
महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में अनेक स्थानों में शकुनों का वर्णन किया है चाहे वे शकुन स्वप्न के शकुन हों या शरीर के शकुन हों। शकुन एक सिद्धांत पर आधारित है कि विश्व में जो कुछ भी घटित होता है वो अकारण घटित नहीं होता। नवीन और अकस्मात कुछ भी घटित नहीं होता। ईश्वरीय सर्वज्ञता में भूत -भविष्य दोनों काल वर्तमान ही रहते हैं। घटनाएँ तनिक भी इधर उधर नहीं हो सकती हैं। यह समष्टि और व्यष्टि के अन्तर्सम्बन्ध और कार्य कारण सिद्धांत पर ही आधारित है। पश्चिम के वैज्ञानिकों ने शकुन के लिए जोंक पर एक प्रयोग किया। उसे एक जार में बंद करके लम्बे समय तक उसकी गतिविधियों का अध्ययन किया तो पाया कि जब वर्षा होने वाली होती है तो जोंक तलहटी में बैठ जाता है, आंधी आने वाली होती है तो बड़ी तेजी से और बेचैनी में तैरने लगता है, और जब ऋतु शांत रहती है तो पानी के ऊपर बड़े मजे से तैरता है। वे निष्कर्ष पर आये कि जीव जगत पर वाह्य जगत में होने वाली घटनाओं का बहुत सूक्ष्म प्रभाव होता हैं। ग्रहों के एक छोटे ट्रांजिट में या सूर्यग्रहण इत्यादि में भी जीव जन्तुओं की प्रतिक्रिया को बहुत नजदीक से देखा जा सकता है। यह तो एक जोक की बात है जिसकी चेतना का स्तर उतना विकसित नहीं है जितना मनुष्यों का। मनुष्य की चेतना का स्तर बहुत विकसित है इसलिए मनुष्यों को जो सपनों द्वारा भविष्य में होने वाली की घटनाओं का पूर्वानुमान इत्यादि होता है, जो शुभ-अशुभ शकुन होते हैं वो बड़े सूक्ष्म होते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में शकुन के सम्बन्ध में जो कहावतें प्रसिद्ध है उनकी वैज्ञानिक सत्यता में कोई संदेह नहीं है ।
अंडा ले चिऊँटी चलै, चिड़ी नहावै धूर ।
ऊँचे चील उड़ान लै, तब वर्षा भरपूर ।।
तीनों में से कोई एक लक्षण हो तब भी वर्षा होती है । ये भंडरी के शकुन हैं। इसी प्रकार प्राचीन समय के घाघ नामक एक किसान के शकुन हैं जो लगभग सही निकलते हैं। भारत में पश्चिमी सोच के लोग जो खुद को आधुनिक बताते थे इसे अंधविश्वास कह कर उड़ा देते थे लेकिन अब इस पर विद्वानों नें गंभीरता से काम करना शुरू किया है। भारत में तो नहीं लेकिन अमेरिका, चीन और पश्चिमी यूरोप के कुछ देशों में पराविज्ञानों पर वृहद स्तर पर रिसर्च किया जा रहा है। यदि प्लेग आने वाला हो तो चूहे पहले मरने लगते हैं, यह एक निश्चित शकुन है, इस बात की सत्यता में कोई संदेह नहीं है। कुत्ते प्रातः काल में सूर्य की तरफ मुख करके रोने लगें तो अमंगल होता है या गधे गाँव में दौड़ने और चिल्लाने लगें तो अमंगल होता है। यह प्राचीन काल से अजमाए हुए शकुन हैं। महूर्त ग्रन्थों में वर्णन है कि यात्रा के समय यदि ब्राह्मण, हाथी, घोडा, गौ, फल, अन्न, दूध, दही, कमलपुष्प, सफेद वस्तु, नेवला, वेश्या, वाद्य, मयूर, सिंहासन, जलता दीपक, गोद में शिशु लिए स्त्री, नील कंठ, कन्या, भरा हुआ घडा, सफेद बैल दिखे तो यात्रा शुभ होती और लाभकारी होती है।
वाल्मीकि रामायण में तो शकुन से भविष्यवाणी के सन्दर्भ भरे पड़े हैं। दशरथ को बुरे सपने आते हैं, वो राम से कहते हैं –
अपि चाद्याऽशुभान्राम स्वप्ने पश्यामि दारुणान्।
सनिर्घाता दिवोल्का च पततीह महास्वना।।
हे राम ! आजकल मुझे बुरे सपने आते हैं, दिन में वज्रपात के साथ उल्काएं भी गिर रही हैं. हे राम ज्योतिषियों ने भी बताया है कि मेरे जन्म नक्षत्र को सूर्य, मंगल और राहु जैसे भयंकर ग्रहों ने आक्रांत कर रखा है।
प्रायेण हि निमित्तानामीदृशानां समुद्भवे।
राजा हि मृत्युमाप्नोति घोरां वाऽऽपदमृच्छति।।
हे राम ! ऐसे अशुभ लक्षणो के प्रकट होने पर राजा आपत्ति में पड़ जाता है। अन्ततोगत्वा उसकी मृत्यु भी हो जाती है।
अयोध्याकाण्ड दसवें सर्ग में विभीषण लंका में हो रहे अपशकुनों का वर्णन रावण से करता है और उसे सावधान करता है –
यदा प्रभृति वैदेही सम्प्राप्तेमां पुरीं तव ।
तदा प्रभृति दृश्यन्ते निमित्तान्यशुभानि नः ॥
गवां पयांसि स्कन्नानि विमदा वीरकुञ्जराः ।
दीनमश्वाः प्रहेषन्ते न च ग्रासाभिनन्दिनः ॥
खरोष्ट्राश्वतरा राजन् भिन्नरोमाः स्रवन्ति नः ।
न स्वभावेऽवतिष्ठन्ते विधानैरपि चिन्तिताः ॥
वायसाः सङ्घशः क्रूराः व्याहरन्ति समन्ततः ।
समवेताश्च दृश्यन्ते विमानाग्रेषु सङ्घशः ॥
गृध्राश्च परिलीयन्ते पुरीमुपरि पिण्डिताः ।
उपपन्नाश्च सन्ध्ये द्वे व्याहरन्त्यशिवं शिवाः ॥
क्रव्यादानां मृगाणां च पुरद्वारेषु सङ्घशः ।
श्रूयन्ते विपुला घोषाः सविस्फूर्जथुनिःस्वनाः ॥
जब से वैदेही सीता को आप लंका में ले आये हैं तभी पूरी में नित्य अशुभ शकुन ही हो रहे हैं । मन्त्रों द्वारा विधिपूर्वक धधकाने पर भी अग्नि प्रज्वलित नहीं होती। अग्नि का धुँआ मलिन होता है, उससे चिंगारियां निकलती हैं। रसोई, अग्निशालाओं, वेदाध्ययन के स्थलों पर सांप दिखते हैं , हवनसामग्रियों में चींटी पड़ रही है। गायों का दूध सूख गया है। गजराज मदरहित हो गये हैं । गधों, ऊँटों तथा खच्चरों के रोगटे खड़े हो जाते हैं और उनके नेत्रों से आंसू झरते हैं। विधि पूर्वक चिकित्सा करने पर भी ठीक नहीं होते। क्रूर कौए कर्कश स्वर में कांव कांव करते रहते हैं, गीध लंका के आकाश में मंडराने लगे हैं। सुबह शाम सियारिनें नगर के समीप आकर अमंगल की सूचना देती हैं ।
वाल्मीकि रामायण में शकुन से सम्बन्धित सैकड़ों श्लोक है। भरत के शकुनों का विस्तार से वर्णन किया गया है। मामा के घर भरत को अपशकुन होते हैं, बुरे सपने आते हैं।
भरत कहते हैं –
मैंने आज स्वप्न में अपने पिता जी को देखा है। उनका मुख मलिन था बाल खुले हुए थे। और वे पर्वत की चोटी से ऐसे गंदे गड्ढ़े में गिर पड़े जिसमे गोवर भरा हुआ था। मैनें उन्हें गोवर में तैरते हुए देखा था। वे अंजलि में तेल लेकर पी रहे थे और उन्होंने हंसते हुए तिल और भात खाया। फिर उनके पूरे शरीर में तेल लगाया गया। फिर वे सिर नीचे किये तेल में गोते लगाने लगे। स्वप्न में मैंने यह भी देखा की समुद्र सूख गया है। सूर्य और चन्द्रमा पृथ्वी पर गिर पड़े है। पूरी पृथ्वी उपद्रव से ग्रस्त और घने अंधकार से आच्छादित सी हो गयी है। महाराज के काम में आने वाला हाथी का दाँत टूट फुट गया है। पहले से प्रज्ज्वलित अग्नि सहसा बुझ गयी है। मैंने यह भी देखा है की पृथ्वी फट गयी है, नाना प्रकार के वृक्ष सूख गए है। पर्वत ढह गए है और उनसे धुआं निकल रहा है। मैनें देखा कि महाराज काले लोहे की चौकी पर बैठे है। उन्होंने काला वस्त्र डाल रखा है। उनके पीछे भी काले वस्त्र पहने काली स्त्रियाँ खड़ी है और उनके ऊपर प्रहार करती है। धर्मात्मा राजा दशरथ लाल फूलो की माला पहने और लाल चन्दन लगा कर गधे जुते हुए रथ पर बैठकर बड़ी तेज़ी से दक्षिण दिशा की और चले जा रहे है।
इस प्रकार के निश्चित मृत्यु सूचक सपने देखते हैं और इसका फल उसी के अनुसार होता है। जब वाल्मीकि जैसे महर्षि इनका विस्तृत वर्णन करें तो उसे आप्त वचन की तरह ही मानना चाहिए। हम पश्चिमी सोच और बुद्धि से आक्रांत हैं इसलिए हम इन्हें गम्भीरता से नहीं लेते और मजाक उड़ाते हैं। यह एक गम्भीर विषय है जिस पर गंभीरता से चिन्तन मनन करने की जरूरत है।