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कुम्भकोणम के थिरुविदाईमरुदुर स्थित महालिंगेश्वरर शिव का मघा नक्षत्र के लिए दर्शन करना सभी मुश्किलों से पार पाना है . कुम्भकोणम एक शैव तीर्थ है . ब्रह्मा जी के कुम्भ से अमृत की बुँदे  जहाँ जहाँ गिरीं वहां वहां शिव के 7 मन्दिर एक दूसरे के कोण में स्थित हुए . ये प्रसिद्ध शैव मन्दिर हैं :  महालिंगेश्वरर थिरुविदाईमरुदुर,  तिरुधरसुरम (Tirudharasuram), नागनाथार( Naganathar) मन्दिर तिरुनागेश्वरम , तिरुवोरगम जो तिरुपादलवनम में स्थित है.

मन्दिर से एक अन्य ऐतिहासिक कथा जुडी है जिसके अनुसार चोल राजकुमार को ब्रह्म हत्या का दोष लगा था जिसके कारण ब्रह्म राक्षस उनका पीछा कर रहा था . चोल राजा ने  महालिंगेश्वरर शिव की शरण में आकर शिव से इस ब्रह्म राक्षस से मुक्त होने की प्रार्थना की थी . चोल राजकुमार दूसरे गेट से बाहर गया था इसलिए आज भी दर्शन के बाद लोग दूसरे गेट से ही बाहर जाते हैं . मन्दिर के गेट के पास चोल ब्रह्म राक्षस की एक भयंकर प्रतिमा भी है .

मन्दिर की मान्यता के अनुसार महर्षि अगस्त्य के समक्ष भगवान शिव ज्योति रूप में यहाँ प्रकट हुए थे . लिंगम को ज्योतिर्मय महालिंगम भी कहा जाता है . यहाँ पर पार्वती ने भी कठोर तप किया था . मूकाम्बिका का यह मन्दिर प्रांगण में अलग से तप मुद्रा में स्थित है. शिव यहाँ पार्वती के हृदय से प्रकट हुए थे . काली , मुरुगन , गणेश , सरस्वती इत्यादि देवी देवताओं की भी भव्य मूर्तियाँ मन्दिर में स्थित हैं . dtte

यह स्थल एक पवित्र वृक्ष से भी जुड़ा हुआ है. मरुधर या मरूदर एक पवित्र वृक्ष का नाम है. यह वृक्ष इस मन्दिर में स्थित है इसलिए स्थल का नाम है “थिरुविदाईमरुदुर “. ऐसे तीन पवित्र वृक्ष उन सात शिव मन्दिरों में से तीन से जुड़े हैं जहाँ ब्रह्मा जी के कमंडल से अमृत टपका था . शैव सम्प्रदाय का यह शिव मन्दिर इन तीन मन्दिरों के मध्य स्थित है. श्री शैल का मल्लिकार्जुन स्वामी शिव मन्दिर में मरूद वृक्ष को थलाई  मरूद कहा जाता है यह सबसे ऊपर स्थित है , जबकि अम्ब समुद्रम स्थित तिरुपुदईमरुदर मन्दिर अध: स्थित है इसे कदैमरुदर कहा जाता है .

इसी नाम का एक गाँव में स्थित मन्दिर भी इसके लिए प्रसिद्ध है. यह बहुत छोटा मन्दिर है.