वेदों में यह ऋचा आती है कि सृष्टि के प्रारम्भ से पूर्व भगवान ने सूर्य और चन्द्र को उत्पन्न किया क्योंकि यह सृष्टि चक्र के आधार हैं. सू॒र्या॒च॒न्द्र॒मसौ॑ धा॒ता य॑थापू॒र्वम॑कल्पयत् । दिवं॑ च पृथि॒वीं चा॒न्तरि॑क्ष॒मथो॒ स्व॑: ॥
यहाँ कल्प/ कल्पित शब्द आया है जिसका अर्थ है पूर्व कल्प में कल्पित है. कल्प में सृष्टि का लय हो जाता है. वैष्णव दर्शन के अनुसार ब्रह्म स्वरूप विष्णु एकार्णव जल में शयन करते हैं. इस ब्रह्म प्रलय में माया, काल, कर्म, दिन और रात इन सभी का लय हो जाता है, एकमात्र विष्णु ही रहते हैं. इस समय जगत के कारण सूर्य-चन्द्र भी नहीं रहते. दूसरे कल्प के प्रारम्भ में भगवान इनकी पुन: रचना करते हैं.
आदित्य के जन्म की प्राचीन कथा तैतिरीय अरण्यक प्रपा.१-अनु.२३ में मिलती है. कथा के अनुसार ब्राह्मी सृष्टि के पूर्व सब कुछ जल से ही व्याप्त था. इस जल में पितामह ब्रह्मा का अविर्भाव हुआ. उन्होंने जल में खिले कमल को देखा और उस पर पद्मासन में आसीन हो गये. कुछ काल व्यतीत होने के बाद ब्रह्मा जी के मन के सृष्टि की इच्छा का जन्म हुआ, वे इसके निमित्त तपस्या करने लगे. तपस्या के बाद प्रश्न खड़ा हुआ कि वे किस प्रकार प्रजा का सृजन करें. यह सोचते ही उनका शरीर कांपने लगा. उनके कम्पन से अरुण, केतु और वातरसन नामक ऋषियों का जन्म हुआ. नख के कम्पन से बैखानस नामक ऋषियों का जन्म हुआ तथा केश के कम्पन से बालखिल्य नामक ऋषियों का जन्म हुआ.
उसी समय ब्रह्मा जी के सार तत्व से एक कछुआ प्रकट हुआ और जल में आगे पीछे तैरने लगा. इसे देख ब्रह्मा जी को बड़ा आश्चर्य हुआ , ब्रह्मा जी ने पूछा, “तुम मेरे त्वक और मांस से पैदा हुए हो ?” कछुए ने कहा, “ तुम्हारे मांस आदि से मेरा जन्म नहीं हुआ, मेरा जन्म तुमसे बहुत पहले का है. मैं नित्य, सर्वगत, अनादि, नित्य चैतन्य, शाश्वतस्वरूप हूँ. और पहले से ही यहाँ मैं सर्वत्र व्याप्त हूँ, तुम्हारे हृदय में भी हूँ, विचार कर देखो”. इस प्रकार कहकर कूर्म शरीरधारी नित्य चेतन स्वरूप परमात्मा ने अपना सहस्रशीर्ष, सहस्रबाहु और सहस्र पदों से युक्त विश्व स्वरूप को प्रकट किया.
ब्रह्मा ने दंडवत हो उन्हें प्रणाम किया और प्रार्थना करते हुए कहा –“हे प्रभु ! आप मुझसे पहले से विद्यमान हैं. हे पुराण पुरुष ! आप ही सर्व सक्षम हैं. आप ही सृष्टि कार्य को सम्पादित कीजिये. तब तथास्तु कह कर कूर्मशरीरधारी भगवान ने अंजुली में जल लेकर “आवोहयेव” मन्त्र द्वारा पूर्व दिशा में जल का उपधान किया “सू॒र्या॒च॒न्द्र॒मसौ॑ धा॒ता य॑थापू॒र्वम॑कल्पयत्”. इस उपधान से ही पूर्व दिशा में आदित्य का जन्म हुआ.
स इत आदायाय:(४)। अञ्जलिना पुरस्तादपादघात। एवा ह्येवेति तत आदित्य उदतिष्ठत् । सा प्राची दिक् । शतपथ ब्राह्मण (६.१.२.८) प्रजापति ब्रह्मा जी के बारे में कहा गया है कि उन्होंने बारह सूर्यों का निर्माण किया एवं उनको आकाश में स्थापित कर दिया –
स म॑नसैव॑ वा॑चम्मिथुनं स॑मभवत्स द्वा॑दश द्रप्सा॑न्गर्भ्य॑भवत्ते द्वा॑दशादित्या॑असृज्यन्त ता॑न्दिव्यु॑पादधात्।
इस प्रकार संसार के कारण, आत्म स्वरूप सूर्य देव का जन्म हुआ. यही कारण है कि सूर्य को नौसर्गिक आत्मकारक माना जाता है. सूर्य दृष्टि अर्थात आँखों की रौशनी का कारक है यह भी वेदों से ही प्राप्त हैं, कठोपनिषद में है- “सर्वलोकस्य चक्षुः सूर्यः यथा चक्षुषैः बह्यदोषैः न लिप्यते”. ब्रह्मा के जन्म की यही कथा अनेक प्रकार से पुराणों में कही गई है. देवी महात्म्य की कथा यहीं से प्रारम्भ होती है.
उत्पन्नेति तदा लोके सा नित्याप्यभिधीयते । योगनिद्रां यदा विष्णुर्जगत्येकार्णवीकृते ॥ ६६॥ आस्तीर्य शेषमभजत् कल्पान्ते भगवान् प्रभुः । तदा द्वावसुरौ घोरौ विख्यातौ मधुकैटभौ ॥ ६७॥ देवी नित्य स्वरूप हैं,उन्होंने ही समस्त जगत को व्याप्त कर रखा है.यदपि वे नित्य और अजन्मा हैं तथापि देवताओं का कार्य सिद्ध करने के लिए लोक में उत्पन्न हुई कहलाती हैं. कल्प के अंत में जब सम्पूर्ण जगत एकार्णव में निमग्न हो रहा था और सबके प्रभु भगवान योगनिद्रा में सो रहे थे.तब उनके कानों के मैल से दो भयंकर असुर उत्पन्न हुए,जो मधु और कैटभ नाम से विख्यात हुए. इस कथा की शुरुआत कल्प के अंत में जब पुन:सृष्टि का प्रारम्भ हो रहा था तब की है. ब्रह्मा जी पैदा हो चुके थे और भगवान ने उन्हें सृष्टि रचना का आदेश दे दिया था.उसी समय ये दैत्य निकल आये और ब्रह्मा जी को खाने दौड़े. सृष्टि के आद्य कारण सूर्य हैं.जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि का प्रारम्भ किया तो सर्वप्रथम इनका ही प्रादुर्भाव भगवानके हाथों से ही हुआ.
ईसाईयों की पैदाइश हालिया की है. ईसाईयों ने घूम घूम कर अनेक जगह से संस्कृति की चोरी करके खुद को थोड़ा सभ्य बनाया है. बाईबिल के जेनेसिस में भी कुछ ऐसी ही कथा है जो वेदों से चोरी करके लिखी गई है-
Now the earth was formless and empty, darkness was over the surface of the deep, and the Spirit of God was hovering over the waters.
And God said, “Let there be light,” and there was light.

