सभी रोग मनुष्य को उसके प्रारब्ध से ही मिलते हैं. कुछ रोग जो विकट होते हैं उन प्रारब्धजन्य रोग में दवाई कोई फायदा नहीं करती है. प्रारब्ध कर्म यदि क्षीण हो जाए तो रोग भी मिट जाता है. संसार में कोई रोग ऐसा नहीं है जो प्रारब्ध-कर्म के क्षय होने पर ठीक न हो सके. प्रारब्ध कर्मों को क्षीण करने के उपाय है धर्म करना, दान करना, ईश्वर की उपासना करना. पद्मपुराण में एक कथा है कि समुद्र-मंथन के समय सबसे पहले कालकूट नामक महाभयंकर विष प्रकट हुआ जो प्रलयकाल की अग्नि के समान था. उसे देखते ही सभी देवता और दानव भय के मारे भागने लगे. भगवान शंकर ने देवताओं और दानवों से कहा–’तुम लोग इस विष से भय न करो. इस कालकूट नामक महाभयंकर विष मैं पान करूंगा’. शंकरजी ने सर्वदु:खहारी भगवान नारायण का ध्यान और तीन नामरूपी (नामत्रय) महामन्त्र का जप करते हुए उस महाभयंकर विष को पीकर कण्ठ में धारण करके संसार को बचाया और ‘नीलकण्ठ’ बनकर संसार में प्रसिद्ध हुए. भगवान विष्णु के सहस्रनाम में उनके सुंदर नाम हैं इसलिए विष्णु सहस्रनाम का पाठ बहुत फलदायक होता है. उसी सहस्रनाम में तीन प्रभावशाली नाम हैं जिसे “नामत्रय” कहा जाता है. इस नामत्रय का जप करने से रोगों का नाश होता है. ये नाम इस श्लोक में वर्णित है –
अच्युतानन्तगोविन्द नामोच्चारण भेषजात्।
नश्यन्ति सकला रोगा: सत्यं सत्यं वदाम्यहम्।।
“अच्युत, अनन्त, गोविन्द–इन नामों के उच्चारणरूपी औषधि से समस्त रोग दूर हो जाते हैं, यह मैं सत्य-सत्य कहता हूँ.’
इस श्लोक में ‘सत्य’ शब्द दो बार कहा गया है अर्थात महात्माओं द्वारा लिखा यह अनुभूत सत्य है और श्रद्धा-विश्वास के साथ इस श्लोक का जप करने से सभी प्रकार के रोग दूर हो जाते हैं. रोग-निवारक औषधि के रूप में भगवान विष्णु के तीन नामों का यह जप प्रारम्भ में ॐ और अंत में नम: लगा कर करना चाहिए. यथा –
ॐ अच्युताय नम:
ॐ अनन्ताय, नम:
ॐ गोविन्दाय नम:
इस तीन नामरूपी मन्त्र का भगवान का पूजन करके ध्यान पूर्वक जप करने से विष, रोग और अग्नि से होने वाली अकालमृत्यु का भय नहीं होता है. सभी प्रकार के रोगों से तथा शारीरिक व मानसिक कष्टों से मुक्ति मिलती है. इसका कार्य करते हुए मानसिक जप भी करना चाहिए.

