सनातन हिन्दू धर्म में महूर्त शास्त्र और वास्तु शास्त्र वैदिक काल से धार्मिक यज्ञ और कर्म का महत्वपूर्ण अंग रहे हैं. वास्तु और मुहूर्त दोनों ही ज्योतिष के अंग हैं. इनके बगैर हिन्दू धर्म में कोई धर्म-कर्म सम्भव नहीं है. काल की शुद्धि, दिशाओं और आकाश की शुद्धि के बगैर न तो यज्ञानुष्ठान सम्भव है और सांसारिक शादी-ब्याह जैसे मंगल कार्य. यहाँ तक दान इत्यादि भी देशकाल के अनुसार ही फलीभूत होते हैं जैसा की हिन्दू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण ग्रन्थ भगवद्गीता में श्री कृष्ण ने कहा है “देश काले च पात्रे च “. हिन्दू धर्म के आचार्य और गुरु कभी इन वेदविहित विद्याओं का अनादर नहीं करते हैं. भागवत पुराण में कथा करने के मुहूर्त, मास, नक्षत्रों इत्यादि का प्रारम्भ में ही वर्णन किया गया है कि कथा के लिए कौन सा हिन्दू महीना प्रशस्त हैं और कौन से नहीं हैं.
दूसरी महत्वपूर्ण बात जो भगवद्गीता में कहा गया है –
यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते।।3.21।।
श्रेष्ठ मनुष्य जो-जो आचरण करता है, दूसरे मनुष्य वैसा-वैसा ही आचरण करते हैं। वह जो कुछ प्रमाण देता है, दूसरे मनुष्य उसीके अनुसार आचरण करते हैं।
आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार धर्म पीठों के चारो शंकराचार्य इसका पालन करते हैं और कभी उन्हें अशास्त्रविहित कर्म और उपदेश करते हुए नहीं देखा गया. कमसे कम मैं पुरी शंकराचार्य जगद्गुरु स्वामी निश्चलानन्द जी महाराज को अच्छे से जानता हूँ इसलिए मैं यह विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि वे शास्त्र की मर्यादा में ही सभी कार्य करते हैं. देश के चार शंकराचार्यों द्वारा अधूरे शिखरविहीन राममन्दिर में राजनैतिक लोगों द्वारा प्राणप्रतिष्ठा का वहिष्कार सनातन धर्म और उसकी परम्परा की रक्षा के लिए ही किया गया है. इस प्राणप्रतिष्ठा में श्री राम द्वारा ही सनातन धर्म की स्थापित परम्परा का अपमान किया जा रहा है. जहाँ तक मैं जानता हूँ वैष्णव मन्दिर निर्माण और प्राणप्रतिष्ठा का वर्णन करने वाले ग्रन्थों को भी नहीं माना जा रहा है और वैष्णव परम्परा के खिलाफ मनमाने ढंग से सब किया जा रहा है. क्यों किया जा रहा है? देश में आपातकाल चल रहा है?? कुछ भी सुरक्षित नहीं है. हिंदुत्व फासिस्ट रिजीम में सबसे असुरक्षित सनातन धर्म है.
इससे पूर्व जब राममन्दिर का भूमिपूजन नरेंद्र मोदी द्वारा किया गया था उस समय भी सभी कर्म आसुरी अशास्त्रविहित किये थे. उस समय चातुर्मास्य चल रहा था, देवशयनी एकादशी के बाद देवता शयन करने चले गये थे. उस काल में अधर्मी आरएसएस-भाजपा ने सबसे अशुभ और त्याज्य मुहूर्त राहु काल में नरेंद्र मोदी से भूमि पूजन करवाया था. इन दोनों ही राजनीतिक कार्यक्रम द्वारा यह बताया गया कि कोई धर्म परम्परा, रीतिरिवाज, धर्म ग्रन्थ, धर्म गुरु को मानने की जरूरत नहीं है. जिस तरह मोदी स्वेछाचारी हैं वैसे ही सबको स्वेच्छाचारी होना चाहिए. भगवद्गीता में कहे गये उपरोक्त वचन के अनुसार ऐसे स्वेछाचारी ही धर्म का नाश करते हैं. भगवद्गीता में इसे असुरी सम्पत कहा गया है. धर्म का विनाश तो ऐसे लोग ही कर सकते हैं.
इन सबके बीच हिंदुत्व फासिज्म को धर्म मानने वाले और मोदी के जयकार लगाने वाले धूर्त ज्योतिषी, महूर्त रिजीम और वास्तु रिजीम का भी नाश हो ही गया है. ऐसे में हिन्दू जनता महूर्त, वास्तु को माने ही क्यों जबकि हिंदुत्व ठेकेदार राहुकाल में ही सनातन धर्म का सबसे मंगल कार्य करते हों ? जबकि शिखरविहीन अधूरे बने मन्दिर में प्राणप्रतिष्ठा करते हों? जबकि प्राणप्रतिष्ठा करने वाला व्यक्ति एक स्वेच्छाचारी है और उस मन्दिर के देवता श्रीराम द्वारा स्थापित किसी धार्मिक-सामाजिक, पारिवारिक मूल्य, परम्परा और नैतिक आचार को नहीं मानता?
1-मोदी गृहस्थ नहीं है
2-मोदी सन्यासी नहीं है
3-मोदी राजनीतिक शक्ति प्राप्त करने के लिए धर्म का दुरूपयोग करता है
4-विश्वभर में सबसे बड़े झूठे, मिथ्याचारी के रूप में उसकी पहचान है
5- वह वैष्णव नहीं है और सनातन धर्म की परम्परा के खिलाफ काम करता है
सनातन धर्म में धर्म-कर्म का अधिकार उसे ही दिया गया है जो शास्त्रानुसार भगवान द्वारा स्थापित दो सनातन मार्गो – प्रवृत्ति मार्ग ( गृहस्थ जीवन में रहकर धर्म करते हुए ईश्वर में खुद को लगाना), निवृति मार्ग ( सन्यास धर्म पर चलते हुये ईश्वर को प्राप्त करना जैसा सभी सन्यासी करते हैं) पर चलता हो . मुक्ति इन्हीं दो मार्गो से कही गई है. भगवान ने इसके इतर कोई तीसरा मार्ग नहीं बताया है. नरेंद्र मोदी हिन्दू धर्म के ऋषियों, गुरुओं और आचार्यों द्वारा बताये इन दोनों में से किस मार्ग पर चलता है? गृहस्थ धर्म को मानता नहीं, सन्यास धर्म को मानता नहीं ? यह वैष्णवों के गृहस्थ भगवान की प्राणप्रतिष्ठा करने योग्य कैसे हैं !

