इस छोटे लेख में दो योग बताये जा रहे हैं जो धन योग हैं. इस दो योगों में वसुमान योग और धनिक योग हैं जो लग्न और चंद्रमा से शुभग्रहों की स्थिति से बनते हैं. वसुमान की व्युत्पत्ति वसु से होती है. वसुओं का पृथ्वी पर अधिकार माना गया है, धन सम्पत्ति पर भी उनका अधिकार है. वसुमती और वसुमान समानार्थक हैं. देवी लक्ष्मी को वसुमती कहा जाता है. लक्ष्मी का भी पृथ्वी लोक पर अधिकार है.
जन्म कुंडली में कब बनता है वसुमान योग?
पहला-यदि कुंडली में लग्न से उपचय स्थान अर्थात तीसरे, छठवें, दसवें और ग्यारहवें स्थान पर शुभ ग्रह -चन्द्रमा, बुध, बृहस्पति और शुक हों तो वसुमान योग बनता है. किसी किसी का मत है कि चन्द्रमा को इस योग में नहीं रखा जाना चाहिए.
दूसरा- यदि चन्द्रमा से उपचय स्थान अर्थात तीसरे, छठवें, दसवें और ग्यारहवें स्थान पर शुभ ग्रह – बुध, बृहस्पति और शुक हों तो भी वसुमान योग बनता है.
वसुमान योग शक्तिशाली योग है. इस योग के होने पर अन्य ग्रह प्रतिकूल भी हों तो जातक धनी होता है और धन-धन्य के इतर उसे भूसम्पत्ति भी खूब होती है. वह हर जगह विजयी होता है और कीर्तिमान होता है.
धनिक योग –
यदि चन्द्रमा या लग्न से उपचय स्थान अर्थात तीसरे, छठवें, दसवें और ग्यारहवें स्थान पर दो शुभ ग्रह -बुध, बृहस्पति और शुक्र में से कोई दो हों तो भी धनिक योग बनता है. जातक धनी होता है लेकिन वसुमान योग की तरह शक्तिशाली योग यह नहीं होता. लग्न और चन्द्रमा से एक भी शुभ ग्रह हो तो जातक को धनी बनाता है परन्तु अल्प धनी बनाता है. वसुमान योग बहुत धनी बनाने वाला योग है.
चन्द्रमा से उपचय में कोई भी ग्रह धनदायक होता है. यदि कुंडली में लग्न या चन्द्रमा से एक दो ग्रह उपचय में हों तो जातक को धन की बहुत समस्या नहीं होती.

