कार्तिक पूर्णिमा से एक दिन पहले मनाई जाती बैकुंठ चतुर्दशी है. वैष्णव धर्म में यह बहुत महत्वपूर्ण दिन है. यह दिन पूरी तरह से भगवान विष्णु के लिए समर्पित है. वैष्णव बैकुंठ प्राप्ति के लिए इसका व्रत किया जाता है.बैकुंठ वैष्णव लोक है, यहाँ सिर्फ वैष्णव का ही प्रवेश होता है. बैकुंठ चतुर्दशी के दिन बैकुंठ का द्वार खुला रहता है. पुराण में नारद जी ने श्रीहरि से आमजनों को विष्णु कृपा प्रदान करने के लिए प्रार्थना की तो भगवान विष्णु ने कहा कि जो भी व्यक्ति बैकुंठ चतुर्दशी को उनकी पूजा करेगा. उसे बैकुंठ की प्राप्ति होगी. उन्होंने जय और विजय से बैकुंठ चतुर्दशी के दिन स्वर्ग के द्वार खुले रखने को कहा. पृथ्वी पर बद्रीनाथ, जगन्नाथ और द्वारकापुरी को भी बैकुंठ धाम कहा जाता है. वैष्णव बैकुंठ लोक है जिसकी स्थिति और आयतन भी बताया गया है. यदपि की यह भगवद्गीता का परमधाम नहीं है. बैकुंठ चतुर्दशी कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है. इस साल बैकुंठ चतुर्दशी का व्रत 14 नवंबर 2024 को रखा जाएगा. वैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने और दीपदान से मनोकामनाएं पूरी होती है. इस दिन तुलसी पूजन, तुलसी परिक्रमा, पीपल वृक्ष की परिक्रमा करनी चाहिए. आज शिव पूजन का भी बहुत महत्व है.
आज भगवान शिव एवं भगवान विष्णु का संयुक्त रूप से कमल से पूजन करने से सहस्रगुना फल की प्राप्ति होती है. पौराणिक कथा के अनुसार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष कि चतुर्दशी को हेमलंब वर्ष में ब्रह्म मुहूर्त में भगवान विष्णु ने वाराणसी में मणिकर्णिका घाट पर स्नान किया था और भगवान नारायण ने पाशुपत व्रत करके भगवान विश्वेश्वर (काशी विश्वनाथ) की यहाँ पूजा की थी. भगवान शंकर ने भगवान विष्णु के पूजन से प्रसन्न होकर उन्हें सुदर्शन चक्र प्रदान किया और इस दिन पूजा करने वाले को बैकुंठ पाने का आशीर्वाद दिया.
बैकुंठ मुहूर्त –
पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि का आरंभ 14 नवंबर को सुबह 9 बजकर 43 मिनट पर होगा. चतुर्दशी तिथि का समापन 15 नवंबर को सुबह 6 बजकर 19 मिनट पर होगा. बैकुंठ चतुर्दशी में निशीथ काल की पूजा का विशेष महत्व माना गया है इसलिए निशीथ काल में चतुर्दशी तिथि में 14 नवंबर को ही पूजन किया जाएगा. इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग और रवि योग भी हैं. आज गुरुवार है इसलिए यह तिथि शाम से अति फलदायी होगी.

