
भगवान सूर्य उत्तरायण हो चुके हैं और मकर राशि में चल रहे हैं. आज मकर संक्रांति का पर्व धूमधाम से मनाया जायेगा. माघ मकरगत रवि जब होई। तीरथपतिहिं आव सब कोई ॥ देश के अलग-अलग हिस्सों में मकर संक्रांति को अलग-अलग नामों से मनाया जाता है. उत्तर भारत में मकर संक्रांति को खिचड़ी, गुजरात और महाराष्ट्र में उत्तरायण पर्व, दक्षिण भारत में पोंगल, असम में बिहू पर्व और बंगाल में गंगासागर स्नान के रूप में इस पर्व को हिन्दू मनाते हैं. सभी क्षेत्रों की अपनी परम्परा है तदनुसार हिन्दू इस पर्व को मनाते हैं. सनातन धर्म में पुण्य प्रदान करने वाले महत्वपूर्ण चार काल में मकरसंक्रांति सबसे महत्वपूर्ण काल है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब सूर्य मकर राशि में आते हैं तब मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है. 14 जनवरी 2:14:49 पर ही सूर्यदेव अपने पुत्र शनिदेव की राशि मकर में प्रवेश कर चुके हैं लेकिन सनातन धर्म में उदया तिथि के अनुसार ही तिथि मान्य होती है इसलिए मकर संक्राति का पर्व आज 15 जनवरी को सूर्योदय के साथ प्रारम्भ होगा. मकर संक्रांति पर गंगा स्नान और दान आदि पुण्य काल में करने का विशेष महत्व माना गया है.
दान-पूजा का मुहूर्त –
मकर संक्रांति पर स्नान-दान का महापुण्य काल सुबह 07 बजकर 15 मिनट से सुबह 09 बजकर 15 मिनट तक रहेगा.
पुण्य काल मुहूर्त : 07:15 से 12:30 मिनट तक
अर्थात देर से उठने वाले हिन्दू दोपहर तक में सभी कार्य कर सकते हैं. परन्तु सबसे बेहतर समय महापुण्यकाल है. सूर्योदय के समय स्नान करके दान का फल सहस्रकोटि गुना माना गया है.
महापुण्य काल मुहूर्त : 07:15 से 09:15 मिनट तक रहेगा.
इस महापुण्यकाल में ही स्नान करके भगवान सूर्य नारायण को अर्घ्य प्रदान कर उनका पंचोपचार पूजन करें और उत्तरायण के 6 महीनों में अपनी सुख और समृद्धि की कामना करें. अर्घ्य प्रदान करने के बाद ही दान करें. दान सामग्री को डलिया या थाली में सजा लें, इसमें सभी अन्न, तिलादि, शब्जियाँ, फल और दक्षिणा होनी चाहिए. सामग्री पर्याप्त होना चाहिए, एक व्यक्ति के भोजन से कम नहीं होना चाहिए.
इस प्रकार सब कुछ सम्पन करने के उपरांत तिल आदि के लड्डू, तिलवा, चिउरा दही गुड़ इत्यादि ग्रहण करें और आनंद करें. आनंद में रहने से ईश्वर की अनुभूति होती है.