Spread the love

एकादशी भगवान विष्णु की तिथि है, यह वैष्णव तिथि मान्य है. इस दिन वैष्णव समाज के लोग एकादशी तिथि पर व्रत-उपवास रखते हैं. हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख माह में कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को वरुथिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. इस एकादशी की कथा समुद्र मंथन से जुड़ी हुई है. मोहिनी एकादशी के दिन व्रत पूजा करने से भगवान विष्णु का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है. इस दिन समुद्र मंथन के दौरान भगवान विष्णु का मोहिनी अवतार हुआ था. इस दिन उनकी मोहिनी अवतार के रूप में की पूजा- अर्चना की जाती है. महाभारत कथा में बताया गया है कि मोहिनी एकादशी सभी कामनाओं को पूर्ण करती है. सनातन शास्त्रों के अनुसार एकादशी तिथि पर भगवान विष्णु का पंचामृत से अभिषेक करने से साधक को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. इस व्रत से गुरु दोष की निवृत्ति होती है और राहु दोष का नाश होता है.

मोहिनी एकादशी मुहूर्त –

पंचांग के अनुसार, वैशाख शुक्ल एकादशी तिथि 7 मई 2025 को सुबह 10:19 बजे शुरू होगी और 8 मई 2025 को दोपहर 12:29 बजे समाप्त होगी. उदया तिथि के आधार पर व्रत और पूजा 8 मई को होगी. व्रत का पारण 9 मई को सुबह 5:34 बजे से 8:16 बजे के बीच किया जाएगा.

मोहिनी एकादशी कथा –

एक दिन धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा कि हे केशव, वैशाख शुक्ल एकादशी को किस नाम से जानते हैं और उसकी कथा क्या है, इसे विस्तार से समझाइये। वासुदेव श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि मैं आपको वह कथा सुनाता हूं, जो वशिष्ठजी ने भगवान राम को सुनाई थी। कृष्णजी ने बताया कि रामचंद्र ने ऋषि वशिष्ठ से पूछा कि हे गुरुवर कोई ऐसा व्रत बताइये जो जिससे समस्त दुखों और पापों का नाश होता हो, तब महर्षि वशिष्ठ ने कहा हे राम, वैसे तो आपके नाम से ही सभी दुख और पाप का नाश हो जाता है पर आपके सवाल का जवाब लोगों को रास्ता दिखाएगा।

महर्षि वशिष्ठ ने कहा कि वैशाख शुक्ल पक्ष की एकादशी, जिसे मोहिनी एकादशी कहते हैं, उसका व्रत सभी दुखों और पापों का नाश करने वाला है। इसकी कथा इस तरह है-
सरस्वती नदी के तट पर भद्रावती नाम का नगर था, इसमें द्युतिमान नाम के चंद्रवंशी राजा राज्य करते थे। इसी राज्य में धनपाल नाम का वैश्य भी रहता था। वह श्रीहरि का भक्त था, उसने लोगों के लिए अनेक भोजनालय, प्याऊ, कुआं आदि बनवाए थे। उसके पांच पुत्र थे, जिनके नाम सुमना, सद्बुद्धि, मेधावी, सुकृति और धृष्टबुद्धि थे। इनमें धृष्टबुद्धि पापी था, पितरों को नहीं मानता था और भी बुरे कृत्यों में लिप्त रहता था। उसे धनपाल ने घर से निकाल दिया तो वह अपने गहने बेचकर गुजारा करने लगा, जब सब कुछ खत्म हो गया तो उसके साथियों ने उसका साथ छोड़ दिया। गुजारे के लिए उसने चोरी शुरू कर दिया।

एक बार राजा के सिपाहियों ने उसे पकड़ लिया लेकिन धर्मात्मा धनपाल का बेटा होने की जानकारी पर उसे छोड़ दिया गया, लेकिन वह फिर पकड़ा गया। इस पर उसे कारागार में डाल दिया गया, लेकिन कुछ दिनों बाद उसे नगर छोड़कर जाने के लिए कह दिया गया। इस पर वह वन में चला गया और बहेलिया बन गया। एक दिन भूखे प्यासे घूमते-घूमते वह ऋषि कौडिन्य के आश्रम पहुंच गया। इस समय वैशाख मास चल रहा था, ऋषि इस समय नहाकर लौट रहे थे। उनके वस्त्रों के छींटे धृष्टबुद्धि को कुछ अक्ल आ गई, वह हाथ जोड़कर ऋषि के सामने खड़ा हो गया और कहा कि मैंने बहुत पाप किए हैं, इनसे मुक्त होने का बिना खर्च वाला कोई आसान उपाय बताइये।

इस पर ऋषि ने उसे मोहिनी एकादशी व्रत करने के लिए कहा, उन्होंने उसे व्रत की विधि भी बताई। इस पर धृष्टबुद्धि ने उसी तरह व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से उसके सभी पाप नष्ट हो गए और मृत्यु के बाद गरुड़ पर बैठकर विष्णुलोक को गया। इस व्रत को रखने से मोह भी खत्म होते हैं, इससे श्रेष्ठ कोई व्रत नहीं है। इसकी कथा को भी कहने और सुनने से एक हजार गौदान के बराबर पुण्यफल प्राप्त होता है।