
आदिवासी समाज सरना को धार्मिक मान्यता प्रदान करने की मांग लम्बे समय से कर रहे हैं. झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर आदिवासियों के लिए ‘सरना’ धार्मिक कोड को मान्यता देने की मांग की है. गौरतलब है कि भारत के आदिवासी समाज जिन्हें जबरन हिन्दू बताया जाता है वो प्रकृति और अपने ग्राम देवता के पूजक हैं. वे स्वयं को हिन्दू नहीं मानते. जनजातीय समाज की मांग को आगे बढाते हुए सोरेन ने कहा कि पिछले आठ दशकों में राज्य में आदिवासियों की आबादी 38 प्रतिशत से घटकर 26 प्रतिशत हो गई है. हमें आदिवासियों के पारंपरिक धार्मिक अस्तित्व की रक्षा की चिंता है और यह निश्चित रूप से एक गंभीर प्रश्न है.
सरना धार्मिक कोड की मांग उठ रही है ताकि प्रकृति पूजक यह आदिवासी समुदाय अपनी पहचान को लेकर आश्वस्त हो सके. सोरेन ने मोदी को लिखे पत्र में कहा कि वर्तमान में जब कुछ संगठनों द्वारा समान नागरिक संहिता की मांग उठाई जा रही है, तो आदिवासी/सरना समुदाय की इस मांग पर सकारात्मक पहल उनकी सुरक्षा के लिए नितांत आवश्यक है.

गौरतलब है कि झारखंड, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ इत्यादि प्रदेश में 42 लाख सरना मत को मानने वाले लोग हैं. ये हिन्दुओं के देवी देवता को नहीं मानते, ये प्रकृति को मानते हैं और उसकी पूजा करते हैं. वैदिक धर्म भी प्रारम्भ में प्रकृति पूजक ही था. सोरेन ने बताया कि उनका धर्म प्रकृति पूजा और उसकी रक्षा हैं.
इससे पहले, झारखंड विधानसभा ने जनगणना में ‘सरना’ को एक अलग धर्म के रूप में शामिल करने के लिए सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया था. हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई जैसे धर्म को कोड मिला हैं, वैसे ही एक सरना धर्म को भी धार्मिक कोड देने की मांग हो रही है. आरएसएस नियंत्रित केंद्र की मोदी सरकार ने जनजातियों की मांग को सिरे से ख़ारिज कर दिया है.