
उन्माद (mania) एक मानसिक रोग है, जो मनस्ताप के अंतर्गत आता है. ज्यादातर उन्माद ग्रह जनित होते हैं और अशुभ पाप ग्रहों दशा अन्तर्दशा में प्रकट होते हैं. उन्माद, द्विध्रुवी विकार (bipolar disorder) का एक सामान्य लक्षण है, जिसमें व्यक्ति तीव्र मनोदशा, अति सक्रियता और भ्रम का अनुभव करता है. इसमे व्यक्ति की भावनाओं तथा संवेग में कुछ समय के लिए असामान्य परिवर्तन आ जाते हैं. इसमें काम प्रवृत्ति का प्राधान्य रहता है. अक्सर वे ही व्यक्ति उन्माद रोग के शिकार होते हैं जिनकी कामशक्ति का उचित विकास नहीं हो पाता. उन्माद से पीड़ित जातक अक्सर कहता है -मैं नहीं जानता, मुझे बातें स्मरण नहीं हैं या स्मरण में नहीं आती.
यहाँ ग्रहजन्य उन्माद के कुछ ज्योतिषीय योग दिए जा रहे हैं, इन योगो के होने पर ज्यादातर मामले में जातकों में उन्माद के लक्षण देखे जाते हैं.
1-यदि शनि लग्न या सप्तम में हो तो उन्माद की सम्भावना होती है. यदि मंगल द्वारा दृष्ट हो तो उन्माद और पागलपन बढ़ सकता है.
2-यदि द्वितीय में केतु हो और शनि -मंगल द्वारा दृष्ट हो तो उन्माद या पागलपन होता है.
3- राहु-शनि एक साथ यदि अष्टम, द्वादश या लग्न में हों तो उन्माद होता है. ऐसे योग पिसाच बाधा भी होती है.
4-यदि शनिवार का जन्म या मंगलवार का जन्म हो और सूर्य-चद्रमा लग्न, पंचम या नवम भाव में हो तो उन्माद होता है.
5-लग्न में शनि हो, द्वादश में सूर्य हो और पंचम तथा नवम भाव में मंगल या चन्द्रमा स्थित हो तो जातक उन्माद ग्रस्त होता है.
6-लग्न में स्थित बृहस्पति यदि मंगल दृष्ट हो तो जातक विक्षिप्त और उन्मादी होता है.
7-शनि और द्वितीय भाव का स्वामी यदि पापन्वित हो तो जातक उन्माद से ग्रस्त होता है.
8-राहु के साथ चन्द्रमा लग्न में युत हो और पंचम तथा नवम में पाप ग्रह हो तो जातक उन्माद से पिसाचवत विचरण करता है.
9-लग्न में स्थित राहु पर भी शनि की दृष्टि हो तो भूत, प्रेत आदि से उन्माद और पीड़ा होती है.
10-लग्न में स्थित केतु पर यदि दो तीन पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो भी पिशाच बाधा होती है.
11-यदि द्वितीय भाव का स्वामी शनि हो और पाप ग्रहों से युक्त हो वात जन्य उन्माद होता है अर्थात वायु प्रकोप से उन्माद प्रकट होता है.
12-यदि लग्न में शनि और सप्तम इ मंगल हो तो उन्माद होता है. यदि शनि मंगल के साथ पंचम और नवम में हो तो भी उन्माद होता है.
13- लग्न में शनि और द्वादश में सूर्य हो तो जातक में उन्माद के लक्षण प्रकट होते हैं. त्रिकोण में चन्द्र-मंगल हो तो भी उन्माद होता है.
14-शनि-बृहस्पति की युति केंद्र में हो तो जातक को उन्माद रोग, जड़ता होती है. जन्म के समय समय बुध-चन्द्र अशुभ नवांश में होकर केंद्र में हो तो जातक उन्मादी होता है.
15-यदि लग्न में गुरु और सप्तम में मंगल हो तो जातक उन्माद रोग से पीड़ित होता है.