रंग, बारूद और आतिशबाज़ी, स्पर्श,धूम्रपान करने वाला,रंग-रंग का कपड़ा, वैकल्पिक-चिकित्सा पद्धति, चीड़फाड़ करने वाला,सर्जन,घोड़ों का झुंड,पेड़ों का समूह.

सफेद-काले घोड़े,वैरागी,मुक्ति,विरक्ति-विराग्य, ज्ञान, मोक्ष, राजपथ, विजय, ध्वज, गणेश की उपासना,हिस्टीरिया हाथ,बकरी बकरी का व्यापार, कुश घास, पितर, तर्पण, पिंडदान आदि कार्य,बायीं आंख,नवद्वार,विदेशी भाषाएं,प्रचुर भोजन और पेय,लंबा कद,खट्टा स्वाद,जैमिनी गोत्र,कर्मकाण्ड,तमोगुण,किन्नर इत्यादि.

यह अश्विनी,मघा एवं मूल नक्षत्र का स्वामी है.वृश्चिक राशि में उच्च भाव को प्राप्त करता है कुछ धनु राशि को इसकी उच्च राशि मानते हैं. इसके ठीक विपरीत राशि में नीच भाव को प्राप्त करता है.