
वैष्णों देवी शक्ति पीठ 51 शैव शक्ति पीठों में नहीं गिना जाता है. यह विंध्यांचल की माता विन्ध्यवासिनी देवी की तरह ही एक वैष्णव शक्ति पीठ है. इसकी एक रोचक कथा तांत्रिकों से जुड़ी हुई है. यहाँ एक गोरखपंथी शैव तांत्रिक भैरोनाथ का वैष्णव देवी ने वध किया था. कहा जाता है कि किसी गरीब ब्राह्मण भक्त श्रीधर को वैष्णव माता ने कन्या के रूप में आ कर उसे गाँव वालों को भंडारा खिलाने के लिए कहा. उसने भंडारा किया तो उसने सबको खिलाया और फिर वहां निवास कर रहे गोरखपंथी तांत्रिको को भी निमन्त्रण दिया. इन तांत्रिकों में एक बड़ा घोर गोरखपंथी तांत्रिक भैरोनाथ भी था.
भण्डारे में माता वैष्णो देवी कन्या का रूप धारण कर आई और एक कड़छी और दिव्य बर्तन से सबको उनकी इच्छा का भोजन परोसने लगी. जब वे भैरो के पास आई तो भैरो खीर पूड़ी के स्थान पर मांस और मदिरा परोसने के लिये कहने लगा. माता ने भैरोनाथ को बहुत समझाया किन्तु उसने एक न सुनी बल्कि उसने कन्या पर बुरी दृष्टि डाली. यदि स्पष्ट शब्दों में कहें तो वह चाइल्ड एब्युजर था. भैरोनाथ ने उस सुंदर कन्या को तांत्रिक क्रिया के लिए पकड़ना चाहा तो वह कन्या भैरोनाथ से अपना हाथ छुड़वाकर त्रिकुट पर्वत की ओर चल पड़ी. भैरोनाथ भी उस कन्या को पकड़ने के लिए उनके पीछे पीछे गया. माता की रक्षा के लिए वैष्णव धर्म रक्षक, सीता भक्त वीर लंगूर बालाजी हनुमान भी वहां निवास करते हैं . वैष्णवी शक्ति सीता जी ने त्रेतायुग में हनुमान जी को सभी 9 सिद्धियाँ प्रदान की थी. उन्होंने वैष्णव धर्म की रक्षा के लिए दानवरूप शैव दुराचारी भैरोनाथ से घोर युद्ध किया.
भैरोनाथ बड़ा शक्तिशाली घोर तांत्रिक था. जब वीर हनुमान निढाल होने लगे तो माता वैष्णो देवी ने महाकाली का रूप लेकर भैरोनाथ का वध कर दिया. उस दैत्य का मस्तक तीन किलोमीटर दूर जा कर गिरा. यह स्थान भवन के नाम से प्रसिद्ध है. मूल कथा का सारांश यही है कि यह एक वैष्णव पीठ है जो किसी समय शैव दुराचारी तांत्रिकों से अतिक्रांत था. वहां तांत्रिकों का मुखिया भैरोनाथ था. बाद में पुन: सामजस्य स्थापित करने के लिए कहानी बनाई गई कि यह भैरों पूर्व काल में राक्षस दुर्जय का पुत्र था और इसके पितामह भी कोई दैत्य था जिसका वध वैष्णो देवी ने किया था. बाद में यह जोड़ दिया गया कि जब भैरों ने क्षमा प्रार्थना की तब वैष्णव देवी ने भैरो को क्षमा कर दिया और कहा कि जो भक्त मेरे दर्शन के बाद तेरे दर्शन नहीं करेगा तो मेरे दर्शन भी निष्फल होंगे.
जातवेदसे सुनवाम सोममरातीयतो नि दहाति वेदः ।
स नः पर्षदति दुर्गाणि विश्वा नावेव सिन्धुं दुरितात्यग्निः ॥
-ऋग्वेदः सूक्तं १.९९