अगले महीने में है महिलओं का यह अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व. हर वर्ष ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि के दिन वट सावित्री का व्रत रखा जाता है. यह वट सावित्री व्रत सौभाग्य को देने वाला और संतान की प्राप्ति कराने वाला व्रत माना गया है. वट बहुत पवित्र वृक्ष है, शास्त्रों में कहा गया है – ‘वट मूले तोपवासा’ वट के नीचे किये गये तप का शीघ्र फल मिलता है. पुराणों में कहा गया है कि वट में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों का वास है. इसके नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा आदि सुनने से मनोकामना पूरी होती है. मान्यताओं के अनुसार वट सावित्री के दिन सुहागिन महिलाएं वट यानी बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं. जो पंचांग पूर्णिमान्त को मानते हैं उनके अनुसार वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि के दिन रखा जाता है और अमान्त पंचांग के अनुसार यह व्रत पूर्णिमा तिथि के दिन रखा जाता है.
पुराणों के अनुसार इस दिन बरगद के पेड़ की पूजा करने से पति और परिवार को सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है और पति की अकाल मृत्यु का खतरा टल जाता है. वट सावित्री व्रत के दिन महिलाएं वट वृक्ष की परिक्रमा करती है और चारों ओर कलावा बांधती हैं. माना जाता है कि ऐसा करने से पति की लंबी उम्र और संतान की प्राप्ति की मनोकामना पूर्ण हो जाती है. यह व्रत सावित्री की पौराणिक कथा से जुड़ा हुआ है.
वट सावित्री का मुहूर्त-
हिंदू पंचांग के अनुसार इस वर्ष वट सावित्री का व्रत ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या की तिथि 5 जून को रात 7:55 पीएम से प्रारंभ होगी और 6 जून को 6:07 पीएम पर समाप्त हो जाएगी. उदया तिथि के अनुसार वट सावित्री व्रत इस बार बृहस्पतिवार 6 जून को मनाई जायेगी.
वट सावित्री व्रत को करने के लिए प्रात काल स्नान कर वट वृक्ष के नीचे सावित्री, सत्यवान और यमराज की पूजा करें. वट वृक्ष की जड़ में जल का अर्घ्य देन, फूल, धूप और मिठाई से वट वृक्ष की पूजा करें. कच्चा सूत लेकर वट वृक्ष की परिक्रमा करते हुए भगवान का नाम लेते हुए इसके तने में सूत लपेटते जाएं. सात बात परिक्रमा करना करना चाहिए. इसके अलावा हाथ में भीगा चना लेकर सावित्री-सत्यवान की कथा सुनें, फिर ये भीगा चना, कुछ धन और वस्त्र अपनी सास को देखकर उनसे आशीर्वाद लें. वट वृक्ष की कोपल खाकर उपवास समाप्त कर सकते हैं.

