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ज्योतिष के मूलभूत सिद्धांत भारतीय वेदांत दर्शन पर आधारित हैं. सभी ग्रह कर्मविपाक के माध्यम है, किसी ग्रह की दशा में ही कोई भी शुभ या अशुभ कर्म का विपाक होता है. ज्योतिष समष्टि और व्यष्टि के सिद्धांत पर चलता है. जो समष्टि में घटित होता है उसका सीधा प्रभाव व्यष्टि पर होता है, इस अर्थ में कुछ भी स्वतंत्र नहीं है अर्थात सब कुछ एकदूसरे से अंतर्संबंधित है. कोई परिघटना चाहे समष्टि में हो या व्यष्टि में हो किसी देश काल में ही घटित होती है और उसका प्रभाव एक दूसरे पर पड़ता है. मनुष्य यह नहीं कहा सकता कि संसार में कोई घटना घट रही है उसमे उसका कोई योग नहीं है. एक तितली यदि सिंगापुर में पंख फड़फडा़ती है तो उसकी प्रतिध्वनि न्यूयार्क में सुनाई पड़ सकती है.

वर्तमान भारत में जो दुर्दांत घटनाएँ हो रही हैं, खुलेआम स्त्रियों का बलात्कार कर नंगा घुमाया जा रहा है, ट्रेन में कोई सिपाही यात्रियों की हत्या कर ‘जय मोदी’ के नारे लगाता है या लोगो के घर बिना वजह सिर्फ घृणा के वशीभूत होकर फासिस्ट सरकार द्वारा गिरा दिए जाते हैं, भगवा वस्त्र पहने बाबा ‘सिर तन से जुदा’ का नारा लगाते हैं, किसी के कुछ सवाल खड़ा करने पर उसे जेल में ठूंस दिया जाता है. ऐसे में पहली बात है कि भारत का हर व्यक्ति जिम्मेदार है क्योंकि उसने अपने मानसिक विकारों, अपनी कुंठाओं के कारण, अपने भीतर स्थित क्रिमिनल भाव के कारण ऐसे नेता को चुना जो मूलभूत रूप से क्रिमनल है, घृणा विद्वेषी है और एक ठग है. लेकिन भारत की जनता की साईक यूँ ही नहीं बदल गई, इसमें ग्रह गोचर भी महत्वपूर्ण कारक हैं. जनता के साईक को क्रिमिनलाइज करने के पीछे ऐसी नकारात्मक ऊर्जा काम कर रही थी जिसने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, प्रिंट मीडिया और सोशल मीडिया द्वारा जनता के चित्त को बुरी तरह आसुरी प्रभाव में जकड़ लिया. इसे लालची बनियों, कार्पोरेट और शैतान का गहरा प्रभाव कहा जा सकता है. ग्रहों के गोचर का प्रभाव समष्टि और व्यष्टि दोनों पर एकसमान रूप से पड़ता है लेकिन उनका समष्टिगत प्रभाव व्यष्टि पर अक्सर ज्यादा प्रभावी हो जाता है. जिस व्यक्ति की कुंडली में ऐसे भयंकर कोई राजयोग हो जो क्रूर ग्रहों द्वारा निर्मित हों, तो वह एक बड़ी जनसंख्या को प्रभावित करेगा और उन्हें गलत दिशा में ले जाकर उनके कष्ट का कारण बनेगा या उनको हिटलर की नाजी पार्टी की तरह किसी कंसंट्रेशन कैम्प में ठूंस कर चिमनी द्वारा धुएं में उड़ा देगा. यह समष्टि-व्यष्टि के ग्रहों के परस्पर जुडाव से होता है. किसी दुष्ट बाबा के फॉलोवर्स के कुछ चार्ट को उठाकर देखोगे तो उस दुष्ट बाबा के अशुभ ग्रहों और दशाओं से उसकी कुंडली जुड़ी हुई मिलेगी.

ये तीन कुंडली सबसे बड़े रक्त पिपासु नाजियों की है सब एक जैसी दशा में चल रहे थे. हमने 35 से ज्यादा नाजियों की कुंडली बनाई और देखा तो मुझे यह पता चला कि सभी नाजी क्रूर ग्रहों की दशा में थे जब उन्होंने नाजी पार्टी में प्रवेश किया. जर्मनी का पूर्ण क्रिमिनलाइजेशन क्रूर-पाप ग्रहों के कलेक्टिव प्रभाव में ही सम्भव हुआ. राहु की महादशा में आप कभी भी बृहस्पति की दशा में चलने वाले व्यक्ति के साथ नहीं चल सकते, उनसे मुलाक़ात और बात ही नहीं बनेगी. मोदी की महादशा में शनि-राहु प्रभावित लोग ही उससे जुड़े जो मूलभूत रूप से क्रिमनल स्वभाव के, घृणास्पद, धूर्त और ठग थे इसलिए उनका कलेक्टिव प्रभाव भी देश की जनता पर वैसा ही पड़ा. उसके सबसे करीबी लोगो का चार्ट उठा कर देखे तो यह बात आपको स्पष्ट होगी. मोदी का सबसे करीबी अमित शाह राहु की महादशा में था. मति मारने का उपक्रम ठगों का एक बड़ा रैकेट ने किया जिनकी क्रूर-पाप ग्रहों की दशा चल रही थी और प्रधान सेवक की दशा के साथ पूर्ण सामंजस्य में थी. आसुरी प्रकृति के धूर्त लोगो ने धर्म को ताक पर रखकर विधिविहीन रिक्शा पर कड़ाही में हवन करते फिरे और जनता को इस तरह बेवकूफ बनाया और ठगा.

यदि दूसरे उदाहरण को लें तो कोविड-19 को देखिये, कोविड-19 के समय ग्रहों का समष्टिगत नकारात्मक प्रभाव इतना शक्तिशाली हुआ कि व्यष्टिगत प्रभाव पूरी तरह क्षीण हो गया. उस समय दुनिया में सबकी मारक दशा, या रोग की दशा या शनि दशा तो नहीं चल रही थी ? लेकिन सभी मनुष्य स्तंभित हो गये, कर्मेन्द्रियों की गति स्तंभित हो गई-सारी दुनिया की गति रुक गई. जिस मनुष्यों की अति योगकारी शुभ दशाएं चल रही थीं वो बेकार चली गईं.
हर एक व्यक्ति एकदेश-काल में रहता है, काल सर्वव्यापी है और मनुष्य देश काल से परिक्षिन्न है. ऐसे में देश-काल का उसपर प्रभाव लाजमी है. भगवद्गीता में दान के सम्बन्ध में कहा गया है -“देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्त्विकं स्मृतम्‌ ” दान का शुभ फल की प्राप्ति देश-काल के शुभत्व के अनुसार ही प्राप्त होगा.
प्राचीन ज्योतिष ग्रन्थों में योगों का वर्णन है कि जातक मदिरापान करेगा या नही. यह उस समय, उस देश-काल में लिखा गया’ जिसमे सत्व गुण प्रभावी था. अब वे योग लागू नहीं हो सकते क्योंकि देश-काल कलियुग के गहरे प्रभाव में है, शनि-राहु इस देश-काल के शासक ग्रह हैं.

ये भारत में मदिरापान के वर्तमान आंकड़े हैं. दिल्ली की सरकार ने तीन महीने से ज्यादा फ्री मदिरा पिलाई. अडानी के पोर्ट से 3000 किलो हिरोइन बरामद हुई, ड्रग सम्पूर्ण फ़िल्मी दुनिया, म्यूजिक इंडस्ट्री, धर्म जगत में गहरे अनुप्रविष्ट है. देश-काल दोनों ही राहु-शनि के गहरे प्रभाव में है जो समष्टिगत प्रभाव पैदा करते हैं, इसका व्यष्टि पर भी प्रभाव पड़ना लाजमी है. लगभग 30% व्यस्क मदिरापान कर रहे हैं, ऐसे में व्यक्तिगत कुंडली से कोई योग देख कर बताना कठिन होगा कि अमुक व्यक्ति मदिरापान करता है या नहीं. यह एक वजह है कि प्राचीन ज्योतिष विद्वानों ने फलादेश में देश-काल को ध्यान में रख कर फलादेश करने के लिए कहा है. यदि किसी देश में adultery वैध है अथवा देश का कानून इसे जुर्म नहीं मानता तो कोई स्त्री या पुरुष के एक्स्ट्रामेरिटल सम्बन्ध हैं या नहीं, इसका फलादेश करते समय इसको भी ध्यान में रखना चाहिए. अमेरिका में स्त्री-पुरुष के चार्ट में यह देखने की जरूरत ही नहीं है क्योंकि उस देश में हर स्त्री पुरुष 3-4 शादियाँ कर ही लेते हैं और शादी से पूर्व उनके अनेको सम्बन्ध बन चुके होते हैं. यह उनकी संस्कृति का हिस्सा है. किसी मुस्लिम के चार्ट में यह देख कर बताना कठिन होगा कि वह मांस खाता है या नहीं .
केंद्रस्थिता मंदनिशाकरार्का जड़ो भवेदत्र मधुपभोक्ता – यदि केंद्र में सूर्य-चन्द्र-शनि हों तो मनुष्य मदिरापान करने वाला होता है. यह योग आज के समय में बेईमानी ही है. जैसे प्राचीन ग्रन्थों के प्रेष्य योग का वर्णन हैं जो उस समय मध्यवर्ग में खराब माने जाते थे. नौकर बनना खराब बात थी. लेकिन वर्तमान दौर में प्रेष्य की संख्या ही सबसे ज्यादा है क्योंकि देश-काल एकदम विपरीत है. नौकर बनना बुरा नहीं माना जाता. सम्पूर्ण राजनीतिक-आर्थिक सिस्टम अधिक से अधिक प्रेष्य (नौकर) बनाने में नियुक्त हैं. हर मनुष्य नौकर बनने के लिए उत्सुक है और इसके लिए वह घुस तक दे रहा है. बिहार इत्यादि राज्यों से करोड़ों लोग पलायन कर शहर में प्रेष्य बनने आते हैं.

देश-काल का ध्यान रखकर ही फलादेश करना चाहिए. देश-काल मनुष्य के व्यक्तिगत कर्मविपाक में भी कारक होते हैं. हिटलर की डेमोनिक नाजी रिजीम में 40 लाख लोग मौत के घाट उतार दिए गये, पिछले 9 सालों से भारत के लोग बेरोजगारी और घोर महंगाई के साथ सामाजिक अशांति को झेल रहे हैं. देश घृणा की आग में जल रहा है. लोगों का जीना कमोवेश मुश्किल हो गया है 200 रुपये किलो टमाटर खरीद रहे हैं मानो पुरे भारत की शनि की कष्टकारी दशा चल रही है. इसमें काल ही कारण है.