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सनातन धर्म में सभी देवताओं की वैदिक और तांत्रिक उपासना की परम्परा है. तन्त्र में वैदिक मार्ग से निर्धारित तन्त्र मार्ग को ही आचार्यों ने कल्याणकारी माना है. इसके इतर जो कुछ तन्त्र में है वह अविद्या का विस्तार है और इसके ज्यादातर ग्रन्थ धूर्तों द्वारा रचित है. तन्त्र की साधना के लिए किसी विद्वान् आचार्य से आथेंटिक तन्त्र का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए. हनुमान जी मूलभूत रूप से वैष्णव देवता हैं इसलिए उनकी प्रमुख पूजन पद्धति सात्विक होती है. लेकिन वैष्णवों ने ही उनकी तांत्रिक उपासना को भी प्रचलित किया था. नारद आदि पुराणों में इसका पर्याप्त वर्णन किया गया है. हनुमान के तांत्रिक स्वरूप अनेक हैं लेकिन प्रमुख तांत्रिक मूर्ति पंचमुखी हनुमान है. इस मूर्ति में सूकर, गरुण, बन्दर, अश्व और सिंह के सिर हैं. सिंह घास नहीं खाता और गरुण भी घास नहीं खाता इसलिए तांत्रिक हनुमान पूजा में अमिष का प्रयोग भी किया जाता है. हनुमान का तन्त्र भी काफी विकसित है और बहुत प्रभावशाली भी है. हनुमान पवन पुत्र हैं और रुद्रात्मक हैं ऐसे में इनका तन्त्र घोर है अर्थात काफी विकट और कठिन है. हनुमान जी की तांत्रिक उपासना बगैर गुरु के करने से सद्यः विनाश हो जाता है.

यहाँ हनुमान के एक तांत्रिक मन्त्र का प्रयोग दिया जा रहा है. यदि इसका अनुष्ठानिक प्रयोग किसी हनुमान उपासक से करवाया जाय या किसी गुरु की सन्निधि में किया जाय तो तुरंत सफलता मिलती है. तांत्रिक मन्त्र इस प्रकार है –

मन्त्र- ॐ नमो हरि मर्कट मर्कटाय स्वाहा
इस मन्त्र का विधिवत अनुष्ठान करना चाहिए. इससे शत्रु पर विजय प्राप्त होती है और हर प्रकार से कल्याण होता है.

राजसत्ता या शासन से विरोध हो तो मन्त्र- ॐ नमो हरिमर्कट मर्कटाय [अमुक नाम] हरिमर्कट मर्कटाय स्वाहा इस मन्त्र को भोजपत्र पर लिख कर हनुमान जी के माथे पर चिपका कर, सरसों के तेल से हनुमान का सहस्रधारा से अभिषेक करना चाहिए. इस दौरान 1 लाख मन्त्रों का जप सम्पन्न होना चाहिए. पांच छिद्र वाले अभिषेक पात्र से अभिषेक करते हुए 21000 मन्त्र जप से भी सफलता मिल जाती है. आम्रपत्र पर गुलाल बिछा कर इस मन्त्र को 1 लाख बार लिखने से भी वशीकरण और शत्रु नाश होता है.